रोजी मेरे पिताजी के राजकुमार विद्यार्थी द्वारा दी गई एक कुत्ती थी। एक रोज जब हम आम की डाल पर झूल – झूल कर अपने संग्रहालय का निरीक्षण कर रहे थे, तब हमने देखा कि रोजी़ मुँह में किसी जीव को दबाए हुए ऊपर आ रही है। आकार में वह गिलहरी से बढ़ा न था पर आकृति में स्पष्ट अंतर था। रामा उसे रुई की बत्ती से दूध पिलाता। कुछ ही दिनों में वह स्वस्थ और पुष्ट होकर हमारा साथी हो गया। बाबू जी से यह सुनकर कि हमारे लिए टट्टू आया है , हम उससे रुष्ट और अप्रसन्न ही घूमते रहे पर अंत में उसने हमारी मित्रता प्राप्त कर ही ली। नाम रखा गया रानी। फिर हमारी घुड़सवारी का कार्यक्रम आरंभ हुआ। एक छुट्टी के दिन दोपहर में सबके सो जाने पर हम रानी को खोलकर बाहर ले आए। मेरे बैठ जाने पर भाई ने अपने हाथ की पतली संटी उसके पैरों में मार दी। इससे ना जाने उसका स्वाभिमान आहत हो गया या कोई दुखद स्म्रति उभर आयी । वह ऐसे वेग से भागी मानो सड़क पर नदी- नाले सब उसे पकड़कर बाँध रखने का संकल्प किए हो। कुछ दूर मैंने अपने आप को उस उड़न खटोले पर सँभाला परंतु गिरना तो निश्चित था !
पश्चिम में रंगो का उत्सव देखते देखते जैसे ही मुँह फेरा कि नौकर सामने आ खड़ा हुआ, कि एक वृद्ध मुझसे मिलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मेरी कविता की पहली पंक्ति ही लिखी गई थी । मैं खिसिया गई ।कुछ खींझी सी उठी। कण्व ऋषि जैसे सफेद बाल और दूधफेनी जैसी सफेद दाढ़ी वाला मुख । मैंने कहा कि आपको पहचानती नहीं ? तो उन्होंने उत्तर दिया कि जिस के द्वार पर आया है उसका नाम जानता है, इससे अधिक माँगने वाले का परिचय क्या होगा? मेरी पोती आपसे मिलने के लिए विकल है । मैं आश्चर्य से वृद्ध की ओर देखती रह गई।
बिंदा लेखिका की की बचपन की सहेली है| जो लेखिका के पड़ोस में ही रहती है| बिंदा की सौतेली मां उसे खूब सताती है और घर का सारा काम करवाती है |बिंदा का मातृप्रेम से वंचित रहना और अपनी सौतेली मां के क्रूर व्यवहार को सहन करने के कारण क्या बिंदा का बचपन खिलने से पहले ही मुरझा जाएगा ? महादेवी वर्मा जी की बेहद हृदयस्पर्शी कहानी बिंदा मे जानिए ,जिसे विनीता श्रीवास्तव ने अपनी आवाज दी है…
रामा बेहद भद्दा बेडौल था। लेकिन उसका मन उतना ही सुंदर और भोला था ।इसी से रामा हमें बेहद अच्छा लगता था। घर में सभी कामों के लिए नौकर थे इसलिए हमारी जिम्मेदारी रामा को सौंपी गई ।हम रामा को बहुत परेशान करते थे ।एक दिन माँ से खूब विनती के उपरांत रामा हम सबको मेला दिखाने ले गया । एक को कंधे पर उठाकर दूसरे का हाथ पकड़कर और तीसरेको साथ रहने का कहकर वह मेला दिखाने लगा । मैं भीड़ में खो गई ।वह बेहाल हो गया मुझे ढूँढता रहा । घर आकर इस बात के लिए उसे खूब डाँट पड़ी ।उसका वात्सल्य , उसका प्रेम हमारे प्रति कभी कम ना हुआ।
गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों-जैसा विस्मय न होकर आत्मीय विश्वास रहता है। उस पशु को मनुष्य से यातना ही नहीं, निर्मम मृत्यु तक प्राप्त होती है, परंतु उसकी आंखों के विश्वास का स्थान न विस्मय ले पाता है, न आतंक। महादेवी वर्मा जी के द्वारा लिखित प्रसिद्ध कहानियों में से है कहानी गौरा गाय |महादेवी जी के स्नेह पाकर गौरा गाय हष्ट-पुष्ट हो गई थी, किंतु एक समय ऐसा भी आया गौरा अपने बछड़े को छोड़कर सदा के लिए चल बसी |आखिर क्या हुआ था गौरा के साथ ?जानते हैं नयनी दीक्षित की आवाज में कहानी गौरा गाय….
जो देश सोने की चिड़िया हुआ करता था वो अब गरीब होने लगा ,,,और उस देश से बाहर निकल कर गया हुआ इंसान , बाहर के देशो में बहुत खुश होता है ,,,साफ़ सफाई,,,चकाचौंध सब कुछ उसे अच्छा लगता है,,,वो पैसे कमाने में लग जाता है,,,अपने नाम बनाने में लग जाता है, पर वो नाम ही क्या नाम जिसे कोई अपनेपन से पुकार भी न सके , देश से बाहर जाकर अपनी पहचान बना पाना एक गर्व की बात है पर क्या उस पहचान में अपनापन होता है ?
छकौड़ी एक कपड़े का गरीब व्यापारी है स्वदेशी आंदोलन के तहत विलायती चीजों को बेचने पर तावान (हर्जाना) लगता है छकौड़ी अपनी गरीब हालत से तंग आकर विलायती कपड़े बेच देता है जब कांग्रेसियों को इस बात का पता चलता है तो वह छकौड़ी से तावान मांगते हैं क्या छकौड़ी अपनी गरीबी स्थिति में तावान दे पाता है प्रेमचंद्र जी के द्वारा लिखी गई कहानी तावान में जानते हैं भूपेश पांड्या की आवाज में
वृद्ध पिता की कहानी,जो अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी कर चुका है और उसका शरीर शिथिल हो गया है |इस समय काल में जब उसे अपने बच्चों का सानिध्य प्राप्त होता है ,तो उसके अंदर एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है | किंतु यह सानिध्य उसे अल्प समय के लिए प्राप्त
नहीं, मुझे पूरा सुने बगैर नहीं जा सकतीं तुम। अरविंद ने आदेश सा दिया, तुमने सिर्फ मेरा उजास देखा है। मेरे भीतर के अंधकार और दुर्गंध से परिचय नहीं है तुम्हारा। मेरे भीतर की अँधेरी, घृणित और असहनीय दुनिया में सिर्फ सुनीता ही रह सकती है मानसी तुम्हारा तो दम घुट जाएगा वहाँ। मेरे अशक्त और खोखले हो चुके तन को प्रेमिका की नहीं, परिचारिका की जरूरत है मानसी और परिचारिका मानसियाँ नहीं, सुनीताएँ ही हो सकती हैं। मानसी एक 24 वर्षीय खूबसूरत नव युवती है जिसे अपने से काफी उम्र में एवं शादीशुदा व्यक्ति अरविंद से प्रेम हो जाता है उनका प्रेम सारे बंधनों को तोड़ देना चाहता है किंतु जब अरविंद को इस बात का एहसास होता है मानसी उसके गुणों के प्रति आकर्षित है तब मानसी से अपने संबंधों को विच्छेद कर देना चाहता है ऐसी स्थिति में मानसी की क्या मनोदशा होती है और आगे कहानी में क्या होता है इस पूरी कहानी को जाने के लिए अमित तिवारी जी की आवाज में सुनते हैं कहानी मानसी
निशिकांत एक मध्यमवर्गीय ,सुंदर व्यक्ति है | निशिकांत सरकारी दफ्तर में काम कर रहा है |साहित्य में निशिकांत को विशेष रूचि है | उसका सरकारी नौकरी में विशेष मन नहीं लग रहा है |उसका स्वप्न है कि वह भारत मां की सेवा करें |क्या निशिकांत का यह सपना पूरा हो पाता है ? निशिकांत के जीवन में आखिर क्या क्या चल रहा है ? और वह अपने सपने को पूरा करने के लिए क्या प्रयत्न कर रहा है ?इस पूरी कहानी को जानने के लिए सुनते हैं विष्णु प्रभाकर की कहानी निशिकांत का स्वप्न नयनी दीक्षित आवाज में
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pragati sharma