धरोहर बाहरवीं शब्दांजलि यशशेष जनकवि विपिन मणि जी की रचनाएं और स्मृतियाँ सुनिये उनके पुत्र डॉ. उदय मणि जी के साथ
धरोहर उन्नीसवीं शब्दांजलि कीर्तिशेष रचनाकार पं. प्रेमनाथ द्विवेदी “रामायणी”जी की रचनाएँ और संस्मरण सुनिए उनके पुत्र डाॅ.कमलेश द्विवेदी के साथ ।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में कल सुनिये पूर्णिमा वर्मन जी को। हिंदी कविता सहित्य विधा है जिसका दरवाज़ा महिलाओं नें समय समय पर खटखटाया भी है और अधिकारपूर्वक उसमे दाखिल भी हुई हैं। कहीं माँ मीरा नें अपने मोहन को पुकारा तो उनके शब्द माधुर्य के आगे बड़े बड़े तपस्वियों का तप फीका पड़ गया। कहीं श्रद्धेया महादेवी की अपनी पीड़ा गीतों में मुखर होकर हमारे सामने आई तो पूरे संसार को रुला गयी। कहीं आदरेया सुभद्राकुमारी चौहान में अंग्रेजों को झांसी की रानी के स्वर में ललकारा तो पूरा हिंदुस्तान उनके स्वर में स्वर मिला उठा। श्रृंखला में अनगिन नाम हैं जो लिखें जाएं तो समय और स्याही दोनों का अभाव हो जाएगा। उसी श्रंखला में समकालीन अनेक नाम हैं जिन्होंने साहित्य जगत में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज भी कराई वरन स्वयं को नाम से लेकर हस्ताक्षर तक स्थापित भी किया। ऐसे ही एक नाम आदरणीया पूर्णिमा वर्मन जी से हम मिलेंगे कल शिवोहम साहित्यिक मंच के फेसबुक पेज पर जिनके गीत उनको हिंदी की कवयित्रियों में विशेष स्थान दिलाते हैं। उनके गीतों का स्त्री विमर्श, उनके गीतों की श्रंगारिकता, शब्द चयन, विषय वैविध्य सब कुछ अद्भुत है। वे श्रोताओं के साथ साथ पाठकों की भी प्रिय हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये आज सुनें गाज़ियाबाद निवासी श्री वेद शर्मा जी को। मनुष्य के विचार जब चिन्तन की भट्टी में पकते हैं तो सुदृढ़ होकर जीवन दर्शन बनता है। जिसका जीवन दर्शन जितना अधिक सुदृढ़ और व्यवहारिक होगा वह अपने जीवन में सफलता के सोपान उतनी शीघ्रता से चढ़ेगा। यही बात साहित्य पर भी लागू होती है जिसका जीवन दर्शन जितना विशद उसका साहित्य उतना अधिक उत्कृष्ट और लोकमंगलकारी होगा। श्री वेद शर्मा जी जीवन के अनुभवों को भट्टी का ताप महसूस कर सकने वाले गीतकार हैं। उनके गीतों में उनके जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, उनके आशावाद और उनकी सृजनशीलता का स्पष्ठ रूपांतरण हुआ है। उनके गीत उनके जीवन के खट्टे – मीठे अनुभवों के अनुवाद से हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं अलीगढ़ से श्री अशोक अंजुम जी को। आज का दौर समाज को, व्यक्ति को और परिवार को बाँटने का सा दौर हो गया है। पूरा समाज धर्म, जाति और दल के अनेक धड़ों में बंटा हुआ है। एक व्यक्ति दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहा रहा है। ऐसे में कुछ लोग हैं जो इन खाइयों को पाटने में लगे हुए हैं। वे नहीं चाहते कि इंसान से इंसान अलग हो जाये। वे नहीं चाहते कि हम धर्म, जाति या मज़हब के नाम पर एक दूसरे का खून बहाने को आतुर हो उठें। साहित्य में सामाजिक समता के उन चंद पैरोकारों में श्री अशोक अंजुम जी का भी नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके गीत समता के ध्वजवाहक तो हैं ही साथ साथ भारतीय समाज और राजनीति की अनेक विसंगतियों पर टिप्पणी करने से भी नहीं चूकते। वे अपने गीतों से आपकी संवेदना को चरम पर पहुँचा भी सकते हैं, और व्यंग्य गीतों से आपको मुस्कुराकर पीछे बहुत कुछ सोचने पर विवश भी कर सकते हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में कल सुनिये छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश से श्री रोहित रूसिया जी को। हम जिस भी कला की ओर देखते हैं, उसमें पारंगत होते हैं या निष्णात होने का प्रयास करते हैं उसे हमारा दैनिक अनुभव और अधिक बेहतर बनाता है। पेंटिंग में लगने वालों रंगों की कीमत तो शायद कुछ हजार में होती होगी परंतु उसका मूल्य लाखों में होने के लिए उसको बनाने वाले के अनुभव का गहन होना आवश्यक है। क्रेता उन रंगों का मूल्य नहीं चुकाता बल्कि उस असीम अमूल्य अनुभव को कुछ देने का प्रयास करता है जो बनाने वाले नें अपने दिन, घण्टे और मिनट उस कला के लिए खर्च करके अर्जित किये हैं। ऐसे ही अनुभवी और जीवन के सार को निचोडकर गीतों में पिरो देने वाले रचनाकार हैं श्री रोहित रूसिया जी। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी हैं। एक श्रेष्ठ कवि होने के साथ साथ वे सक्रिय और प्रसिद्ध रंगकर्मी भी हैं। उनका अनेक क्षेत्रों का अनुभव उनके गीतों को और अधिक पैनापन भी देता है और भावपक्ष को और अधिक प्रभावी भी बनाता है ।
धरोहर श्रृंखला बाइसवीं और अन्तिम शब्दांजलि कीर्तिशेष गीतकार आत्म प्रकाश शुक्ल जी की रचनाएँ और संस्मरण सुनिए लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार श्रद्धेय डॉ. शिवओम अम्बर जी के साथ
धरोहर आठवीं शब्दांजलि कालजयी रचनाकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कविवर पं़ गोविन्द प्रसाद तिवारी जी की रचनाएं और स्मृतियाँ सुनिये उनके पुत्र श्री अभय तिवारी जी के साथ।
शिवोहम सहित्यिक मंच धरोहर की प्रथम शब्दांजलि कालजयी रचनाकार डॉ उर्मिलेश शंखधर जी की कविताएं और स्मृतियाँ सुनिये उनकी पुत्री श्रीमती सोनरूपा विशाल जी के साथ।
धरोहर सत्रहवीं शब्दांजलि यशशेष कवि निर्दोष हिसारी की रचनाएँ और संस्मरण सुनिए उनकी सुपुत्री कवयित्री अल्पना सुहासिनी जी साथ
बैसवारा उत्तर प्रदेश की वह भूमि जिसने भारत के इतिहास में कलम और तलवार दोनों से अपना विशेष स्थान बनाया है। मंचीय कविता के लोग कहते हैं कि अगर बैसवारे के श्रोताओं ने आपको मन से सुन लिया तो आप पूरे हिंदुस्तान में कहीं भी बहुत अच्छे से सुने जाएंगे। महाप्राण निराला जी, सुमन जी, आचार्य नंद दुलारे बाजपेयी जी, सनेही जी जैसे अद्भुत साहित्यकारों को अपने अंक में बिठाने वाली इस वसुंधरा के एक अप्रतिम गीतकार से हम परिचय करेंगे #शिवोहम_साहित्यिक_मंच के #धरोहर की द्वितीय शब्दान्जलि में। स्मृतिशेष शिव बहादुर सिंह भदौरिया जी नवगीत के अति विशिष्ट रचनाकर हुए हैं। नवगीत दशक से लेकर नवगीत का कोई भी वृहद समवेत संकलन आपकी उपस्थिति के बिना पूर्ण नहीं माना जाता। उनके गीत ग्राम्यांचल की मिट्टी से लेकर महानगर की अधुनिकता तक को अपने मे समेट कर चलते हैं।
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