समापन – भाग -5
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये समापन है
कनु की प्रिया जिसके हृदय में प्रतिक्षण कनु ही व्याप्त रहता है, ऐसी कनुप्रिया सम्पूर्ण रचना में छाई हुई है. राधा को कभी कनु अपना अन्तरंग सखा लगता है तो कभी रक्षक, कभी लीला बन्धु कभी आराध्य और कभी लक्ष्य.
कनुप्रिया के समापन में राधा कृष्ण की पुकार की प्रतीक्षा में जन्मांतरों की अनंत पगडंडी के कठिनतम मोड़ पर अडिग खड़ी है!
जन्मांतरों से, जन्मांतरों तक…
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का समापन, पल्लवी की आवाज़ में
सृष्टि संकल्प – भाग -3
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये तृतीय खंड है
सृष्टि संकल्प में तीन कविताएँ हैं
कृष्ण जा चुके हैं
राधा विरह के दर्द से उद्वेलित है। वो नही समझ पा रही है कि अगर वो अपने कनु के मन में बसती है, और निखिल सृष्टि वो खुद है, यदि महासाग, हिमशिखर, मेघ घटाएं, सबमें वो ही व्याप्त है, तो फिर वो एकांत में भयभीत क्यों हो जाती है?
राधा विरह के क्षणों में वेदना से, आग्रह से, दर्द से अपने कनु को बार बार यही ज्ञात करने में प्रयत्नशील रहती है कि समस्त सृष्टि में बस राधा है और उसका कनु
राधा का मानसिक उद्वेलन व द्वंद अत्यंत खूबसूरती से इन तीनो कविताओं से व्यक्त होता है
मंजरी परिणय – भाग -2
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये द्वितीय खंड है
मंजरी परिणय में तीन कविताएँ है।
इन कविताओं में, राधा के प्रश्नों का, कनु की व्याकुलता का, निजता के द्वंद का; मन को द्रवित करने वाला बेहद सुंदर चित्रण है।
राधा, कृष्ण के चले जाने के पश्चात, विव्हल हो कर स्मरण करती है कि किस प्रकार आम्र बौर के नीचे खड़े हो, कनु उसकी प्रतीक्षा करते थे, परंतु लोक लाज से बंधी राधा अपने कनु के पास उस क्षण नही पहुंच पाती थी।
कनु का आम्र बौर की मंजरी से राधा संग परिणय कर लेना, राधा का बेचैन हो जाना और अपने कनु के समीप न आ पाने की व्यथा बताना। और आम्र बौर का ठीक ठीक अर्थ न समझ पाने में अपनी असमर्थता दिखाना… फिर कनु से मासूमियत से पूछ लेना… की तुम मेरे कौन हो ?
मंजरी परिणय की कविताएँ प्रेम में पड़ी राधा की आकुलता का सुंदर चित्रण है
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का द्वितीय खंड- मंजरी परिणय, पल्लवी की आवाज़ में
पूर्वराग – भाग -1
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये प्रथम खंड है
पूर्वराग के पांचों गीत राधा के निश्चल मन की सम्वेदना को प्रकट करते हैं.
भोली राधा, प्रतीक्षा में खड़े छायादार अशोक वृक्ष से असमंजस्य से पूछती है कि वह क्यों उसकी, यानी कनुप्रिया की प्रतीक्षा में कई जन्मों से पुष्पहीन खड़े हैं? राधा के सौन्दर्य, नारी सुलभ लज्जा एवं पुलक का खूबसूरत चित्रण है.
कनु अर्थात कृष्ण का प्रेम आत्मा का प्रेम है, समर्पण का प्रेम है.
इन गीतों में राधा के प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति है. राधा के प्रेम में निश्छल भावनाओं की स्थिति है. प्रकृति के कण कण में कनु की छवि देखना, यमुना में नहाते समय कृष्ण को निहारना, गृहकार्य से अलसाकर कदम्ब की छांह में शिथिल अनमनी पड़ी रहना- जैसे अनेक भाव प्रेषण चित्रण इन गीतों में झिलमिलाए हैं.
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का पहला खंड पूर्वराग, पल्लवी की आवाज़ में
इतिहास खण्ड – भाग -4
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये चतुर्थ खंड है
इतिहास खंड में 7 कविताएँ हैं।
महाभारत का युद्ध समापन की ओर है।
राधा, आम्र मंजरी से अपनी मांग भरे, उसी अशोक वृक्ष के नीचे खड़ी प्रतीक्षा कर रही है की महाभारत की अवसान बेला में, अपनी अठारह अक्षोहिणी सेनाओं के विनाश के बाद, खिन्न, उदासीन और आहत कृष्ण, अगर वापस आये, तो वो पुनः उन्हें नन्हे बालक सा अपने आँचल में समेट लेगी
सम्पूर्ण रचना राधा के आधार पर चलती है, परन्तु वह प्रश्नों के माध्यम से आधुनिक नारी की मानसिकता को भी व्यक्त करती है
अस्तित्व की समस्या, युद्ध की समस्या को कहीं कहीं व्यंग्य और मानवीकरण के रूप में उठाया गया है इन् कविताओं में
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का तृतीय खंड- सृष्टि संकल्प, पल्लवी की आवाज़ में
इतिहास खण्ड – भाग -4
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये चतुर्थ खंड है
इतिहास खंड में 7 कविताएँ हैं।
महाभारत का युद्ध समापन की ओर है।
राधा, आम्र मंजरी से अपनी मांग भरे, उसी अशोक वृक्ष के नीचे खड़ी प्रतीक्षा कर रही है की महाभारत की अवसान बेला में, अपनी अठारह अक्षोहिणी सेनाओं के विनाश के बाद, खिन्न, उदासीन और आहत कृष्ण, अगर वापस आये, तो वो पुनः उन्हें नन्हे बालक सा अपने आँचल में समेट लेगी
सम्पूर्ण रचना राधा के आधार पर चलती है, परन्तु वह प्रश्नों के माध्यम से आधुनिक नारी की मानसिकता को भी व्यक्त करती है
अस्तित्व की समस्या, युद्ध की समस्या को कहीं कहीं व्यंग्य और मानवीकरण के रूप में उठाया गया है इन् कविताओं में
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का तृतीय खंड- सृष्टि संकल्प, पल्लवी की आवाज़ में
सृष्टि संकल्प – भाग -3
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये तृतीय खंड है
सृष्टि संकल्प में तीन कविताएँ हैं
कृष्ण जा चुके हैं
राधा विरह के दर्द से उद्वेलित है। वो नही समझ पा रही है कि अगर वो अपने कनु के मन में बसती है, और निखिल सृष्टि वो खुद है, यदि महासाग, हिमशिखर, मेघ घटाएं, सबमें वो ही व्याप्त है, तो फिर वो एकांत में भयभीत क्यों हो जाती है?
राधा विरह के क्षणों में वेदना से, आग्रह से, दर्द से अपने कनु को बार बार यही ज्ञात करने में प्रयत्नशील रहती है कि समस्त सृष्टि में बस राधा है और उसका कनु
राधा का मानसिक उद्वेलन व द्वंद अत्यंत खूबसूरती से इन तीनो कविताओं से व्यक्त होता है
प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम, जो मानसरोवर और कैलाश यात्रा के दुर्गम स्थानों को भी सुगम बना देता है। मानसरोवर और कैलाश की यात्रा के लिए उत्तराखंड के अंतिम छोर पिथौरागढ़ से शुरुआत होती है इसीलिए पिथौरागढ़ को मानसरोवर और कैलाश का द्वार कहते हैं । शिव के उपासकों के लिए उनका यह परमधाम है। घुमंतू के साथ आपको यात्रा कराते हैं संजय शेफर्ड द्वारा लिखी गई कवरस्टोरी से पल्लवी गर्ग की आवाज़ में…
इतिहास खण्ड – भाग -4
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये चतुर्थ खंड है
इतिहास खंड में 7 कविताएँ हैं।
महाभारत का युद्ध समापन की ओर है।
राधा, आम्र मंजरी से अपनी मांग भरे, उसी अशोक वृक्ष के नीचे खड़ी प्रतीक्षा कर रही है की महाभारत की अवसान बेला में, अपनी अठारह अक्षोहिणी सेनाओं के विनाश के बाद, खिन्न, उदासीन और आहत कृष्ण, अगर वापस आये, तो वो पुनः उन्हें नन्हे बालक सा अपने आँचल में समेट लेगी
सम्पूर्ण रचना राधा के आधार पर चलती है, परन्तु वह प्रश्नों के माध्यम से आधुनिक नारी की मानसिकता को भी व्यक्त करती है
अस्तित्व की समस्या, युद्ध की समस्या को कहीं कहीं व्यंग्य और मानवीकरण के रूप में उठाया गया है इन् कविताओं में
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का तृतीय खंड- सृष्टि संकल्प, पल्लवी की आवाज़ में
काजा – संजय शेफर्ड – पल्लवी
अगर एक ऐसी जगह आपका जाने का मन हो जहां प्राचीन ऐतिहासिक संस्कृति के साथ-साथ आधुनिक संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिले तो घुमंतू की सलाह है कि आप हिमाचल प्रदेश राज्य के बेहद खूबसूरत जगह काज़ा को अपना नया Destination बनाइए, जहां पर बर्फ़ से ढके पहाड़, बुदबुदाती शांत नदी, सुरम्य बंजर परिदृश्य के साथ-साथ रंगीन त्योहारों और शाक्य तंगयुद मठों का बेजोड़ संगम और बहुत कुछ। जानिए पल्लवी की आवाज़ में संजय शेफर्ड की डायरी से घुमंतू के नए डेस्टिनेशन काजा़ के बारे में सिर्फ़ गाथा पर…
पूर्वराग – भाग -1
Dr. Dharmveer भर्ती जी द्वारा रचित कृति कनुप्रिया का ये प्रथम खंड है
पूर्वराग के पांचों गीत राधा के निश्चल मन की सम्वेदना को प्रकट करते हैं.
भोली राधा, प्रतीक्षा में खड़े छायादार अशोक वृक्ष से असमंजस्य से पूछती है कि वह क्यों उसकी, यानी कनुप्रिया की प्रतीक्षा में कई जन्मों से पुष्पहीन खड़े हैं? राधा के सौन्दर्य, नारी सुलभ लज्जा एवं पुलक का खूबसूरत चित्रण है.
कनु अर्थात कृष्ण का प्रेम आत्मा का प्रेम है, समर्पण का प्रेम है.
इन गीतों में राधा के प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति है. राधा के प्रेम में निश्छल भावनाओं की स्थिति है. प्रकृति के कण कण में कनु की छवि देखना, यमुना में नहाते समय कृष्ण को निहारना, गृहकार्य से अलसाकर कदम्ब की छांह में शिथिल अनमनी पड़ी रहना- जैसे अनेक भाव प्रेषण चित्रण इन गीतों में झिलमिलाए हैं.
चलिए गाथा पर सुनते हैं कनुप्रिया का पहला खंड पूर्वराग, पल्लवी की आवाज़ में
Maa Chandraghanta
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा होती है।चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप तपे हुए स्वर्ण के समान कांतिमय है।चेहरा शांत एवं सौम्य है और मुख पर सूर्यमंडल की आभा छिटक रही होती है। माता के सिर पर अर्ध चंद्रमा मंदिर के घंटे के आकार में सुशोभित हो रहा जिसके कारण देवी का नाम चन्द्रघंटा हो गया है।अपने इस रूप से माता देवगण, संतों एवं भक्त जन के मन को संतोष एवं प्रसन्न प्रदान करती हैं। मां चन्द्रघंटा अपने प्रिय वाहन सिंह पर आरूढ़ होकर अपने दस हाथों में खड्ग, तलवार, ढाल, गदा, पाश, त्रिशूल, चक्र,धनुष, भरे हुए तरकश लिए मंद मंद मुस्कुरा रही होती हैं। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं। इन क्षणों में साधक को बहुत सावधान रहना चाहिए। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विहित विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करना चाहिए। इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। यह देवी कल्याणकारी है।मां चंद्रघंटा की पूजा करने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जन्म-जन्म का डर समाप्त हो जाता है और जातक निर्भय बन जाता हैं।
Chants credit- Jyoti upreti sati
मैं कैसी लगती हूँ – Arvind saxena – Priya bhatia
“मुझको मालूम नहीं… हुस़्न की तारीफ, मेरी नज़रों में हसीन ‘वो’ है, जो तुम जैसा हो..”
जब कोई व्यक्ति प्रेम में होता है ,तो वास्तव में उसके अलावा हर एक बात मिथ्या लगती है | इसी अहसास को दर्शाता यह मधुर गीत भावना तिवारी जी की आवाज में
सुनहरी चिड़िया | Sunehri Chidiya | Hindi Poem | हिंदी कविता | Motivational Poems by Anupam Dhyani
Let India shine in its original Glory! Jai Hindi! The Golden Bird!
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