जब कवि सम्मेलन में नेताओं की ऐसी फजीहत देखी तो मेरे तन बदन में आग लग गई। मैंने अपनी कहानी द्वारा कवि महाशय को प्रत्युत्तर देने के लिए एक सर्वगुण संपन्न नेता को गरीब परिवार में जन्म दिया। किंतु गरीबी के कारण वह पथ से भ्रष्ट होकर चोर बन गया । मैंने उसको खत्म कर दिया ,और एक बार फिर हौसला करके एक नए नेता की नए परिवेश में रचना की। वह करोड़पति सेठ के घर जन्मा किंतु उसकी रईसी ने उसे पथ से डिगा दिया और मुझे उसको भी खत्म करना पड़ा। लेकिन अब फिर एक बार हिम्मत न जुटा पाई और मैं हार गई।
सयानी बुआ का नाम वास्तव में ही सयानी था या उनके सयानेपन को देखकर लोग उन्हें सयानी कहने लगे थे, । बचपन में ही वे समय की जितनी पाबंद थीं, अपना सामान संभालकर रखने में जितनी पटु थीं, और व्यवस्था की जितना कायल थीं, उसे देखकर चकित हो जाना पडता था| कहानी में सयानी बुआ के चरित्र को और अच्छे से समझने के लिए मनु भंडारी जी के द्वारा लिखी गई कहानी सयानी बुआ सुनते हैं माधवी शंकर जी की आवाज में
तीसरा आदमी उस जिम्मेदार मध्यवर्गीय व्यक्ति की कहानी है, जो रोज़-रोज़ की तौल-मटोल में कहीं खो गया है।
घर में, दफ्तर में, हर जगह अपनी जगह जमी रही “दूसरी आवाज़” ने उसकी पहचान का हिस्सा बन लिया। लेकिन अब वह उसी आवाज़ से बाहर आकर अपनी सच्ची पहचान तलाशना चाहता है।
मन्नू भंडारी ने इस कहानी में उस तीसरे आदमी को उतारा है — जो न पूरी तरह ‘पहला’ है, न ‘दूसरा’। वो है उस खुद की आवाज़ की तलाश में…
📋 सारांश
शेरा बाबू दफ्तर में छोटे-क्लर्क की नौकरी करता है; घर में पत्नी, ससुराल, बेहतर दर्जे की नौकरी — सब उसका वजूद घेर लेते हैं।
उस पर लगातार दबाव बनता रहा, उसकी भूखें, उसकी आवाज़ों, उसकी आत्मा की कहानियाँ दबती गईं।
वो एक पत्रिका निकालने की योजना बनाता है — लेकिन एक स्व-सृजित आवाज़ बनने का सपना पूरा नहीं हो पाता।
कहानी का “तीसरा आदमी” वह है — वह आवाज़ जो उसने दबाई है, वह व्यक्ति जो उसने बनने से इंकार कर दिया है।
अंत में, वो उसी स्थिति में है — पूरे अस्तित्व के साथ ज़िंदा, लेकिन अपनी आवाज़ खो चुका — अपने भीतर उभरे प्रश्नों के साथ।
🔍 सुनने की वजह
इस कहानी में आपको मिलेगा अपने अंदर की आवाज़ का प्रतिबिंब — जो रोज़ कोई ‘दूसरा’ बनकर खामोश हो जाता है।
कहानी की भाषा सरल लेकिन बहुत गहरी है — मन्नू भंडारी की विशिष्ट शैली में, आप महसूस कर सकते हैं जीवन-थकान, चाह लेकिन चुप्पी, और अंत में एक सशक्त विरोध।
Gaatha पर सुनना विशेष इसलिए होगा क्योंकि रूप-रेखा नहीं, भावना-दस्ताना सुनाई देगी — शब्दों के हल्के काँप-सकते स्वर, भीतर की हलचल, और वहीं-वहीं ठहरी हुई पहचान की आवाज़।
कहानी में नायिका संजय से बहुत प्रेम करती है| नायिका को कोलकाता एक इंटरव्यू के सिलसिले में जाना है वहां उसका एक पुराना प्रेमी निशिथ रहता है|जिसे नायिका अब बहुत पीछे छोड़ चुकी है कोलकाता में नायिका की मुलाकात निशिथ से होती है निशिथ नायिका की हर तरीके से मदद करता है क्या वह निशिथ का प्रेम है या कुछ और? पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं मन्नू भंडारी द्वारा लिखी गई कहानी यही सच है ,पूजा श्रीवास्तव की आवाज में आवाज में
बेहद भावुक कर देने वाली मनु भंडारी जी के द्वारा लिखी गई कहानी जिसमें समाज बीमार व्यक्ति की चिंता करता है किंतु उस व्यक्ति का कोई ख्याल नहीं रखता जो उसकी दिन-रात सेवा करता है कहानी में अम्मा जो अपने खाने-पीने और सोने का ध्यान ना रखते हुए अपने अपने कैंसर से पीड़ित बीमार पति की दिन-रात सेवा करती है उनके पति की मृत्यु हो जाती है तब भी क्या किसी का ध्यान अम्मा के ऊपर जाता है जानते हैं आरती श्रीवास्तव की आवाज में कहानी मुक्ति
सोमा बुआ एक बूढ़ी, गरीब और अकेली महिला है जिसका जवान पुत्र 20 साल पहले गुजर गया है |पति भी घर-बार त्याग कर तीरथ वासी बन गया है किंतु सोमा बुआ दूसरों की खुशियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर अपनी खुशी और अपना अकेलापन दूर करने की कोशिश करती है किंतु क्या समाज भी उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर पाता है और वह प्यार व सम्मान दे पाता है जैसा वह दूसरों को देना चाहती है भावुक कर देने वाली देने वाली मन्नू भंडारी की कहानी है अकेली आरती श्रीवास्तव जी की आवाज में |
इस्मत चुग़ताई की कहानी “सॉरी मम्मी” एक संवेदनशील लेकिन व्यंग्यपूर्ण झलक है आधुनिक परिवार और माँ-बेटे के रिश्ते की जटिलताओं पर।
कहानी में चुग़ताई अपने विशिष्ट अंदाज़ में पश्चिमी प्रभाव, घरेलू संबंधों की दूरी और भावनात्मक विडंबना को उजागर करती हैं।
मुख्य पात्र एक माँ और उसके बेटे के बीच का रिश्ता है — जो अब प्यार से ज़्यादा औपचारिकता और अपराधबोध से भरा है।
बेटा आधुनिक, पढ़ा-लिखा और अपने करियर में व्यस्त है। वह माँ से दूर रहता है और जब कभी बात करता है, तो सिर्फ़ एक शब्द कहता है — “Sorry Mummy!”
यह “सॉरी” सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि पूरी पीढ़ी की भावनात्मक दूरी और असहायता का प्रतीक बन जाता है।
💠 कहानी का मूल भाव
इस कहानी में इस्मत चुग़ताई ने दिखाया है कि किस तरह आधुनिक जीवन की तेज़ रफ़्तार और स्वार्थी व्यस्तता ने माँ-बेटे के रिश्ते से आत्मीयता छीन ली है।
माँ अपने बेटे के बचपन, उसके प्यार और उसकी ज़रूरतों को याद करती है — पर अब उसके पास सिर्फ़ ठंडे संदेश और औपचारिक माफ़ियाँ बची हैं।
💠 मुख्य संदेश
कहानी सवाल उठाती है —
क्या “Sorry” कहना ही रिश्ते निभाने का विकल्प बन गया है?
क्या आधुनिकता ने संवेदनाओं को ‘इमोशनलेस एक्सप्रेशन’ में बदल दिया है?
“सॉरी मम्मी” हमें भीतर तक झकझोरती है और यह एहसास कराती है कि माँ का स्नेह और अपनापन किसी टेक्स्ट या शब्द में नहीं समा सकता।
💠 इस्मत चुग़ताई की शैली
उनकी भाषा में सादगी है लेकिन भावनाओं में गहराई।
कहानी व्यंग्य और करुणा का ऐसा मिश्रण है, जो पाठक को मुस्कुराते हुए रुला देता है।
यह कहानी सुनने योग्य क्यों है:
क्योंकि हर किसी के जीवन में कहीं न कहीं एक “सॉरी मम्मी” छुपा है —
एक अधूरी बात, एक अनकहा प्यार, और एक पछतावे की गूंज।
सफर छोटा हो या बड़ा , अगर हम सफर अच्छा हो, तो सफर अच्छा हो जाता है। वरना वास्तव में सफर करना पड़ता है। नई नवेली दुल्हन जब पहली बार पीहर जाती है तो कितने ही मीठे सपने लेकर जाती है लेकिन कई बार यह सपने चूर-चूर हो जाते हैं। तब सवाल उठता है पूरी जिंदगी काटने का।
जब किसी औरत के सिर से उसके पति का साया उठ जाता है तो समाज, बिरादरी, रिश्तेदारी में उसकी कोई इज्जत नहीं रह जाती ।मान सम्मान नहीं रह जाता है । हर शख्स उसे बिना तनख्वाह का नौकर मान लेता है और ऐसे हालात के मारे बच्चे की परवरिश ऊपर वाले के हाथ होती है। कल्लू की जिंदगी में ऐसा मोड़ आया कि उसकी जिंदगी ही बदल गई।
‘साहब मर गया’ जयंत राम ने बाजार से लाए हुए सौदा के साथ यह खबर लाकर दी। वह काना साहब -जैक्सन । वह मजे से सक्खू बाई को झोंटे पकड़कर पीटता था। फ्लोमीना और पीटू को मारता था ।मैंने एक दिन मौका पाकर सक्खू बाई को पकड़ा’ क्यों कमबख्त ! यह पाजी तुम्हें मारता है । तुझे शर्म नहीं आती? रोज कभी मारता है बाई? वह बहस करने लगी। तुझे शर्म नहीं आती सफेद चमड़ी वाले की जूतियाँ सहती है । इन लुटेरों ने हमारे मुल्क को कितना लूटा है? तुम्हें इसका इतना दर्द क्यों होता है? काहे को नहीं होगा दर्द? वह हमारा मर्द है ना ! वह शक्ल से रोबीला और खूबसूरत था। ऊँची पहुँच वाले बाप की बेटी डोर्थी से शादी करने के बाद भी उसका छिछोरापन कम ना हुआ।
रोजी मेरे पिताजी के राजकुमार विद्यार्थी द्वारा दी गई एक कुत्ती थी। एक रोज जब हम आम की डाल पर झूल – झूल कर अपने संग्रहालय का निरीक्षण कर रहे थे, तब हमने देखा कि रोजी़ मुँह में किसी जीव को दबाए हुए ऊपर आ रही है। आकार में वह गिलहरी से बढ़ा न था पर आकृति में स्पष्ट अंतर था। रामा उसे रुई की बत्ती से दूध पिलाता। कुछ ही दिनों में वह स्वस्थ और पुष्ट होकर हमारा साथी हो गया। बाबू जी से यह सुनकर कि हमारे लिए टट्टू आया है , हम उससे रुष्ट और अप्रसन्न ही घूमते रहे पर अंत में उसने हमारी मित्रता प्राप्त कर ही ली। नाम रखा गया रानी। फिर हमारी घुड़सवारी का कार्यक्रम आरंभ हुआ। एक छुट्टी के दिन दोपहर में सबके सो जाने पर हम रानी को खोलकर बाहर ले आए। मेरे बैठ जाने पर भाई ने अपने हाथ की पतली संटी उसके पैरों में मार दी। इससे ना जाने उसका स्वाभिमान आहत हो गया या कोई दुखद स्म्रति उभर आयी । वह ऐसे वेग से भागी मानो सड़क पर नदी- नाले सब उसे पकड़कर बाँध रखने का संकल्प किए हो। कुछ दूर मैंने अपने आप को उस उड़न खटोले पर सँभाला परंतु गिरना तो निश्चित था !
हमारी भारतीय समाज में पति विहीन नारी की हमेशा उपेक्षा की जाती है |हमारी मानसिकता अभी भी नहीं बदली पति कैसा भी हो स्त्री का सुहाग होता है ,किंतु उसके बिना जैसे उस स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं रहता और उसका वजूद महा शून्य में तब्दील हो जाता है इसी संदर्भ में सुनते हैं इस मार्मिक कहानी को महा शून्य को मालती जोशी जी की आवाज में
विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें बंधकर हर लड़की को अपने प्रियजनों से विदा लेनी पड़ती है। हेम भी इसी बंधन में बंध कर अपने पिता से दूर अपने ससुराल चली आई थी किंतु तब ये किसने जाना था कि यह विदा एक दिन अनंत कालीन विदा बन जाएगी|
मि. कानूनी कुमार, एम.एल.ए. अपने आँफिस में समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और रिपोर्टों का एक ढेर लिए बैठे हैं। देश की चिन्ताओं से उनकी देह स्थूल हो गयी है; सदैव देशोद्वार की फिक्र में पड़े रहते हैं जिन कानूनी कुमार जी का देश की समस्याओं से मन हमेशा परेशान रहता है आखिर उनके घर की कानून व्यवस्था के का क्या हाल है जानने के लिए सुनते हैं हैं प्रेमचंद्र जी के द्वारा लिखी गई कहानी मिस्टर कानूनी कुमार ,सुमन वैद्य जी की आवाज में
रूढ़िवादी परिवार से होने तथा पति के द्वारा दी गई यातना के बावज़ूद एक अबला सी लगने वाली महिला कैसे करोड़ों रुपए की कंपनी की मालकिन बनी? जानिए अबला से सबला बनने का पूरा सफ़र भारती सुमारिया जी का ,आम आदमी की खास कहानी में….
जीवन में फैशन, पैसे की प्रति एक-दूसरे से होड़ , पाश्चात्य संस्कृति को हमेशा फॉलो करते रहना जैसी कई बातें बहुत शीघ्रता से हावी हो जाती है |हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं कहीं कुछ कम, तो कहीं कुछ ज्यादा| तो उसी तरीके से मीडिया एक इतनी खतरनाक चीज है कि जिसमें आज की तारीख में कोई संस्कृति और सभ्यता कोई समाज के प्रति लगाव जैसी चीज नहीं रह गई हैं | मीडिया नाम की संस्था वही लोग चला रहे हैं जिनके पास सिर्फ दंगा भड़काऊ बातें हैं, इन बातों से समाज में क्या प्रभाव पड़ेगा इस बात से बेफिक्र होकर समाज को किस गर्त में पहुंचा रहे हैं ? जानिए इन बातों को कहानी जो मारे जाएंगे में…
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