गुरु नानक देव जी सिख धर्म के गुरु है,गुरु नानक देव ने हमेशा अपने प्रवचनों में जातिवाद को मिटाने, सत्य के मार्ग पर चलने के उपदेश दिए हैं। आइए जानते हैं गुरु नानक के पद,रवि शुक्ला की आवाज में…
गुरु नानक देव जी सिख धर्म के गुरु है,गुरु नानक देव ने हमेशा अपने प्रवचनों में जातिवाद को मिटाने, सत्य के मार्ग पर चलने के उपदेश दिए हैं। आइए जानते हैं गुरु नानक के पद,रवि शुक्ला की आवाज में…
गुरु नानक देव जी सिख धर्म के गुरु है,गुरु नानक देव ने हमेशा अपने प्रवचनों में जातिवाद को मिटाने, सत्य के मार्ग पर चलने के उपदेश दिए हैं। आइए जानते हैं गुरु नानक के पद,रवि शुक्ला की आवाज में…
शान्तनु, अशोक की नीलांजना दीदी को , दीदी कभी नहीं बुला पाया. शान्तनु का किशोर मन शायद नीलांजना के रूप सौन्दर्य से इतना प्रभावित नहीं था जितना उसकी कुशाग्र बुद्धि और आत्मविश्वास से भरे सौम्य व्यक्तित्व से। .. .. शान्तनु का किशोरावस्था का प्यार क्या नीलांजना समझ पायी थी? क्या परिवार के सहयोग के बिना भी नीलांजना अपने भविष्य को सवार पायी थी? क्यो शान्तनु ने नीलांजना को सम्बोधित किया वीरांगना के नाम से , जानिए मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी वीरांगना में
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपनी बाल विधवा पड़ोसन से प्रेम तो करता है किंतु समाज और अन्य भय से कह नहीं पाता। वहीं उसका एक मित्र जो कि उसी से कविताएं सीखने आता है, उसी की लिखी कविताएं सुनाकर उसकी पड़ोसन से प्रेम विवाह कर लेता है।
सेवा – ममता कालिया – शैफाली कपूर
पुरुषोत्तम सहाय की पत्नी करीब 15 दिनों से अस्पताल में कोमा की स्थिति में पड़ी है। पुरुषोत्तम सहाय अकेले ही अपनी पत्नी की सेवा कर रहे हैं। कहने को पुरुषोत्तम सहाय की दो शादी-शुदा बेटियां, पुत्र, पुत्र-वधू ,पोता सभी है पर ऐसी स्थिति में अपनी उस मां के लिए जिसने ता-उम्र अपने पति और बच्चे की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया ,आज वही बच्चे क्या अस्पताल में जाकर मां की सेवा करना चाह भी रहें हैं या फिर मात्र औपचारिकता (formality) निभा रहे हैं ?ऐसी स्थिति में पुरुषोत्तम सहाय अपने बच्चों से क्या उम्मीद कर रहा है। पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं ममता कालिया के द्वारा लिखी गई कहानी सेवा ,शेफाली कपूर की आवाज़ में
Credit: Josh Talk
कहानी मनुष्य की उस मानसिकता की ओर इंगित करती है कि कभी-कभी प्रसिद्धि पाने और नाम कमाने की अति महत्वाकांक्षा में मनुष्य सही और गलत में अंतर नहीं कर पाता है | ऐसा ही कुछ कहानी के नायक गुरदास के साथ हो रहा है | बचपन से गुरदास के अंदर नाम कमाने और प्रसिद्ध होने की अति महत्वाकांक्षा कूट-कूट कर भरी हुई थी |दुर्भाग्य से उसके साथ कुछ ऐसा नहीं हुआ कि उसे प्रसिद्धि मिलती | गुरदास के बड़े होने पर भी यह महत्वाकांक्षा किस चरम सीमा तक पहुंच चुकी है? क्या उसका यह सपना पूरा हो पाता है ?अगर होता है ,तो कैसे ?यशपाल के द्वारा लिखी गई एक बेहद रोचक कहानी अख़बार में नाम , सुनते हैं नयनी दीक्षित की आवाज में…
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