अंगूठी – ममता कालिया – शैफाली कपूर
ऑफिस का एक मित्र रजत गुप्ता अपने सहकर्मी मिस्टर चावला के घर शनिवार दोपहर खाने पर आता है ।खाना -खाने के बाद अचानक उसे लगता है कि उसके हाथ की सोने की अंगूठी शायद सोफे के किनारे फस गई है ।अब क्या था घर में हलचल मच जाती है सोफे को अलट -पलट सभी तरीके से देखा जाता है ,पर वह अंगूठी नहीं मिलती ।ऐसी दशा में मिस्टर चावला को बैठे-बिठाए क्या- क्या मुसीबत सहनी पड़ रही है ?क्या हुआ उस अंगूठी का, क्या वाकई वह अंगूठी मिल पाई ?रजत गुप्ता की अंगूठी क्या वास्तव में सोफे में थी या कहीं और खोई थी? ऐसे बहुत सारे प्रश्नों की गुत्थी को सुलझा पायेंगे, जब सुनेंगे ममता कालिया के द्वारा लिखी गई कहानी अंगूठी ,शैफाली कपूर की आवाज़ में…
अंगूठी – ममता कालिया – शैफाली कपूर
ऑफिस का एक मित्र रजत गुप्ता अपने सहकर्मी मिस्टर चावला के घर शनिवार दोपहर खाने पर आता है ।खाना -खाने के बाद अचानक उसे लगता है कि उसके हाथ की सोने की अंगूठी शायद सोफे के किनारे फस गई है ।अब क्या था घर में हलचल मच जाती है सोफे को अलट -पलट सभी तरीके से देखा जाता है ,पर वह अंगूठी नहीं मिलती ।ऐसी दशा में मिस्टर चावला को बैठे-बिठाए क्या- क्या मुसीबत सहनी पड़ रही है ?क्या हुआ उस अंगूठी का, क्या वाकई वह अंगूठी मिल पाई ?रजत गुप्ता की अंगूठी क्या वास्तव में सोफे में थी या कहीं और खोई थी? ऐसे बहुत सारे प्रश्नों की गुत्थी को सुलझा पायेंगे, जब सुनेंगे ममता कालिया के द्वारा लिखी गई कहानी अंगूठी ,शैफाली कपूर की आवाज़ में…
अंगूठी – ममता कालिया – शैफाली कपूर
ऑफिस का एक मित्र रजत गुप्ता अपने सहकर्मी मिस्टर चावला के घर शनिवार दोपहर खाने पर आता है ।खाना -खाने के बाद अचानक उसे लगता है कि उसके हाथ की सोने की अंगूठी शायद सोफे के किनारे फस गई है ।अब क्या था घर में हलचल मच जाती है सोफे को अलट -पलट सभी तरीके से देखा जाता है ,पर वह अंगूठी नहीं मिलती ।ऐसी दशा में मिस्टर चावला को बैठे-बिठाए क्या- क्या मुसीबत सहनी पड़ रही है ?क्या हुआ उस अंगूठी का, क्या वाकई वह अंगूठी मिल पाई ?रजत गुप्ता की अंगूठी क्या वास्तव में सोफे में थी या कहीं और खोई थी? ऐसे बहुत सारे प्रश्नों की गुत्थी को सुलझा पायेंगे, जब सुनेंगे ममता कालिया के द्वारा लिखी गई कहानी अंगूठी ,शैफाली कपूर की आवाज़ में…
मेला – ममता कालिया – शैफाली कपूर
कहानी में प्रयागराज में लगे कुंभ मेले का दृश्य है जहां दूर-दूर से लाखों की संख्या में लोग अपने पाप को धोने के लिए संगम में डुबकी लगाने आते हैं। क्या मात्र डुबकी लगाकर पाप से मुक्त हुआ जा सकता है ?क्या वास्तव में अध्यात्म को भी एक पेशे की दृष्टि से अपनाया जाता है? आस्था ,परंपरा इन सब बातों का अद्भुत संगम है इस कहानी में। इसी बात को रोचक ढंग से आधार बनाकर ममता कालिया ने कहानी मेला का ताना-बाना बुना है,जिसे शेफ़ाली कपूर ने उतने ही अनोखे अंदाज़ से अपनी आवाज़ से निखारा है।
मेला – ममता कालिया – शैफाली कपूर
कहानी में प्रयागराज में लगे कुंभ मेले का दृश्य है जहां दूर-दूर से लाखों की संख्या में लोग अपने पाप को धोने के लिए संगम में डुबकी लगाने आते हैं। क्या मात्र डुबकी लगाकर पाप से मुक्त हुआ जा सकता है ?क्या वास्तव में अध्यात्म को भी एक पेशे की दृष्टि से अपनाया जाता है? आस्था ,परंपरा इन सब बातों का अद्भुत संगम है इस कहानी में। इसी बात को रोचक ढंग से आधार बनाकर ममता कालिया ने कहानी मेला का ताना-बाना बुना है,जिसे शेफ़ाली कपूर ने उतने ही अनोखे अंदाज़ से अपनी आवाज़ से निखारा है।
सेवा – ममता कालिया – शैफाली कपूर
पुरुषोत्तम सहाय की पत्नी करीब 15 दिनों से अस्पताल में कोमा की स्थिति में पड़ी है। पुरुषोत्तम सहाय अकेले ही अपनी पत्नी की सेवा कर रहे हैं। कहने को पुरुषोत्तम सहाय की दो शादी-शुदा बेटियां, पुत्र, पुत्र-वधू ,पोता सभी है पर ऐसी स्थिति में अपनी उस मां के लिए जिसने ता-उम्र अपने पति और बच्चे की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया ,आज वही बच्चे क्या अस्पताल में जाकर मां की सेवा करना चाह भी रहें हैं या फिर मात्र औपचारिकता (formality) निभा रहे हैं ?ऐसी स्थिति में पुरुषोत्तम सहाय अपने बच्चों से क्या उम्मीद कर रहा है। पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं ममता कालिया के द्वारा लिखी गई कहानी सेवा ,शेफाली कपूर की आवाज़ में
बोलने वाली लड़की – ममता कालिया – शैफाली कपूर
कॉलेज के दिनों से दीपशिखा अपना नाम हमेशा अग्निशिखा बतलाती थी, क्योंकि उसे अग्नि की तरह प्रज्वलित रहना पसंद था ।बोलने में निडर ,वाचाल ।उसके इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर कपिल ने दीपशिखा से विवाह किया किंतु शादी के बाद कपिल को दीपशिखा के यही गुण क्यों अच्छे नहीं लग रहे? क्या दीपशिखा भी अपने ससुराल में गुमसुम हो जाएगी? सुनिए बेहद भावपूर्ण कहानी बोलने वाली लड़की, शैफ़ाली कपूर की आवाज़ में।
दूसरा देवदास – ममता कालिया – शैफाली कपूर
एक युवा संभव हरिद्वार हर की पौड़ी अपनी नानी के यहां आया हुआ है। गंगा आरती का विहंगम दृश्य के बाद जब एक मंदिर जाता है तो उस मंदिर में उसे एक गुलाबी साड़ी पहने एक खूबसूरत युवती उसी के बगल में पूजा करती हुई नज़र आती है। संभव के मन में उस युवती के प्रति एक आकर्षण महसूस होता है, किंतु बाद में भीड़ में वह कहीं नज़र नहीं आती है इस पर संभव दुबारा उस युवती से मिलने के लिए बेहद विचलित हो जाता है। क्या पुनः दोनों का आमना-सामना हो पाएगा? क्या संभव अपने दिल की बात उससे कह पाएगा? पूरी कहानी जानने के लिए सुनिए ममता कालिया के द्वारा लिखी गई कहानी दूसरा देवदास, शैफ़ाली कपूर की आवाज़ में…
अंगूठी – ममता कालिया – शैफाली कपूर
ऑफिस का एक मित्र रजत गुप्ता अपने सहकर्मी मिस्टर चावला के घर शनिवार दोपहर खाने पर आता है ।खाना -खाने के बाद अचानक उसे लगता है कि उसके हाथ की सोने की अंगूठी शायद सोफे के किनारे फस गई है ।अब क्या था घर में हलचल मच जाती है सोफे को अलट -पलट सभी तरीके से देखा जाता है ,पर वह अंगूठी नहीं मिलती ।ऐसी दशा में मिस्टर चावला को बैठे-बिठाए क्या- क्या मुसीबत सहनी पड़ रही है ?क्या हुआ उस अंगूठी का, क्या वाकई वह अंगूठी मिल पाई ?रजत गुप्ता की अंगूठी क्या वास्तव में सोफे में थी या कहीं और खोई थी? ऐसे बहुत सारे प्रश्नों की गुत्थी को सुलझा पायेंगे, जब सुनेंगे ममता कालिया के द्वारा लिखी गई कहानी अंगूठी ,शैफाली कपूर की आवाज़ में…
वो कौन था | आवाज़- शेफ़ाली कपूर
इस कहानी में लॉर्ड डफ़रिन की एक अनूठी घटना है, जिसमें उन्होंने इरिश गाँव में एक रात एक भूतिया दृश्य देखा और फिर दस सालों बाद पेरिस में एक होटल में एक लिफ्ट ऑपरेटर को पहचाना जो उसी भूतिया दृश्य में था। लॉर्ड डफरिन ने लिफ्ट में नहीं बैठकर अपने और अपने सचिव की जान बचाई, क्योंकि लिफ्ट का हादसा हुआ और सभी की मौके पर मौत हो गई। कहानी में एक रहस्यमय और एक रोमांचक बात यह है कि वह व्यक्ति आखिर कौन था? जिसे देखकर लॉर्ड डफ़रिन ने लिफ्ट में न जाने का निर्णय लिया था और अंत में उस व्यक्ति का कोई सुराग क्यों नहीं मिल पाया ?जो एक व्यक्ति की जिंदगी को बचा सकता है।
मेला – ममता कालिया – शैफाली कपूर
कहानी में प्रयागराज में लगे कुंभ मेले का दृश्य है जहां दूर-दूर से लाखों की संख्या में लोग अपने पाप को धोने के लिए संगम में डुबकी लगाने आते हैं। क्या मात्र डुबकी लगाकर पाप से मुक्त हुआ जा सकता है ?क्या वास्तव में अध्यात्म को भी एक पेशे की दृष्टि से अपनाया जाता है? आस्था ,परंपरा इन सब बातों का अद्भुत संगम है इस कहानी में। इसी बात को रोचक ढंग से आधार बनाकर ममता कालिया ने कहानी मेला का ताना-बाना बुना है,जिसे शेफ़ाली कपूर ने उतने ही अनोखे अंदाज़ से अपनी आवाज़ से निखारा है।
आपकी छोटी बेटी – ममता कालिया – शैफाली कपूर
जबकि एक ही मां -बाप की दो बेटियां हैं पपीहा और टुन्ना। मां-बाप अपनी बड़ी बेटी जो की कॉलेज छात्रा होने के साथ ही साथ स्टेज की नामी कलाकार भी है उसके गुणों का गुणगान करने में कोई कसर नहीं रखते। वहीं दूसरी ओर उनकी 13 साल की छोटी बेटी टुन्ना जो कि पढ़ने में भी अच्छी होने के साथ ही साथ बेहद संस्कारी भी है।उसके इन गुणों के होने के बावजूद कहीं ना कहीं उसे उपेक्षित महसूस कराते रहते हैं ।टुन्ना की मासूमियत इस कारण अपने को बड़ी बहन की तुलना में निम्न ही समझने लगी है। परंतु क्या किसी की पारखी नज़र टुन्ना को इस बात का एहसास दिला पायेगा कि वह भी अपनी दीदी से कुछ कम तो नहीं। दिल को छू लेने वाली ममता कालिया की कहानी सुने आपकी छोटी बेटी, शैफाली कपूर की आवाज़ में…
आपकी छोटी बेटी – ममता कालिया – शैफाली कपूर
जबकि एक ही मां -बाप की दो बेटियां हैं पपीहा और टुन्ना। मां-बाप अपनी बड़ी बेटी जो की कॉलेज छात्रा होने के साथ ही साथ स्टेज की नामी कलाकार भी है उसके गुणों का गुणगान करने में कोई कसर नहीं रखते। वहीं दूसरी ओर उनकी 13 साल की छोटी बेटी टुन्ना जो कि पढ़ने में भी अच्छी होने के साथ ही साथ बेहद संस्कारी भी है।उसके इन गुणों के होने के बावजूद कहीं ना कहीं उसे उपेक्षित महसूस कराते रहते हैं ।टुन्ना की मासूमियत इस कारण अपने को बड़ी बहन की तुलना में निम्न ही समझने लगी है। परंतु क्या किसी की पारखी नज़र टुन्ना को इस बात का एहसास दिला पायेगा कि वह भी अपनी दीदी से कुछ कम तो नहीं। दिल को छू लेने वाली ममता कालिया की कहानी सुने आपकी छोटी बेटी, शैफाली कपूर की आवाज़ में…
धीरेंद्र अस्थाना की कहानी मुहिम में, समाज में जो निर्धन और धनी के बीच बीच में जो भेदभाव है| उसी के चलते एक बालक मन ना चाहते हुए भी किस तरह जाने -अनजाने में गलत रास्ते पर, क्राइम की राह पर चल पड़ता है?किस तरह उसके मन में क्राइम को सच समझ लेने की मुहिम पैदा हो जाती है
जो अपनी मदद करता है, ईश्वयर उसी की मदद करते हैं।कैसे ?जानते हैं सूर्यकांत त्रिपाठी द्वारा लिखी गई कहानी महावीर और गाड़ीवान, निधि मिश्रा की आवाज में
गैंडा- मोटी चमड़ी का , थोड़ा कुरूप सा दिखने वाला प्राणी। राज मेहरा, सुपर्णा की बचपन की सहेली थी और स्कूल कॉलेज की हर प्रतियोगिता में पूरे समय बराबर रहकर अन्त में बाज़ी मार ले जाती थी । जब काफ़ी समय बाद दोनो सहेलियाँ मिली तो अपने सुदर्शन फौजी पति के सामने राज के मोटे काले पति को देखकर सुपर्णा को ना जाने क्यों बहुत सन्तोष हुआ था। पर जब रूपसी वाचाल राज , सुपर्णा के घर रहने आयी और सहेली के पति को ही पुरस्कार की तरह जीत लिया, तब सुपर्णा ये विश्वासघात सहन ना कर पायीं. फिर सुपर्णा ने उस आघात को कैसे झेला? क्या एक पत्नी , सहेली के सामने एक बार फिर हार गयी या उसने एक ऐसा कदम उठाया जिसके बारे में राज ने कल्पना भी ना करी थी . जानिए शिवानी की इस कहानी “गैंडा “ में … ((सुनिए शिवानी जी की लेखनी का जादू इस कहानी गैंडा में , जहाँ एक सहेली और पत्नी के मनोभवों को बड़ी सुंदरता और सजीवता से प्रस्तुत किया गया है )
एक भावपूर्ण खत एक पुत्र का अपने पिता के लिए इंसान कितना भी बड़ा क्यों ना हो जाए जो इसने हैं जो स्नेह उसे अपने माता-पिता से प्राप्त होता है दुनिया में किसी और से प्राप्त नहीं हो सकता इसी अहसास को प्रेरित करता हुआ यह पत्र जानने के लिए सुनते हैं आकांक्षा पारे द्वारा लिखी गई कहानी डियर पापा अमित तिवारी जी की आवाज में
कुसुम नवीन बाबू जी की पुत्री है। शादी के बाद उसका पति उससे किसी भी तरह का कोई वैवाहिक संबध नहीं रखता है। कुसुम को इस बात का कारण नहीं समझ आ रहा ।मायके से वो अपने पति को इसी संदर्भ में कई पत्र लिखती जिसमें पूर्ण सम्पर्ण की पराकाष्ठा उडेल देने के बाबजूद उसका पति उसे कोई उत्तर नहीं देता। आगे जानने के लिये कि आखिर क्या वज़ह है कि कुसुम के साथ ऐसा व्यवहार होने का,क्या कुसुम अपने आत्म सम्मान की रक्षा कैसे करती है सुनते हैं प्रेमचंद जी के द्वारा लिखी कहानी कुसुम सुमन वैद्य जी की आवाज़ में..।
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