ममता कालिया (2 नवंबर 1940 (आयु 79 वर्ष), वृन्दावन) एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। लगभग आधी सदी के काल खण्ड में उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है।
निर्मोही दादी रात दिन सौंताल की रागिनी से बंधी रहती। बाजार में पहली- पहली कटहरी आई। दादी कुंजडि़न से पूछें- सौंताल की है ना ? दादी तरकारी लेकर आँगन में बैठ जातीं ।एक-एक तरकारी छाँटती- छीलती । उनकी पोथी का एक-एक पन्ना खुलता जाता । हमें बाबा से डर लगता। शाम की सैर के बाद घर लौटने में दहशत होती। हम कहतीं- दादी, आज यहीं रह जाएँ ? घर ना जाए। दादी कहती, घर तो जानो ही परेगो। अपने द्वार से हटके तो फूलमती भी नाँय जी ।हम -तुम कौन गिनती में? हम वापसी के लिए चल पड़ते। दादी अपनी एक टाँग पर उचक -उचक कर चलती और उनका किस्सा भी उचक- उचक कर आगे बढ़ता। एक थी फूलमती। वाके ये बड़ी -बड़ी आँखें———-।
निर्मोही दादी रात दिन सौंताल की रागिनी से बंधी रहती। बाजार में पहली- पहली कटहरी आई। दादी कुंजडि़न से पूछें- सौंताल की है ना ? दादी तरकारी लेकर आँगन में बैठ जातीं ।एक-एक तरकारी छाँटती- छीलती । उनकी पोथी का एक-एक पन्ना खुलता जाता । हमें बाबा से डर लगता। शाम की सैर के बाद घर लौटने में दहशत होती। हम कहतीं- दादी, आज यहीं रह जाएँ ? घर ना जाए। दादी कहती, घर तो जानो ही परेगो। अपने द्वार से हटके तो फूलमती भी नाँय जी ।हम -तुम कौन गिनती में? हम वापसी के लिए चल पड़ते। दादी अपनी एक टाँग पर उचक -उचक कर चलती और उनका किस्सा भी उचक- उचक कर आगे बढ़ता। एक थी फूलमती। वाके ये बड़ी -बड़ी आँखें———-।
बहुत लाड़ करती थी दादी मेरा ।दादी का एक पैर सूखी पतली लौकी जैसा और पैर का पंजा छोटा, जिनकी जुड़ी उंगलियों में नाखून नहीं थे । दादी दोनों पैर थाम कर कहती ,’अरे राम बड़ी टीसहोती है । बाबू आगरा में पढ़ते थे एक दिन बाबू से बाबा बोले ,’हिसाब- किताब समझ लो दिवाली पर बही खाता ,बांट- तराजू तुम्ही पूजियौ आय के। बाबू बोले,’ दुकान पर बैठने के लिए तो मैं एम़ए़ नहीं कर रहा हूँ। नौकरी करूँगा । बाबा भड़क उठे ।बाबू भुनभुनाते हुए घर में घूमते रहे बोले ,’पढ़ने का क्या फायदा अगर अपना रास्ता चुनने की आजादी ना हो ? दादी ने सुन कर कहा इतना बड़ा फोड़ो है पीठ पर ,पर तेरे बाबू जर्राह के नहीं लै जाते। गली की पाठशाला में मेरा नाम लिखवा दिया गया था एक दिन स्कूल में सफेद कपड़े पहन कर आने के लिए कहा गया। मैं दादी से बोली दादी आज आजादी का दिन है ।हम स्कूल जा रहे हैं। तिरंगा झंडा फहराया जाएगा ।दादी बोली ,’थोड़ी आजादी मेरे लिए भी ले आना पुड़िया में बांध के।’
विदेश से आने वाले रिचर्ड पार्कर के लिए पूरे घर को व्यवस्थित और स्वच्छ करने में मेरी हालत ही पस्त हो गई। बच्चों को और बड़ों को लाख समझाया कि सभ्यता का परिचय देना लेकिन—— मेरा चिड़चिड़ाना स्वाभाविक था किंतु रिचर्ड ने तो मेरा नजरिया ही बदल दिया ।उसने कहा कि आपके घर में अभी डिनर पर तीन पीढ़ियाँ एक साथ, एक छत के नीचे, प्रेम से बैठी है ।आपके बच्चों को नॉर्मल लड़कपन मिल रहा है। यह बहुत बड़ी बात है। इसे कभी कम करके मत देखिएगा । जिन्हें आप गड़बड़ियाँ कह रही हैं , उनके लिए हमारे देश में तरसते हैं लोग ।कहाँ मिलती है घर परिवार की गर्मी? रिचर्ड सुबह बनारस चला गया पर मुझे जीवन भर के लिए शिक्षित कर गया।
हरि और उसकी पत्नी ,प्रबोध के घर जाते हैं |प्रबोध की अपनी पहली पत्नी के साथ तलाक हुए बिना लीला के साथ संबंध रखना हरि की पत्नी सही नहीं लग रहा है| क्या है पूरी कहानी जाने के लिए सुनते हैं ममता कालिया की द्वारा लिखी गई कहानी और अपत्नी अंगुना की आवाज में
बाथरूम कहानी में पुराने विचारों और नए विचारों का टकराव दिखाई देता है । घर में नई बहू बाथरूम की मांग करती है,जिससे घर की औरतें नाराज हो जाती है और उसका विरोध करती है। तो क्या घर में बाथरूम बना ?क्या नई दुल्हन पुराने विचारों को बदल पाती है ?
शोभा और पंकज नव दांपत्य में बहुत प्यारा समय बिता रहे थे ।जैसे आधुनिक लैला मजनू। लेकिन नव दंपति से माता-पिता बनते ही उनके प्रेम ने नया रूप ले लिया, जिसमें प्यार कम गुस्सा ,शिकायतें, झगड़े ज्यादा होने लगे ।तो क्या उनका प्रेम वास्तव में समाप्त हो गया
भोला महाजन जो कि एक सुनार है, पुराने विचारों वाला व्यक्ति है ।उसने अपने खानदानी पेशे में अपने दोनों बेटों को माहिर कर दिया है । उसने उन दोनों के लिए काफी पैसा लगाकर शोरूम बनवाया है किंतु वह पूरी तरह उन पर आश्वस्त नहीं हो पाता है इसलिए खुद भी शोरूम पर
मिश्रा जी अपने समय के प्रतिष्ठित रंगकर्मी थे, साथ ही यूनिवर्सिटी में लेक्चरर थे ।रिटायरमेंट और नाट्य कला का अस्त होना उन्हें अंदर तक तोड़ गया था। वह चिड़चिड़े और तुनक मिजाज हो गए थे ।उन्हें यकीन था कि एक बार फिर वे नाटक का निर्देशन करेंगे ।
कहानी महाकुंभ के मेले के इर्द-गिर्द घूमती है। मेले के समय की जाने वाली व्यवस्था, विभिन्न मानसिकता वाले लोग और उनके प्रथक -प्रथक विचार बड़े सुंदर ढंग से बताए गए हैं ।महाकुंभ की बेला में डुबकी लगाकर सारे पापों का प्रायश्चित होता है । ऐसे विचारों वाले ल
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Omkar Gupta