Maa Katyayani
नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। मां दुर्गा की छठवीं शक्ति कात्यायनी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।
कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया।
इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। ये वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं।
मांडवी और उर्मिला का यह अद्भुत त्याग और समर्पण सीता के समान महान था, जो उन्होंने अपने पतियों और परिवार के प्रति दिखाया।
बालि की पत्नी तारा, रामायण में एक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व है। किष्किंधा नगर की सम्राज्ञी तारा सुंदर थीं, लेकिन उनके साथ वाकचातुर्य और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। इसलिए वाल्मीकि ऋषि ने उन्हें रामायण में सभी स्त्रियों में सर्वाधिक महत्व दिया है।वानर समाज में पुरुषों की प्रमुखता थी। स्त्रियाँ केवल भोग्य वस्त्र थीं। सुग्रीव की कनिष्ठ पत्नी का दर्जा उसने स्वीकार करने की शुरुआत की। तारा की कितनी ही मानसिक पीड़ा हो, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन वे अपने पुत्र के भविष्य और वानर समुदाय के हित के लिए सभी पीड़ा को खुशी से सहन किया। रामायण में तारा जैसी उत्कृष्ट स्त्री कोई और नहीं है|
अहिल्या, महर्षि गौतम की पत्नी हैं। अनेक हिन्दू शास्त्रों में उनकी कथा का वर्णन है, जिसमें देवराज इंद्र द्वारा उनके साथ किए गए छल, उनके पति द्वारा उनकी निष्कामता के लिए श्राप, और उनके श्राप से मुक्ति की वर्णन है जो भगवान राम द्वारा होती है।
कौशल्या दक्षिण राज्य कौशल के राजा सुकौशल और रानी अमृत प्रभा की पुत्री थी। वह राजा दशरथ की प्रथम पत्नी थी और प्रभु श्री राम की मां। उन्होंने एक पुत्री को जन्म दिया था, जिसका नाम था शांता। शिकार के दौरान राजा दशरथ को मिली कैकेयी, जो उनकी दूसरी पत्नी थी और भरत की मां। कैकेयी युद्ध कला में पारंगत थीं और श्री राम के लिए अत्यंत प्रिय थीं। उन्होंने भरत को राजगद्दी प्राप्त करवाने के लिए श्री राम को 14 वर्ष का वनवास दिलवाया। द्वापर युग में, कैकेयी ने देवकी के रूप में पुनर्जन्म लिया।
रामायण, भारतीय साहित्य की अनुपम कृति, जिसमें नारी शक्ति के अद्वितीय आयामों का गहराई से चित्रण किया गया है, इस नवरात्रि “रामायण की 9 महान नारी शक्तियाँ”- नौ असाधारण महिला पात्रों की कहानियों के माध्यम से, नारी शक्ति की अनेक स्वरूपों को प्रस्तुत करती है।अनुपम रमेश किंगर की सुमधुर आवाज़ में इन कहानियों को सुनना न केवल आपको भावविभोर कर देगा बल्कि आपको नारी शक्ति की अदम्य गाथा के प्रत्येक पहलू से रूबरू भी कराएगा। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ “गाथा” पर उपलब्ध है
पूर्वराग – भाग -1
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये प्रथम खंड है
पूर्वराग के पांचों गीत राधा के निश्चल मन की सम्वेदना को प्रकट करते हैं.
भोली राधा, प्रतीक्षा में खड़े छायादार अशोक वृक्ष से असमंजस्य से पूछती है कि वह क्यों उसकी, यानी कनुप्रिया की प्रतीक्षा में कई जन्मों से पुष्पहीन खड़े हैं? राधा के सौन्दर्य, नारी सुलभ लज्जा एवं पुलक का खूबसूरत चित्रण है.
कनु अर्थात कृष्ण का प्रेम आत्मा का प्रेम है, समर्पण का प्रेम है.
इन गीतों में राधा के प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति है. राधा के प्रेम में निश्छल भावनाओं की स्थिति है. प्रकृति के कण कण में कनु की छवि देखना, यमुना में नहाते समय कृष्ण को निहारना, गृहकार्य से अलसाकर कदम्ब की छांह में शिथिल अनमनी पड़ी रहना- जैसे अनेक भाव प्रेषण चित्रण इन गीतों में झिलमिलाए हैं.
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का पहला खंड पूर्वराग, पल्लवी की आवाज़ में
Maa Kalratri
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।
नवरात्रि के सातवें दिन यानी महासप्तमी को माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। जैसा उनका नाम है, वैसा ही उनका रूप है। खुले बालों में अमावस की रात से भी काली, मां कालरात्रि की छवि देखकर ही भूत-प्रेत भाग जाते हैं। मां का वर्ण काला है।
इस देवी के तीन नेत्र हैं।
सुधा अरोड़ा की कहानी करवाचौथी औरत स्त्रियों की स्थिति पर एक तीखा व्यंग्य है।
यह कहानी बड़े ही चुटीले अंदाज़ में समाज की उस मानसिकता को उजागर करती है, जहाँ स्त्री का व्रत, उसका त्याग और उसका प्रेम परिवार के लिए उतनी अहमियत नहीं रखता, जितना एक पालतू कुत्तिया के नखरे और लाड़–प्यार रखते हैं।
लेखिका इस तुलना के माध्यम से यह बताती हैं कि किस तरह एक औरत, जो करवाचौथ जैसे व्रत पर अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए दिनभर भूखी-प्यासी रहती है, उसकी भावनाएँ और उसके बलिदान की उपेक्षा कर दी जाती है। घर के लोग उसे वह सम्मान और संवेदना नहीं देते, जिसकी वह हक़दार है। बल्कि, उसके स्थान पर एक कुत्तिया के छोटे–मोटे नखरे और इच्छाएँ ज़्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
इस कहानी का व्यंग्य केवल चुभता ही नहीं, बल्कि पाठकों को गहराई से सोचने पर मजबूर करता है—
👉 आखिर समाज में औरत की जगह कहाँ है?
👉 उसका व्रत, उसकी निष्ठा और उसका त्याग क्यों अक्सर हल्के में लिया जाता है?
👉 क्या एक औरत का अस्तित्व केवल परंपराओं और व्रतों तक सीमित है?
सुधा अरोड़ा की लेखनी में व्यंग्य का यह तीखा पुट, हमें समाज के आईने में झाँकने पर मजबूर करता है और यह सोचने पर विवश करता है कि— क्या आज भी स्त्री की असल अहमियत पहचानी जा रही है?
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