कुबरा जवान थी। कौन कहता था कि कुबरा जवान थी ? वह तो जैसे बिस्मिल्लाह के दिन से ही अपनी जवानी की आमद की सुनावनी सुनकर ठिठक कर रह गई थी। ना जाने कैसी जवानी आई थी, कि ना तो उसकी आँखों में किरने थी। ना उसके रुखसारों के ऊपर जुल्फें परेशान हुई। ना उसके सीने पर तूफान उठे ।और ना उसने सावन भादो की घटाओं से मचल-मचल कर प्रीतम यह सावन माँगे।
जब मैंने पहली बार उन्हें देखा तो वह रहमान भाई की खिड़की में बैठी लंबी-लंबी गालियाँ और कोसने दे रही थी । उस दिन पहली दफा मुझे मालूम हुआ कि हमारी इकलौती सगी फूपी, बादशाही खानम है। हर ईद- बकरीद को मेरे अब्बा मियां बेटों को लेकर सीधे फूपी अम्मा के यहाँ कोसने और गालियाँ सुनने जाया करते। मरते दम तक भाई- बहन का मिलन न हुआ । जब अब्बा मियां पर फालिश का चौथा हमला हुआ और बिल्कुल ही वक्त आ गया तो हलहलाती, छाती कूटती, सफेद पहाड़ की तरह भूचाल लाती हुई बादशाही खानम उसी ड्यूटी पर उतरी जहाँ अब तक उन्होंने कदम नहीं रखा था।
रामअवतार लाम पर से वापस आ रहा था। बूढ़ी मेहतरानी अब्बा मियां से चिट्ठी पढ़वाने आई थी। अभी उसकी शादी को रचाए साल भर भी न बीता था कि राम अवतार की पुकार आ गई। ब्याह कर आई तो क्या मसमसी थी गौरी नाम की गौरी थी पर कमबख्त स्याह बहुत थी। हाँ आवाज में बला की कूक थी। गौरी क्या थी, बस एक मरखना लंबे सींग वाला बजार था, कि छुटा फिरता था । रत्तीराम के आने के बाद वह बिल्कुल बदल गई ।लेकिन गाँव वालों को दाल में कुछ काला नजर आ रहा था। सब राम अवतार के लौटने का इंतजार कर रहे थे।
आज छठा दिन था। बच्चे स्कूल छोड़े घरों में बैठे ,अपनी और सारे घर वालों की जिंदगी मुसीबत किए दे रहे थे । कोई और मामूली दिन होता तो कमबख्तों से कहा जाता कि बाहर मुँह काला करके गदर मचाओ। लेकिन चंद रोज से शहर का वातावरण इतना खराब था कि शहर के सारे मुसलमान एक तरह से नजरबंद थे। झटपट सामान बँधने लगा। अम्मा ने जाने से साफ इनकार कर दिया। लाख समझाने के बावजूद वे राजी़ न हुई । सारा घर खाली हो गया ।और अम्मा उजाड़ सहन में आकर खड़ी हुई तो उनका बूढ़ा दिल नन्हे से बच्चे की तरह सहम कर कुम्हला गया।
जब किसी औरत के सिर से उसके पति का साया उठ जाता है तो समाज, बिरादरी, रिश्तेदारी में उसकी कोई इज्जत नहीं रह जाती ।मान सम्मान नहीं रह जाता है । हर शख्स उसे बिना तनख्वाह का नौकर मान लेता है और ऐसे हालात के मारे बच्चे की परवरिश ऊपर वाले के हाथ होती है। कल्लू की जिंदगी में ऐसा मोड़ आया कि उसकी जिंदगी ही बदल गई।
भाभी ब्याह कर आई थी तो मुश्किल से 15 बरस की होगी। आजाद फिजा में पली, हिरिनयों की तरह कुलाचें भरती। चार-पाँच साल के अंदर भाभी को घिस घिसाकर वाकई सब ने ग्रहस्थन बना दिया। दो -तीन बच्चों की माँ बन कर भद्दी और ठुस्स हो गई। भैया को मेकअप ,फैशनेबल कपड़े, कटे बालों से नफरत थी ।भाभी ने भी बनना- सँवरना छोड़ दिया। लेकिन फैशनेबल शबनम को देखकर भैया मंत्रमुग्ध हो गए और भाभी को तलाक देकर उसे अपनी बेगम बना लिया। कुछ ही सालों में शबनम भी वैसे ही फैल गई। भैया एक बार फिर मिस्री रक्कासा पर फिदा हो गए दूसरी नई- नवेली लचकती हुई लहर, उनकी पथरीली बाँहों में समाने के लिए बेचैन और बेकरार थी।
सफर छोटा हो या बड़ा , अगर हम सफर अच्छा हो, तो सफर अच्छा हो जाता है। वरना वास्तव में सफर करना पड़ता है। नई नवेली दुल्हन जब पहली बार पीहर जाती है तो कितने ही मीठे सपने लेकर जाती है लेकिन कई बार यह सपने चूर-चूर हो जाते हैं। तब सवाल उठता है पूरी जिंदगी काटने का।
भाभी जान औसत दर्जे की खूबसूरत दुबली- पतली लड़की थी। जो शादी के बाद चंद ही सालों में फफोले की तरह नाजुक बन गयीं। शादी के दूसरे ही साल इन का सिलसिला हर वक्त थूकने और कै करने में गुजरने लगा। गदीले पोतड़े इस जोर -शोर से सिलने लगे जानो कल ही परसों में जच्चगी होने वाली है। मोटे ताबीजों से जिस्म पर तिल धरने की जगह ना रही ।जच्चगी अलीगढ़ में होगी ऐसा हुक्म पाकर भाभी जान के सफर की तैयारी शुरू हुई। डिब्बा पूरा अपने लिए रिजर्व था। ज्यूँ ही रेल रेंगी डिब्बे का दरवाजा खुला और एक कँवारी घुसने लगी । कुली ने बहु तेरा घसीटा मगर वह चलती रेल के पायदान पर ढीठ छिपकली की तरह लटक गयी।और रेंग कर गुसल खाने के दरवाजे से पीठ लगा कर हाँफने लगी । बी मुगलानी ने पूछा क्या पूरे दिन से हैं ?उसने हाँ में सिर हिलाया ।उसके चेहरे की सारी रगे खिँचने लगी। वह दर्द को घोटने लगी और बिल्कुल भाभी जान की जूतियाों के पास लाल-लाल गोश्त की बोटी आन पड़ी ।आड़ी होकर उसने उसे उठा लिया। फिर उसने ओढ़नी से धज्जी फाड़ कर नाल को कसकर बाँध दिया ।खुर्जा पर गाड़ी रुकी तो उसने डिब्बे का दरवाजा खोला और पैर तौलती हुई उतर गई।
कहते हैं कि जिंदगी बेशक छोटी हो लेकिन इज्जत वाली होनी चाहिए और अगर जिंदगी लंबी हुई मगर बिना इज्जत की तो किस काम की? लोगों के टुकड़ों पर पलना, दूसरों की जूठन खाना, भीख माँगना , चोरी करना यह कोई जिंदगी तो नहीं । जिस उम्र में अपनों के सहारे की जरूरत होती है उस उम्र में अगर अपने ही अकेला छोड़ जाए तो——।
लड़की देखने जाने के लिए उतावला परिवार होटल पहुँचता है। और वहाँ पर लड़की के पिता को स्वागत के लिए ना पाकर नाराज होता है । जब लड़की अपनी माँ के साथ आती है तो अफसर पुत्र के पिता उसकी लंबाई नापते हैं। और वास्तविक रंग देखने के लिए लड़की को मुँह धोने के लिए कहते हैं ।उसके बाद तो वहाँ का सारा माहौल बदल जाता है।
अनकहा सच – Malti Joshi (मालती जोशी) – Arti Srivastava
अपना घर अपना ही होता है फिर चाहे उसमें कितनी कमियाँ क्यों ना हो । लेकिन घर बनता है परिवार से और परिवार की मुख्य स्तंभ होती है माँ । माँ जिसकी हर खुशी हम से जुड़ी होती है और जब हम माँ से दूर जाते हैं तो वह पल – पल हमारे लौट आने की राह देखती है। हमारे सुखी जीवन के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है। लेकिन कभी-कभी हमें समझने में बहुत देर हो जाती है।
नरेंद्र के मन में एक प्रश्न डंक की भांति परेशान कर रहा है| यह प्रश्न उसकी मां सुशीला के स्त्रीत्व की पवित्रता को लेकर है |क्या नरेंद्र अपनी मां से अपने प्रश्नों का उत्तर ले पाएगा ?क्या वास्तव में में सुशीला के जीवन में इसके पीछे कोई कहानी थी ?सुशीला अपनी पवित्रता नरेंद्र को समझा पाएगी ? पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं गजानन माधव मुक्तिबोध के द्वारा लिखी गई कहानी प्रश्न सुमन वैद्य जी की आवाज में….
उस दिन मैं बिना कुछ सोचे हुए ही भाई निराला जी से पूछ बैठी थी,” आपके किसी ने राखी नहीं बांधी?” ” कौन बहन हम जैसे भुक्कड़ को भाई बनावेगी?” मे, उत्तर देने वाले के एकांकी जीवन की व्यथा थी, या चुनौती ? यह कहना कठिन है ।पर जान पड़ता है किसी अन्य चुनौती के आभास ने ही मुझे उस हाथ के अभिषेक की प्रेरणा दी। उनके अस्त-व्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के असफल प्रयास का स्मरण कर मुझे आज भी हंसी आ जाती है। संयोग से उन्हें कहीं से ₹300 मिले। उन्होंने मुझे अपने खर्च का बजट बनाने का आदेश दिया। अस्तु : नमक से लेकर नापित तक और चप्पल से लेकर मकान के किराए तक का अनुमान- पत्र मैंने बनाया। उन्हें पसंद आया ।पर दूसरे ही दिन वह सवेरे आ पहुँचे। ₹50 चाहिए किसी विद्यार्थी की परीक्षा शुल्क भरना है वरना—–
कहानी का नायक ब्रजराज अपनी पत्नी इन्दो की बातों से विचलित रहता है | ब्रजराज के हृदय में एक अलग ही विरक्ति आ जाती है |और ब्रजराज घर छोड़ने का निश्चय कर लेता है |आगे क्या होता है ब्रजराज की जिंदगी में? पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखी गई कहानी भीख ,शिवानी आनंद की आवाज में
ताहदे नज़र एक बयाबान सा क्यू हैं – Malti Joshi (मालती जोशी) – Arti Srivastava
एक औरत जीवन साथी से धोखा खाने के बाद अपनी औलाद से उम्मीदें रखती है । लेकिन वही औलाद जब मुँह मोड़ ले , तो उसके पास जीने के लिए क्या रह जाता है ? रेखा ने हिम्मत नहीं हारी है । उसे उम्मीद है कि शायद एक दिन उसका बेटा ,सक्षम उसके पास लौट आएगा ।
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Veena R Srivastava
Rajesh
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Kavitarajbhar
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