महात्मा गांधी को गोली मार दी गई”। इस खबर से सारा देश सन्न रह गया। अटकलें लगने लगी, कि गोली मारने वाला मुसलमान शरणार्थी था । लेकिन फिर सब दंग रह गए। बापू, महात्मा, जिनके लिए सरहद कोई मायने नहीं रखती थी। वह हम सबके थे।
मेहराँ अपने हरे -भरे घर को देखती है और सुख में भीग जाती है। छह वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद उसकी गोद भरी थी। आज तीन बेटों और दो बेटियों की माँ है। मेहराँ की सास, दादी -अम्मा तो उठते -बैठते बोलती है, झगड़ ती है। झुकी कमर पर हाथ रख कर बाहर आती है, तो जो सामने हो ,उस पर बरसने लगती है। घर के पिछवाड़े जिसे दादी अम्मा अपनी चलती उम्र में कोठरी कहा करती थी। उसी में आज वह अपने पति के साथ रहती है। मेहराँ तो कुछ ना कुछ कह कर चोट करने से भी नहीं चूकती। लड़ने में तो दादी भी कम नहीं पर, दोपहर को जब नौकर अम्मा के यहाँ से अनछुई थाली उठा लाया तो मेहराँ का माथा ठनका। अम्मा के पास जाकर बोली खाने का मन ना हो तो अम्मा दूध ही पी लो। दादी अम्मा ने न हाँ, कहा न ना । मेहराँ सास के ठंडे हो रहे पैरों को छूकर याचना भरी दृष्टि से बिछुरती आँखों से बोली, अम्मा बहुओं को आशीष देती जाओ। मेहराँ के गीले कंठ में आग्रह था, विनय थी।
यूनुस खान एक क्रांतिकारी है जो लोग काफिर है उनके लिए उसके दिल में कोई हमदर्दी नहीं है लेकिन यूनुस खान को एक खून से लथपथ एक छोटी बच्ची जब दिखती है जो कि काफिर है उसका कठोर दिल भी पिघल जाता है और क्या रिश्ता है उस बच्ची और यूनुस खान के बीच में पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं कृष्णा सोबती की लिखी कहानी मेरी मां कहां अमित तिवारी जी की आवाज
मेहराँ अपने हरे -भरे घर को देखती है और सुख में भीग जाती है। छह वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद उसकी गोद भरी थी। आज तीन बेटों और दो बेटियों की माँ है। मेहराँ की सास, दादी -अम्मा तो उठते -बैठते बोलती है, झगड़ ती है। झुकी कमर पर हाथ रख कर बाहर आती है, तो जो सामने हो ,उस पर बरसने लगती है। घर के पिछवाड़े जिसे दादी अम्मा अपनी चलती उम्र में कोठरी कहा करती थी। उसी में आज वह अपने पति के साथ रहती है। मेहराँ तो कुछ ना कुछ कह कर चोट करने से भी नहीं चूकती। लड़ने में तो दादी भी कम नहीं पर, दोपहर को जब नौकर अम्मा के यहाँ से अनछुई थाली उठा लाया तो मेहराँ का माथा ठनका। अम्मा के पास जाकर बोली खाने का मन ना हो तो अम्मा दूध ही पी लो। दादी अम्मा ने न हाँ, कहा न ना । मेहराँ सास के ठंडे हो रहे पैरों को छूकर याचना भरी दृष्टि से बिछुरती आँखों से बोली, अम्मा बहुओं को आशीष देती जाओ। मेहराँ के गीले कंठ में आग्रह था, विनय थी।
आजादी के पावन पर्व पर जब पूरी नगरी सज रही थी । तब कोठों पर भी रंग बिरंगी झालर सजाई जा रही थी। शम्मो जान का कोठा भी जगमगा रहा था ।मुन्नी बाई ने शम्मोजान से पूछा कि यह आजादी का जश्न आज क्यों हो रहा है? हम तो कब के आजाद हो चुके हैं! है ना ! तो क्या वास्तव में आजादी सभी को मिल सकी है ? क्या वास्तव में मुन्नी जान जैसी कितनी ही मुन्नीजान आजाद है ?
यूनुस खान एक क्रांतिकारी है जो लोग काफिर है उनके लिए उसके दिल में कोई हमदर्दी नहीं है लेकिन यूनुस खान को एक खून से लथपथ एक छोटी बच्ची जब दिखती है जो कि काफिर है उसका कठोर दिल भी पिघल जाता है और क्या रिश्ता है उस बच्ची और यूनुस खान के बीच में पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं कृष्णा सोबती की लिखी कहानी मेरी मां कहां अमित तिवारी जी की आवाज
नारी अपना पूरा जीवन घर बनाने में लगा देती है ।फिर भी उस घर में निर्णय लेने का अधिकार उसे क्यों नहीं दिया जाता ? क्यों हमेशा घर का आदमी ही निर्णय लेने का अधिकारी होता है ? लेकिन छाया को यह बात अब गवारा नहीं है। इसलिए उसने निर्णय लिया और पति को जता भी दिया कि जितना अधिकार उसका है घर पर, उतना ही अधिकार छाया का भी है।
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भाभी ब्याह कर आई थी तो मुश्किल से 15 बरस की होगी। आजाद फिजा में पली, हिरिनयों की तरह कुलाचें भरती। चार-पाँच साल के अंदर भाभी को घिस घिसाकर वाकई सब ने ग्रहस्थन बना दिया। दो -तीन बच्चों की माँ बन कर भद्दी और ठुस्स हो गई। भैया को मेकअप ,फैशनेबल कपड़े, कटे बालों से नफरत थी ।भाभी ने भी बनना- सँवरना छोड़ दिया। लेकिन फैशनेबल शबनम को देखकर भैया मंत्रमुग्ध हो गए और भाभी को तलाक देकर उसे अपनी बेगम बना लिया। कुछ ही सालों में शबनम भी वैसे ही फैल गई। भैया एक बार फिर मिस्री रक्कासा पर फिदा हो गए दूसरी नई- नवेली लचकती हुई लहर, उनकी पथरीली बाँहों में समाने के लिए बेचैन और बेकरार थी।
रामा बेहद भद्दा बेडौल था। लेकिन उसका मन उतना ही सुंदर और भोला था ।इसी से रामा हमें बेहद अच्छा लगता था। घर में सभी कामों के लिए नौकर थे इसलिए हमारी जिम्मेदारी रामा को सौंपी गई ।हम रामा को बहुत परेशान करते थे ।एक दिन माँ से खूब विनती के उपरांत रामा हम सबको मेला दिखाने ले गया । एक को कंधे पर उठाकर दूसरे का हाथ पकड़कर और तीसरेको साथ रहने का कहकर वह मेला दिखाने लगा । मैं भीड़ में खो गई ।वह बेहाल हो गया मुझे ढूँढता रहा । घर आकर इस बात के लिए उसे खूब डाँट पड़ी ।उसका वात्सल्य , उसका प्रेम हमारे प्रति कभी कम ना हुआ।
जिस अवकाश के समय को लोग आमोद प्रमोद के लिए सुरक्षित रखते हैं उसी को मैं इस खंडहर और उसके क्षत-विक्षत चरणों पर पछाड़े खाती हुई भागीरथी के तट पर सुख से काट देती हूँ। कब और कैसे मुझे उन बालकों को कुछ सिखाने का ध्यान आया मैं नहीं जानती। मेरे विद्यार्थी पीपल की छाया में मेरे चारों ओर एकत्र हो गए। वह गोधूलि मुझे अब तक ना भूली जब एक मलिन स्त्री ने मुझे कुछ शब्दों और कुछ संकेतों से कहा कि उसके अकेले लड़के को भी और बच्चों के साथ बैठने दिया करूँ। तो यह कुछ तो सीख सकें । वह घीसा था जिसकी सचेत आँखों में ना जाने कौन सी जिज्ञासा भरी थी । जब उन लोगों को मुझे छोड़ जाना था तब मेरा मन बहुत ही अधीर हो उठा। मैं घीसा को ढूँढ रही थी । हार कर मैं चली किंतु अंधेरे में एक काला धब्बा आता दिखा। वह घीसा था। उसके दोनों हाथों में एक बड़ा तरबूज था ।घीसा के पास न पैसा था ना खेत। तब क्या वह इसे चुरा लाया है? मन का संदेह बाहर आया। तब पता चला कि घीसा आज नया कुर्ता दे आया और उसके बदले में मेरे लिए तरबूज लाया है। किंतु चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि गर्मी में वह कुर्ता पहनता ही नहीं।
जब कवि सम्मेलन में नेताओं की ऐसी फजीहत देखी तो मेरे तन बदन में आग लग गई। मैंने अपनी कहानी द्वारा कवि महाशय को प्रत्युत्तर देने के लिए एक सर्वगुण संपन्न नेता को गरीब परिवार में जन्म दिया। किंतु गरीबी के कारण वह पथ से भ्रष्ट होकर चोर बन गया । मैंने उसको खत्म कर दिया ,और एक बार फिर हौसला करके एक नए नेता की नए परिवेश में रचना की। वह करोड़पति सेठ के घर जन्मा किंतु उसकी रईसी ने उसे पथ से डिगा दिया और मुझे उसको भी खत्म करना पड़ा। लेकिन अब फिर एक बार हिम्मत न जुटा पाई और मैं हार गई।
पैसे की चाहत में हम कभी कभी अपने अपने सबसे प्रिय और उपयोगी चीज का भी सौदा करने से पहले नहीं सोचते | ऐसा ही कुछ बड़ी संजीदगी के साथ उल्लेख किया गया है अंजना वर्मा जी की कहानी सौदा में, सुनते हैं विनीता श्रीवास्तव की आवाज में…
वृद्धाश्रम में रहने वाला हर इंसान अपने आप ना जाने कितनी कहानियाँ समेटे होता है। स्वभाव में विपरीत सख़ुबाई और आनंदी की मित्रता होती है एक वृद्धाश्रम , आश्रय में. वृद्धाश्रम के निवासियों के जीवन की कहानी और उनके वहाँ पहुँचने के सफ़र का बड़ा सजीव चित्
अरुण वर्मा एक ईमानदार फॉरेस्ट ऑफिसर है |ईमानदारीसे किसी भी तरीके से समझौता न करने के कारण अरुण वर्मा का बार-बार तबादला करा दिया जाता है |इस बार तो अरुण वर्मा ने एमएलए के भतीजे का ट्रक पकड़ा है |इस बात का क्या प्रभाव पड़ेगा अरुण वर्मा की जिंदगी में ?क्या वह सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता छोड़ देगा या फिर अपनी बात पर अडिग रहेगा| जानने के लिए सुनते हैं सूर्यबाला के द्वारा लिखी गई कहानी होगी जय, होगी जय… हे पुरुषोत्तम नवीन , निधि मिश्रा की आवाज में
कहानी का नायक शेखर अपने मां के मृत्यु का समाचार प्राप्त करके दुखी है| शेखर के मानसिक व्यथा को जानने के लिए सुनते हैं अज्ञेय के द्वारा लिखी गई कहानी दुख और तितलियां ,सुमन वैद्य जी की आवाज में
कमज़ोर और टूटन भरे हिस्से दिखाते हैं। उन पलों में यकायक सारे फासले ख़त्म हो जाते हैं, सारी दीवारें ढह जाती हैं। अगर ये क्षण न आयें तो सारी उम्र साथ गुज़ारने पर भी दो प्रेमी अजनबी ही बने रहते हैं। इन क्षणों से गुजरने के लिए थोड़ा सा साहस चाहिए होता है और बहुत बहुत सारा विश्वास। इन क्षणों से गुज़रना आग से गुज़रना है जिसके बाद या तो सब जलकर नष्ट हो जाता है या तपकर रिश्ता फौलाद सा मजबूत हो जाता है। एक प्रेमी युगल अपने बीते हुए दिनों में हुई गलतियों के बारे में एक दूसरे से कन्फेक्शन कर रहे हैं कहानी में जानते हैं कि उनके कन्फेशन से उनके आपसी संबंधों में क्या प्रभाव पड़ता है पल्लवी त्रिवेदी के द्वारा लिखी गई कहानी कन्फेशन, ये कैसे क्षण आते हैं प्रेमी प्रेमिका के जीवन में जब वे एक दूसरे को अपने निजी स्पेस में आमंत्रित कर अपने सबसे सीले, अमित तिवारी जी की आवाज
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