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Karwachauthi Aurat (करवाचौथी औरत)
Karwachauthi Aurat (करवाचौथी औरत)
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Karwachauthi Aurat (करवाचौथी औरत)
Writer
Narrator
सुधा अरोड़ा की कहानी करवाचौथी औरत स्त्रियों की स्थिति पर एक तीखा व्यंग्य है।
यह कहानी बड़े ही चुटीले अंदाज़ में समाज की उस मानसिकता को उजागर करती है, जहाँ स्त्री का व्रत, उसका त्याग और उसका प्रेम परिवार के लिए उतनी अहमियत नहीं रखता, जितना एक पालतू कुत्तिया के नखरे और लाड़–प्यार रखते हैं।
लेखिका इस तुलना के माध्यम से यह बताती हैं कि किस तरह एक औरत, जो करवाचौथ जैसे व्रत पर अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए दिनभर भूखी-प्यासी रहती है, उसकी भावनाएँ और उसके बलिदान की उपेक्षा कर दी जाती है। घर के लोग उसे वह सम्मान और संवेदना नहीं देते, जिसकी वह हक़दार है। बल्कि, उसके स्थान पर एक कुत्तिया के छोटे–मोटे नखरे और इच्छाएँ ज़्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
इस कहानी का व्यंग्य केवल चुभता ही नहीं, बल्कि पाठकों को गहराई से सोचने पर मजबूर करता है—
👉 आखिर समाज में औरत की जगह कहाँ है?
👉 उसका व्रत, उसकी निष्ठा और उसका त्याग क्यों अक्सर हल्के में लिया जाता है?
👉 क्या एक औरत का अस्तित्व केवल परंपराओं और व्रतों तक सीमित है?
सुधा अरोड़ा की लेखनी में व्यंग्य का यह तीखा पुट, हमें समाज के आईने में झाँकने पर मजबूर करता है और यह सोचने पर विवश करता है कि— क्या आज भी स्त्री की असल अहमियत पहचानी जा रही है?
Aankho me kirkirate rishte ( आंखों में किरकिराते रिश्ते )
Aankho me kirkirate rishte ( आंखों में किरकिराते रिश्ते )
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Aankho me kirkirate rishte ( आंखों में किरकिराते रिश्ते )
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Narrator
कविता और शांतनु भाई बहन है |एक समय ऐसा भी था कि दोनों भाई- बहन में असीम प्रेम झलकता था| किंतु आज क्या? क्यों उनके बीच में इतनी दूरियां पैदा हो गई ?आज कविता राखी पर क्या यह दूरियां मिटा आएगी ?पूरी कहानी जाने के लिए सुनते हैं मनीषा कुलश्रेष्ठ जी के द्वारा लिखी गई कहानी आंखों में किरकिराते रिश्ते ,पूजा श्रीवास्तव की आवाज में
khele masane me hori digambar (खेलैं मसाने में होरी दिगंबर)
khele masane me hori digambar (खेलैं मसाने में होरी दिगंबर)
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khele masane me hori digambar (खेलैं मसाने में होरी दिगंबर)
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Narrator
शिव एक युगपुरुष है।आदि और अंत वही है। यह अनूठी होली की दास्तान है जोकि शमशान में खेली जाती है। जहां कवि ने शिव के माध्यम से जीवन के आरंभ और अंत का बखूबी से वर्णन किया है…
Samapan
Samapan
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Samapan
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समापन – भाग -5
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये समापन है
कनु की प्रिया जिसके हृदय में प्रतिक्षण कनु ही व्याप्त रहता है, ऐसी कनुप्रिया सम्पूर्ण रचना में छाई हुई है. राधा को कभी कनु अपना अन्तरंग सखा लगता है तो कभी रक्षक, कभी लीला बन्धु कभी आराध्य और कभी लक्ष्य.
कनुप्रिया के समापन में राधा कृष्ण की पुकार की प्रतीक्षा में जन्मांतरों की अनंत पगडंडी के कठिनतम मोड़ पर अडिग खड़ी है!
जन्मांतरों से, जन्मांतरों तक…
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का समापन, पल्लवी की आवाज़ में
Itihaas
Itihaas
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Itihaas
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Narrator
इतिहास खण्ड – भाग -4
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये चतुर्थ खंड है
इतिहास खंड में 7 कविताएँ हैं।
महाभारत का युद्ध समापन की ओर है।
राधा, आम्र मंजरी से अपनी मांग भरे, उसी अशोक वृक्ष के नीचे खड़ी प्रतीक्षा कर रही है की महाभारत की अवसान बेला में, अपनी अठारह अक्षोहिणी सेनाओं के विनाश के बाद, खिन्न, उदासीन और आहत कृष्ण, अगर वापस आये, तो वो पुनः उन्हें नन्हे बालक सा अपने आँचल में समेट लेगी
सम्पूर्ण रचना राधा के आधार पर चलती है, परन्तु वह प्रश्नों के माध्यम से आधुनिक नारी की मानसिकता को भी व्यक्त करती है
अस्तित्व की समस्या, युद्ध की समस्या को कहीं कहीं व्यंग्य और मानवीकरण के रूप में उठाया गया है इन् कविताओं में
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का तृतीय खंड- सृष्टि संकल्प, पल्लवी की आवाज़ में
Srishti Sankalp
Srishti Sankalp
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Srishti Sankalp
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Narrator
सृष्टि संकल्प – भाग -3
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये तृतीय खंड है
सृष्टि संकल्प में तीन कविताएँ हैं
कृष्ण जा चुके हैं
राधा विरह के दर्द से उद्वेलित है। वो नही समझ पा रही है कि अगर वो अपने कनु के मन में बसती है, और निखिल सृष्टि वो खुद है, यदि महासाग, हिमशिखर, मेघ घटाएं, सबमें वो ही व्याप्त है, तो फिर वो एकांत में भयभीत क्यों हो जाती है?
राधा विरह के क्षणों में वेदना से, आग्रह से, दर्द से अपने कनु को बार बार यही ज्ञात करने में प्रयत्नशील रहती है कि समस्त सृष्टि में बस राधा है और उसका कनु
राधा का मानसिक उद्वेलन व द्वंद अत्यंत खूबसूरती से इन तीनो कविताओं से व्यक्त होता है


