भक्तिन का यह नाम मेरा दिया हुआ है। पाँच वर्ष की अवस्था में वह ब्याह दी गई और नौ वर्ष की बालावस्था में गौना भी कर दिया गया । गेंहुए रंग और बटिया जैसे मुख वाली कन्याओं को जन्म देने के कारण जेठानियाँ उसकी उपेक्षा करने लगी। पति की मृत्यु के पश्चात उसकी जायदाद पर जेठों की नजर थी। किंतु वह एक सुई की नोक के बराबर भी जायदाद देने को तैयार ना थी। अपनी जायदाद को बचाने के लिए उसने क्या किया?
रोजी मेरे पिताजी के राजकुमार विद्यार्थी द्वारा दी गई एक कुत्ती थी। एक रोज जब हम आम की डाल पर झूल – झूल कर अपने संग्रहालय का निरीक्षण कर रहे थे, तब हमने देखा कि रोजी़ मुँह में किसी जीव को दबाए हुए ऊपर आ रही है। आकार में वह गिलहरी से बढ़ा न था पर आकृति में स्पष्ट अंतर था। रामा उसे रुई की बत्ती से दूध पिलाता। कुछ ही दिनों में वह स्वस्थ और पुष्ट होकर हमारा साथी हो गया। बाबू जी से यह सुनकर कि हमारे लिए टट्टू आया है , हम उससे रुष्ट और अप्रसन्न ही घूमते रहे पर अंत में उसने हमारी मित्रता प्राप्त कर ही ली। नाम रखा गया रानी। फिर हमारी घुड़सवारी का कार्यक्रम आरंभ हुआ। एक छुट्टी के दिन दोपहर में सबके सो जाने पर हम रानी को खोलकर बाहर ले आए। मेरे बैठ जाने पर भाई ने अपने हाथ की पतली संटी उसके पैरों में मार दी। इससे ना जाने उसका स्वाभिमान आहत हो गया या कोई दुखद स्म्रति उभर आयी । वह ऐसे वेग से भागी मानो सड़क पर नदी- नाले सब उसे पकड़कर बाँध रखने का संकल्प किए हो। कुछ दूर मैंने अपने आप को उस उड़न खटोले पर सँभाला परंतु गिरना तो निश्चित था !
साधारणत: धोबियों का रंग साँवला पर मुख की गठान सुडौल होती है ।बिबिया ने यह विशेषता गेंहएँ रंग के साथ पाई है । उसका हँसमुख स्वभाव उसे विशेष आकर्षण देता है। सुडौल, गठीली शरीर वाली बिबिया को धोबिन समझना कठिन था। पर थी वह धोबिनों में भी सबसे अभागी धोबिन। अपना ही नहीं वह दूसरों का काम करके भी आनंद का अनुभव करती थी। पाँचवें वर्ष में ब्याह हो गया। पर गौने से पहले ही वर की मृत्यु ने इस संबंध को तोड़ दिया। जिस प्रकार उच्च वर्ग की स्त्री का गृहस्थी बसा लेना कलंक है उसी प्रकार नीच वर्ग की स्त्री का अकेला रहना सामाजिक अपराध है। कन्हैया ने उसका दोबारा ब्याह रचा दिया लेकिन——-
नीलाभ ग्रीवा के कारण मोर का नाम नीलकंठ और उसकी छाया के समान रहने के कारण मोरनी का नामकरण हुआ राधा। नीलकंठ ने अपने आप को चिड़ियाघर का सेनापति और संरक्षक नियुक्त कर लिया ।उसके अपत्य स्नेह का हमें ऐसा प्रमाण मिला कि हम विस्मित रह गए। एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ गया। नीलकंठ ने साँप को चोंच से घायल कर दो खंडों में विभाजित कर दिया। नीलकंठ और राधा साथ रहते थे किंतु नई मोरनी, कुब्जा को यह कतई पसंद नहीं था । वह नीलकंठ के साथ रहना चाहती थी । नीलकंठ व्याकुल रहने लगा और अंततः मर गया।
बेहद भावुक कर देने वाली मनु भंडारी जी के द्वारा लिखी गई कहानी जिसमें समाज बीमार व्यक्ति की चिंता करता है किंतु उस व्यक्ति का कोई ख्याल नहीं रखता जो उसकी दिन-रात सेवा करता है कहानी में अम्मा जो अपने खाने-पीने और सोने का ध्यान ना रखते हुए अपने अपने कैंसर से पीड़ित बीमार पति की दिन-रात सेवा करती है उनके पति की मृत्यु हो जाती है तब भी क्या किसी का ध्यान अम्मा के ऊपर जाता है जानते हैं आरती श्रीवास्तव की आवाज में कहानी मुक्ति
तीसरा आदमी उस जिम्मेदार मध्यवर्गीय व्यक्ति की कहानी है, जो रोज़-रोज़ की तौल-मटोल में कहीं खो गया है।
घर में, दफ्तर में, हर जगह अपनी जगह जमी रही “दूसरी आवाज़” ने उसकी पहचान का हिस्सा बन लिया। लेकिन अब वह उसी आवाज़ से बाहर आकर अपनी सच्ची पहचान तलाशना चाहता है।
मन्नू भंडारी ने इस कहानी में उस तीसरे आदमी को उतारा है — जो न पूरी तरह ‘पहला’ है, न ‘दूसरा’। वो है उस खुद की आवाज़ की तलाश में…
📋 सारांश
शेरा बाबू दफ्तर में छोटे-क्लर्क की नौकरी करता है; घर में पत्नी, ससुराल, बेहतर दर्जे की नौकरी — सब उसका वजूद घेर लेते हैं।
उस पर लगातार दबाव बनता रहा, उसकी भूखें, उसकी आवाज़ों, उसकी आत्मा की कहानियाँ दबती गईं।
वो एक पत्रिका निकालने की योजना बनाता है — लेकिन एक स्व-सृजित आवाज़ बनने का सपना पूरा नहीं हो पाता।
कहानी का “तीसरा आदमी” वह है — वह आवाज़ जो उसने दबाई है, वह व्यक्ति जो उसने बनने से इंकार कर दिया है।
अंत में, वो उसी स्थिति में है — पूरे अस्तित्व के साथ ज़िंदा, लेकिन अपनी आवाज़ खो चुका — अपने भीतर उभरे प्रश्नों के साथ।
🔍 सुनने की वजह
इस कहानी में आपको मिलेगा अपने अंदर की आवाज़ का प्रतिबिंब — जो रोज़ कोई ‘दूसरा’ बनकर खामोश हो जाता है।
कहानी की भाषा सरल लेकिन बहुत गहरी है — मन्नू भंडारी की विशिष्ट शैली में, आप महसूस कर सकते हैं जीवन-थकान, चाह लेकिन चुप्पी, और अंत में एक सशक्त विरोध।
Gaatha पर सुनना विशेष इसलिए होगा क्योंकि रूप-रेखा नहीं, भावना-दस्ताना सुनाई देगी — शब्दों के हल्के काँप-सकते स्वर, भीतर की हलचल, और वहीं-वहीं ठहरी हुई पहचान की आवाज़।
साधारणत: धोबियों का रंग साँवला पर मुख की गठान सुडौल होती है ।बिबिया ने यह विशेषता गेंहएँ रंग के साथ पाई है । उसका हँसमुख स्वभाव उसे विशेष आकर्षण देता है। सुडौल, गठीली शरीर वाली बिबिया को धोबिन समझना कठिन था। पर थी वह धोबिनों में भी सबसे अभागी धोबिन। अपना ही नहीं वह दूसरों का काम करके भी आनंद का अनुभव करती थी। पाँचवें वर्ष में ब्याह हो गया। पर गौने से पहले ही वर की मृत्यु ने इस संबंध को तोड़ दिया। जिस प्रकार उच्च वर्ग की स्त्री का गृहस्थी बसा लेना कलंक है उसी प्रकार नीच वर्ग की स्त्री का अकेला रहना सामाजिक अपराध है। कन्हैया ने उसका दोबारा ब्याह रचा दिया लेकिन——-
“लक्ष्मी अग्रवाल ने एसिड हमले के बाद सिर्फ अपने जीवन को नहीं बल्कि पूरे समाज की सोच को बदलने का प्रण लिया। उनकी साहसिकता और सक्रियता ने कई लोगों को प्रेरित किया है। उनके संघर्ष और उपलब्धियों के बारे में अधिक जानने के लिए Gaatha ऐप डाउनलोड करें और इस प्रेरणादायक कहानी को सुनें!”
इस्मत चुग़ताई की कहानी “सॉरी मम्मी” एक संवेदनशील लेकिन व्यंग्यपूर्ण झलक है आधुनिक परिवार और माँ-बेटे के रिश्ते की जटिलताओं पर।
कहानी में चुग़ताई अपने विशिष्ट अंदाज़ में पश्चिमी प्रभाव, घरेलू संबंधों की दूरी और भावनात्मक विडंबना को उजागर करती हैं।
मुख्य पात्र एक माँ और उसके बेटे के बीच का रिश्ता है — जो अब प्यार से ज़्यादा औपचारिकता और अपराधबोध से भरा है।
बेटा आधुनिक, पढ़ा-लिखा और अपने करियर में व्यस्त है। वह माँ से दूर रहता है और जब कभी बात करता है, तो सिर्फ़ एक शब्द कहता है — “Sorry Mummy!”
यह “सॉरी” सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि पूरी पीढ़ी की भावनात्मक दूरी और असहायता का प्रतीक बन जाता है।
💠 कहानी का मूल भाव
इस कहानी में इस्मत चुग़ताई ने दिखाया है कि किस तरह आधुनिक जीवन की तेज़ रफ़्तार और स्वार्थी व्यस्तता ने माँ-बेटे के रिश्ते से आत्मीयता छीन ली है।
माँ अपने बेटे के बचपन, उसके प्यार और उसकी ज़रूरतों को याद करती है — पर अब उसके पास सिर्फ़ ठंडे संदेश और औपचारिक माफ़ियाँ बची हैं।
💠 मुख्य संदेश
कहानी सवाल उठाती है —
क्या “Sorry” कहना ही रिश्ते निभाने का विकल्प बन गया है?
क्या आधुनिकता ने संवेदनाओं को ‘इमोशनलेस एक्सप्रेशन’ में बदल दिया है?
“सॉरी मम्मी” हमें भीतर तक झकझोरती है और यह एहसास कराती है कि माँ का स्नेह और अपनापन किसी टेक्स्ट या शब्द में नहीं समा सकता।
💠 इस्मत चुग़ताई की शैली
उनकी भाषा में सादगी है लेकिन भावनाओं में गहराई।
कहानी व्यंग्य और करुणा का ऐसा मिश्रण है, जो पाठक को मुस्कुराते हुए रुला देता है।
यह कहानी सुनने योग्य क्यों है:
क्योंकि हर किसी के जीवन में कहीं न कहीं एक “सॉरी मम्मी” छुपा है —
एक अधूरी बात, एक अनकहा प्यार, और एक पछतावे की गूंज।
अतृप्त आत्माओं से भरे एक महल की कथा जिसका एक एक पत्थर जिंदा व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
यह कहानी कृषक वर्ग की चुनौतियों को हमारे सामने रखती है जिसके चलते उन्हें कई बार अपनी जान तक देनी पड़ती है।
लीला ,लाला डंगामल पहली पत्नी है| जो पूरा जीवन लाला जी के लिए समर्पित कर देती है |किंतु लालाजी हमेशा उसकी उपेक्षा करते रहते हैं और अंत में मिला यही दर्द लेकर लीला मृत्यु को प्राप्त हो जाती है |अब लालाजी ने दूसरा विवाह कर लिया है| क्या लाला जी के जीवन में कुछ बदलाव आएगा या उनका व्यवहार वैसा ही रहेगा? पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं प्रेमचंद्र जी के द्वारा लिखी गई कहानी नया विवाह ,सुमन वैद्य की आवाज में
ये कहानी है एक ऐसे इंसान की जो एक जानवर को पाल के रखता है , और समय के साथ वो जानवर बड़ा होता जाता है , उस इंसान के घर में उसकी बीवी भी बहुत कलेश करती है क्युकी उसकी अपने पति से कुछ उमीदें और कुछ शक हैं जिनको वो अधूरा पति है , दूसरी और वो जानवर समय के साथ बड़ा होता जाता है , और वो उस इंसान को खाना चाहता है , फिर एक वक्त ऐसा आता है की उस जानवर जिसे कैद किया गया था इंसान में लड़ाई होती है ,,, कौन था वो जानवर ? और क्या हुआ इस लड़ाई में ? जानने के लिए सुनिए ये कहानी
कहानी की नायिका चंदा, हीरा नामक एक युवक से प्रेम करती है| इधर रामू भी चंदा को अपनी पत्नी बनाना चाहता है |रामू विश्वासघात करके हीरा पर चाकू से प्रहार करता है |क्या रामू की मंशा पूरी होती ?है क्या होता है कहानी में आगे ,पूरी कहानी जाने के लिए सुनते हैं जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखी गई कहानी चंदा, निधि मिश्रा की आवाज में
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