हमारी कई बार ऐसी मनोस्थिति हो जाती है कि हमें अपने घर में ही वह प्रेम और शांति नहीं प्राप्त हो पाती है, जो घर के बाहर प्राप्त हो जाती है |कविता के माध्यम से इसी मनोभाव को प्रकट किया गया है…
ईश्वर से जब हम अपने को पूरी तरीके से जोड़ लेते हैं तब जीवन में किसी भी वाहय शक्ति का भय से पूर्णतया मुक्त हो जाते हैं |
प्रेम में होने पर अक्सर प्रेमी युगल अपनी कल्पना में अपनी प्रेमी अथवा प्रेमिका की तस्वीर बनाते हैं इसी भाव को गीत में प्रस्तुत किया गया है सुनिए भावना तिवारी जी की आवाज में प्रोफेसर रामस्वरूप सिंदूर ji के शब्दों में
जब ऐसा व्यक्ति जो कहने को अपनी समस्त प|रिवारिक जिम्मेदारियों को पूर्ण कर चुका है, उसका शरीर कमजोर हो गया हो |तब भी क्या वास्तव में इस सांसारिक संवेदना से परे है ? ऐसी स्थिति में उसकी क्या मनोदशा होती है इस गीत के माध्यम से समझते हैं “ मैं हूं 78 का “….
बाधाएं और समस्याएं हर कदम पर हमारी प्रगति को रोकने की कोशिश करती है , किंतु हमें हार ना मानकर निरंतर प्रयास करते हुए अपना कर्म करना है | यह संदेश देते हुए यह कविता की पंक्तियां……
दर्द सहने की भी एक सीमा होती है |जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता है , तो इसका एहसास भी धीरे-धीरे खत्म हो जाता है |ऐसी स्थिति भी आती है इसकी पीड़ा के कारण हम कठोर हो जाते हैं
जब कोई व्यक्ति प्रेम में होता है ,तो वास्तव में उसके अलावा हर एक बात मिथ्या लगती है | इसी अहसास को दर्शाता यह मधुर गीत भावना तिवारी जी की आवाज में
ईश्वर से जब हम अपने को पूरी तरीके से जोड़ लेते हैं तब जीवन में किसी भी वाहय शक्ति का भय से पूर्णतया मुक्त हो जाते हैं |
दर्द सहने की भी एक सीमा होती है |जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता है , तो इसका एहसास भी धीरे-धीरे खत्म हो जाता है |ऐसी स्थिति भी आती है इसकी पीड़ा के कारण हम कठोर हो जाते हैं
आपको चित्तौर का सिंहासन सुखद हो, देश की श्री-वृद्धि हो, हिन्दुओं का सूर्य मेवाड़-गगन में एक बार फिर उदित हो। भील, राजपूत, शत्रुओं ने मिलकर महाराणा का जयनाद किया, दुन्दुभि बज उठी। मंगल-गान के साथ सपत्नीक हम्मीर पैतृक सिंहासन पर आसीन हुए। अभिवादन ग्रहण कर लेने पर महाराणा ने महिषी से कहा-क्या अब भी तुम कहोगी कि तुम हमारे योग्य नहीं हो?इस पूरी कथा को जाने के लिए सुनते हैं जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखी गई कहानी चित्तौड़ निधि मिश्रा की आवाज में
न बुझा तू बत्तिया – Arvind saxena – Priya bhatia
लुटी है एक बेटी, तो लुटा सम्मान सबका है!!
कादम्बिनी में प्राण तब वापस आए जब उसे जलाने के लिए शमशान में रखकर, लोग लकड़ी लेने चले गए। अपने आस पास किसी को ना पाकर कादंबनी को लगा कि वह मर चुकी है और जीवन तथा मृत्यु के बीच लटक रही है, उसकी इसी जीवन और मृत्यु के बीच की यात्रा की कहानी।
“मां हमारे जीवन का आधार होती है। बचपन से वही हमें सब कुछ सिखाती है। यह कविता बखान कर रही है मां के ऐसे ही अनमोल गुणों को”
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Pragati Sharma