अच्छा ही तो है‚ दहेज के लालचियों से क्या करनी शादी। कहीं तो ये कड़ी टूटे…दहेज देते और लेते जाने की लड़के वाले अर्पिता की छोटी ननद को देखने आते हैं |लड़के वालों ने उनके सामने दहेज की लंबी चौड़ी मांग कर दी है |इस बात से काफी छोटी ननद काफी आहत है ,किंतु अर्पिता अपने समय को याद करते हुए सोच रही है कि कभी इस परिवार ने भी तो अर्पिता के मां -बाप के सामने दहेज की मांग की थी की मांग रखी थी |पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं मनीषा कुलश्रेष्ठ के द्वारा लिखी गई कहानी कड़ी दर कड़ी ,पूजा श्रीवास्तव की आवाज में
प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जो कब , कैसे , किसके लिए महसूस होगी , ये कह पाना कब सम्भव हुआ है? अविनाश, एक फ़ौजी अफ़सर, जिसकी पहली शादी का अनुभव बहुत ही तकलीफ़देह रहा था, उसने शादी ना करने का मन बना लिया था । सुधा, एक आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी, रूप- गुण युक्त एक स्वावलंबी महिला थी। और उसने भी शादी को कुछ ख़ास तवज्जो नहीं दी थी। और फिर, नीलांजना , बचपन को पीछे छोड़ती वो रूपसी तरुणी जिसके लिए दुनिया रंगो से सजी जीवंत तस्वीर जैसा था । इन तीनो किरदारो के जीवन तार एक दूसरे से कैसे उलझते है , आइए सुनते है मनीषा कुलश्रेष्ठ की भावनाओं में डूबती उतराती इस कहनी “ अधूरी तसवीरें” मे..,
कहानी में नायिका का पति कहीं दूर चला गया है|समाज एक अकेली स्त्री को मात्र बस एक ‘देह’ समझता है और नायिका इन्हीं परिस्थितियों से गुजर रही है| यह परिस्थितियां नायिका को एक लिजलिजा एहसास का अनुभव करा रही है | जानते हैं मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा लिखी गई कहानी “”एक लिजलिजा एहसास “,पूजा श्रीवास्तव की आवाज में..
शान्तनु, अशोक की नीलांजना दीदी को , दीदी कभी नहीं बुला पाया. शान्तनु का किशोर मन शायद नीलांजना के रूप सौन्दर्य से इतना प्रभावित नहीं था जितना उसकी कुशाग्र बुद्धि और आत्मविश्वास से भरे सौम्य व्यक्तित्व से। .. .. शान्तनु का किशोरावस्था का प्यार क्या नीलांजना समझ पायी थी? क्या परिवार के सहयोग के बिना भी नीलांजना अपने भविष्य को सवार पायी थी? क्यो शान्तनु ने नीलांजना को सम्बोधित किया वीरांगना के नाम से , जानिए मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी वीरांगना में
“अपने परिवार पर लगी खुशियों के ग्रहण पर, अपने पति को अपने में समेटता हुआ देखने की पीडा के बारे में, अपने बेटे के कालिख पुते वर्तमान और उसके अंधियारे भविष्य पर। सोचती हूँ, उन लोगों के बारे में जो सजायाफ्ता होकर भी राजनीति में उंची कुर्सियों पर बैठे हैं, क्योंकि उनके केस राजनीति में आने से पहले खारिज हो जाते हैंया माफ कर दिये जाते हैं लेकिन उन भूल से किये गये अपराधों के युवा अपराधियों का क्या जिन्हें अच्छे चरित्र और उच्च शिक्षा के बाद छोटी सी भी सजा मिलने के बाद कोई सरकारी नौकरी नहीं मिलती। सोचती हूँ, जेल के घुटन भरे माहौल में पल पल काटते अपने बाईस साल के युवा बेटे के बारे में उसके पिता की खामोश पीडा के बारे में। “ इस निराशा के बीच वो उम्मीद की किरण कहाँ से ढूँढ कर लाती है- सुनिए कहनी “नयी सम्भावनाओ का आकाश मे”
प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जो कब , कैसे , किसके लिए महसूस होगी , ये कह पाना कब सम्भव हुआ है? अविनाश, एक फ़ौजी अफ़सर, जिसकी पहली शादी का अनुभव बहुत ही तकलीफ़देह रहा था, उसने शादी ना करने का मन बना लिया था । सुधा, एक आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी, रूप- गुण युक्त एक स्वावलंबी महिला थी। और उसने भी शादी को कुछ ख़ास तवज्जो नहीं दी थी। और फिर, नीलांजना , बचपन को पीछे छोड़ती वो रूपसी तरुणी जिसके लिए दुनिया रंगो से सजी जीवंत तस्वीर जैसा था । इन तीनो किरदारो के जीवन तार एक दूसरे से कैसे उलझते है , आइए सुनते है मनीषा कुलश्रेष्ठ की भावनाओं में डूबती उतराती इस कहनी “ अधूरी तसवीरें” मे..,
यह कहानी एक सांवली सी लड़की फिरदौस की है और फरजाना उसकी अन्य दो बहने गोरी और सुंदर है सब की शादियां खूब धूमधाम से होती है उन्हीं की एक बड़ी बहन है फिरदौस कद काठी नाक नक्श अच्छे हैं किंतु सांवला रंग |घर के कामों में वह निपुण है किंतु उदासीन और सहमी सहमी रहती है उसका सांवला रंग उसके व्यक्तित्व को उदासीन बना रहा है क्या उसके जीवन में भी खुशियां आती हैं पूरी कहानी जाने के लिए सुनते हैं मनीषा कुलश्रेष्ठ के द्वारा लिखी गई कहानी एक सांवली सी परछाई पूजा श्रीवास्तव की आवाज में
तान्या— आज के वक़्त की एक पढ़ी लिखी स्वावलंबी लड़की है . माता पिता से दूर एक बड़े शहर में अच्छी नौकरी करती है। वो आजकल के तौर तरीक़ों यानी की जब तक हो सके शादी बच्चे जैसी जिम्मेदारियो से अलग एक स्व्छन्द जीवन जीना चाहती है । माता पिता अक्सर उसके विवाह की बात छेड़ते रहते है और वो टालती रहती है । फिर ऐसा क्या होता है की रिश्तों से दूर भागने वाली तान्या बदलने लगती है ? कहानी तान्या दीवान में आपको हम सबको ज़िंदगी की बड़ी सामयिक झलक दिखेगी
1947 में हुए देश के बँटवारे ने देश के नक़्शों और सीमाओं के साथ ना जाने कितने परिवारो और लोगों की ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल डाली थी। ताहिरा, अपने परिवार के साथ आज फिर हिंदुस्तान के उस ही शहर में थी जहाँ वो दुल्हन बन कर आयी थी । वो आना नहीं चाहती थी पर शायद आना भी चाहती थी , एक बार और … नववधु सुधा को उसके तरुण पति के गालों पर गुलाल मलते और शरारत से हँसने का सुंदर दृश्य उसे आज भी ज्यों का त्यों याद था .. ताहिरा और सुधा का क्या सम्बंध है ? ताहिरा को सुधा की याद क्यों रुला गयी .. देश के बँटवारे में ये क्या हुआ था? पूजा श्रीवास्तव की आवाज़ में सुनिए शिवानी जी की लिखी कहानी “लाल हवेली “ में क़िस्सा ताहिरा और सुधा का
Female Protrayal in Bollywood with Anandita Bhasin
चन्द्रदेव एक ताल्लुकेदार का युवक पुत्र था। अपने मित्र देवकुमार के साथ मसूरी के ग्रीष्म-निवास में सुख और स्वास्थ्य की खोज में आया था। इनकी मुलाकात एक श्याम वर्ण युवती नेरा से होती है जो सांप पकड़ने का काम करती है आगे कहानी में क्या होता है जानने के लिए सुनते हैं जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखी गई कहानी सुनहरा सांप, शिवानी आनंद की आवाज में
एक सज्जन ने देखा की यहाँ आनेवालों को समय के ज्ञान के बिना बड़ा कष्टे होता है। अतएव उस पुण्यात्मा ने बड़े व्यय से एक घंटाघर उस नए बने मकान के ऊपर लगवा दिया। रात के अंधकार में उसका प्रकाश, और सुनसानी में उसका मधुर स्वर क्या पास के और क्या दूर के, सबके चित्त को सुखी करता था। वास्तव में ठीक समय पर उठा देने और सुला देने के लिए, एकांत में पापियों को डराने और साधुओं को आश्वा सन करने के लिए वह काम देने लगा। एक सेठ ने इस घंटे की (हाथ) (सूइयाँ) सोने की बनवा दीं और दूसरे ने रोज उसकी आरती उतारने का प्रबंध कर दिया। पूजा पाठ और कल कांडों को जोड़ती कहानी हे घंटाघर
रेवती एक आधुनिक युग की लड़की है जिसे रूढ़िवादी विचार न तो पसंद हैं और न ही वह उन्हें अपना सकती है। वह हर कदम पर समाज से लड़ते हुए अंत में अपने बॉस प्रशांत से विवाह का निर्णय लेती है जोकि उसकी बिरादरी का नही है।
भगवान कबीर दास जी ने एक जगह लिखा है जियत बाप को पानी न पूछे, मरे गंग नहलाये |जब तक मां बाप जीवित होते हैं तब उनकी कोई सेवा नहीं करना चाहता परंतु उनकी मृत्यु के बाद लोग दिखावे के लिए श्राद्ध का ऐसा विराट आयोजन होता है कि आश्चर्य होता है मालती जी की कथा बुंदेली पुट लिए हुए हैं भाग्यवान बुढ़िया
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