छठे सर्ग की कथावस्तु हमे युद्धभूमि की ओर ले जाती है जहाँ अब कर्ण कौरव सेना का सेनापति है। श्रीकृष्ण को ज्ञात है कि जब तक कारण के पास देवराज इंद्र द्वारा प्रदत्त एकघ्नी शक्ति है तब तक पाण्डवों की विजय का मार्ग प्रशस्त नहीं है। अतः वह महावीर भीम पुत्र घटोत्कच को रण में आहूत करते हैं। उसके आते ही कौरव सेना में हाहाकार मच जाता है। तब दुर्योधन कर्ण से निवेदन करते हैं
दाहक प्रचंड इसका बल है,
यह मनुज नहीं कालनल है।
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तू नहीं जोश में आएगा,
आज ही समर चूक जाएगा।
अंततः कर्ण सेनापति के धर्म का निर्वाह करते हुए अमोघ एकघ्नी शक्ति का संधान करते हैं और घटोत्कच वीरगति को प्राप्त होता है। दिवस निश्चय ही कौरवों के नाम होता है पर कर्ण को ज्ञात है कि भविष्य अब पाण्डवों का हो चुका है।
हारी हुई पाण्डव चमू में हँस रहे भगवान थे।
पर जीत कर भी कर्ण के हारे हुए से प्राण थे।
डायल 100 – महेश दुबे – नयनी दीक्षित
मुंबई महानगर में एक शातिर कातिल हर बार खून कर खुद ही पुलिस को Dial 100 कर जानकारी देता है| मगर यह कातिल अभी तक पकड़ में नहीं आया| इंस्पेक्टर सुधीर और त्यागी उसे जल्द से जल्द पकड़ लेना चाहते हैं परंतु अभी उन्हें कोई सबूत नहीं मिल पाया |कौन है वह Serial Killer ? लोगों का खून करने के पीछे उसका क्या मकसद हो सकता है?महेश दुबे जी के द्वारा लिखी Mysteries and Thrillers से भरपूर कहानी Dial 100 सुनते हैं नए नयनी दीक्षित की आवाज़ में…
धीरेंद्र अस्थाना की कहानी मुहिम में, समाज में जो निर्धन और धनी के बीच बीच में जो भेदभाव है| उसी के चलते एक बालक मन ना चाहते हुए भी किस तरह जाने -अनजाने में गलत रास्ते पर, क्राइम की राह पर चल पड़ता है?किस तरह उसके मन में क्राइम को सच समझ लेने की मुहिम पैदा हो जाती है
दिलेर मुजरिम – Ibnesafi ( इब्नेसफी) – Nayani Dixit
यह कैसा इंसान है जो एक बेख़ौफ़ मुज़रिम है और बेहद दिलेर ।जिसे अपना गुनाह कुबूल करने में कोई हिचक भी नहीं, उसकी दिलेरी तो देखिए उसे अपने पकड़े जाने का भी कोई भय नहीं।लेकिन इंस्पेक्टर फ़रीदी भी कुछ कम नहीं, वो ऐसे दिलेर मुज़रिम से कैसे सामना करता है जो रहस्य की दुनिया का अजीब सा शाका बना हुआ है? उसके गुनाहों को कुबूल कराते उसे कैसे उसी के ज़ाल में फंसाता है?और कैसे सज़ा दिलवाता है ? यह कहानी का बहुत बड़ा सस्पेंस है। यह दिलेर मुज़रिम कौन है ?और आखिर उसकी इतनी दिलेरी दिखाने के के पीछे क्या राज़ छुपा हुआ है ?इस पूरी कहानी को जानने के लिए सुनते हैं इब्रेसफ़ी के द्वारा लिखी गई कहानी दिलेर मुज़रिम नयनी दीक्षित की आवाज़ में…
रक्त मंडल के पिछले भाग में आपने सुना कि गोपाल शंकर और मिस्टर केमिन किले पर धावा बोल चुके हैं। किस तरह नगेंद्र नरसिंह गोपाल शंकर को रोज़ के साथ तहखाने में कैद कर , गुब्बारे की सहायता से ऊपर चले गए ।क्या गोपाल शंकर और रोज़ की मौत हो गई ?गोपाल शंकर और मि. केमिन के द्वारा बनाई गई योज़ना सफल हो पाई । इसके आगे के भाग को सुनने के लिए सुनते हैं कहानी का यह हिस्सा
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होली का रंग-बिरंगा त्योहार,प्यार और रोमांस का के बिना अधूरा है। प्रेमी किस तरह अपनी प्रेमिका को अपने साथ होली खेलने के लिए मना रहा है ?प्यार और मोहब्बत के इसी भाव को बड़े ही शायराना अंदाज में पेश किया है भारतेंदु हरिश्चंद्र ने…
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द्वितीय सर्ग में उच्चकुलाभिमानी राजवंश की उपेक्षा के दंश से ग्रसित कर्ण धनुर्विद्या सीखने के लिए महर्षि परशुराम की शरण में जाते हैं। परंतु वहाँ वह अपने सूत पुत्र होने की पहचान छिपा लेते हैं। सारी विद्याएं सीखने के उपरांत एक दिवस काल का कराल चक्र चलता है और कर्ण की पहचान से पटाक्षेप हो जाता है तब महर्षि परशुराम कर्ण को श्राप देते हैं
सिखलाया ब्रह्मास्त्र तुझे जो काम नहीं वह आएगा।
है यह मेरा श्राप समय पर उसे भूल तू जाएगा।।
तृतीय सर्ग – कृष्ण संदेश
रश्मिरथी के सभी सर्गो में यह सर्ग सर्वाधिक लोकप्रिय सर्ग है। संभावित युद्धजनित महाविनाश को टालने के लिए स्वयं योगिराज कृष्ण कौरवों के दरबार पहुंचते हैं और पांडव पक्ष की ओर से निवेदन करते हैं
दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खाएंगे,
परिजन पर असि न उठाएंगे।
परंतु हठी दुर्योधन को यह भी स्वीकार नहीं होता। वह तो केवल एक ही हठ पर अडिग था कि “सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव।” और अभिमान वश वह श्रीकृष्ण को बंधक बनाने का असफल प्रयास भी करता है। अंत में श्रीकृष्ण यह भी प्रयास करते हैं कि कर्ण पाण्डव पक्ष में सम्मिलित हो जाये क्योंकि वह पांडवों का बड़ा भाई है, परंतु इस प्रयास में भी असफल हो उन्हें रिक्त – कर वापस आना पड़ता है।
प्रथम सर्ग – शौर्य प्रदर्शन
रश्मिरथी का प्रथम सर्ग आरम्भ होता है कौरव और पाण्डव राजकुमारों के शक्ति प्रदर्शन से। रंगभूमि में सभी कुमारों के शौर्य को देखकर जनता दंग हो जाती है। तब अचानक आगे आकर कर्ण सभी कुमारों को ललकारते हैं। इस पर उनका कुल – गोत्र जब सभा पूछती है तो वे उत्तर देते हैं
पूछो मेरी जाति शक्ति हो तो मेरे भुजबल से।
रवि समान दीपित ललाट से और कवच कुंडल से।
वाद विवाद के बाद एक तरफ कर्ण को दुर्योधन अंगदेश का राजा बनाते हैं वहीं गुरुवर द्रोण को यह भान हो जाता है कि अर्जुन का मार्ग अब निष्कंटक नहीं रहा।
पांचवां सर्ग – मातृ विनय
पंचम सर्ग में कुंती स्वयं कर्ण के पास जाकर अपना मातृत्व प्रदर्शित करने का प्रयास करती हैं। वह कर्ण से आग्रह करती हैं कि कर्ण पाण्डवों के विपक्ष में होकर अपने ही सगे भाइयों के विरुद्ध शस्त्र संधान न करे।
इस पर कर्ण पाण्डव पक्ष में सम्मिलित होने से तो मना कर देता है परंतु कुंती को इस वचन से साथ विदा करता है कि समय आने पर वह अर्जुन के सिवा किसी पाण्डव को नहीं मारेगा। इस प्रकार कुंती के पुत्रों की संख्या पाँच ही बनी रही रहेगी। और इसी तरह कुंती खाली हाथ वहाँ से वापस चल देती हैं।
हो रहा मौन राधेय चरण को छूकर,
दो बिंदु अश्रु के गिरे दृगों से चूकर।
बेटे का मस्तक सूँघ बड़े ही दुख से,
कुंती लौटी कुछ कहे बिना ही मुख से।
सप्तम सर्ग – कर्ण – बलिदान
यह रश्मिरथी खण्डकाव्य का अंतिम सर्ग है। कर्ण और अर्जुन का दुर्धर्ष युद्ध चरम पर है। एक बार तो कर्ण के बाणों से आहत हो अर्जुन मूर्छित तक हो जाते हैं। परंतु काल के वश कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में फंसता है और उसी क्षण श्रीकृष्ण अर्जुन को ललकारते हैं
खड़ा है देखता क्या मौन भोले?
शरासन तान, बस अवसर यही है।
घड़ी फिर और मिलने की नहीं है,
विशिख कोई गले के पार कर दे।
अभी ही शत्रु का संहार कर दे।
और अर्जुन का एक बाण महापराक्रमी योद्धा को सदैव के लिए काल के हवाले कर देता है। श्रीकृष्ण सभी को सीख देते हैं कि कर्ण का चरित्र निश्चय ही अनुकरणीय है।
समझ कर द्रोण मन में भक्ति भरिये,
पितामह की तरह सम्मान करिये।
मनुजता का नया नेता उठा है।
जगत से ज्योति का जेता उठा है।
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pragati sharma