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नारी अपना पूरा जीवन घर बनाने में लगा देती है ।फिर भी उस घर में निर्णय लेने का अधिकार उसे क्यों नहीं दिया जाता ? क्यों हमेशा घर का आदमी ही निर्णय लेने का अधिकारी होता है ? लेकिन छाया को यह बात अब गवारा नहीं है। इसलिए उसने निर्णय लिया और पति को जता भी दिया कि जितना अधिकार उसका है घर पर, उतना ही अधिकार छाया का भी है।
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यह मनी ऑर्डर तेरे दादा दादी के लिए संजीवनी है उनका मानसिक संबल है यह बात उन्हें एहसास लाती है कि उनका बड़ा बेटा उन्हें भूला नहीं और अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुआ | मात्र ₹1000 के मनीआर्डर आने पर जो कि उनके बड़े बेटे के द्वारा भेजा जाता है दादा दादी गदगद हो जाते हैं जबकि छोटा बेटा और परिवार अपने मां-बाप की सेवा पूरे दिल से करता है ऐसे में उनकी पोती के मन में कई प्रकार के संशय पैदा होते हैं | दिल को छू लेने वाली कहानी
मीरा ने आनंद का एक अलग ही पहलू देखा । जिसमें उसे दंभी ,तानाशाह, हिप्पोक्रेट व्यक्ति नजर आया । जिसने उसकी कला की प्रशंसा ना करके उसे उससे अलग होने का हुक्म दे डाला । क्या हमारे समाज में शादी के बाद सिर्फ लड़की को ही नए परिवेश में ढलना होता है ?होता होगा। पर अब नहीं। अब जमाना बदल चुका है । यह नए दौर का जमाना है , जिसमें लड़कियाँ लड़कों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। तो फिर मीरा कैसे चुप रह सकती है ?
अच्छा वक्त कब बदल जाए कोई नहीं बता सकता। दुल्हन बनने के सपने देखने वाली आँखों में कब आँसू भर जाए ? कब सपने चूर-चूर हो जाए ? कौन बता सकता है ? वक्त के आगे हम सब बेबस हैं ।वक्त की हर शह गुलाम है ।
चाय की प्याली तो एक माध्यम है उसके बहाने दो पीढ़ियों का अंतर स्पस्ट किया गया है, किसी पर आरोप नहीं लगाया , बस अपनी बात कही गयी है ।
जब मन से रिश्ता नहीं जुड़ता है| तब हम किसी भी रिश्ते से सामाजिक रुप से जुड़ भी जाए ,वह सिर्फ एक धोखा होता है |वह आपसे अलग भी हो जाए तो उसके प्रति कोई शोक नहीं होता इसी बात को बड़ी गंभीरता से अपनी कहानी नो सिंपैथी प्लीज मैं मालती जोशी ने प्रस्तुत किया है
कुबरा जवान थी। कौन कहता था कि कुबरा जवान थी ? वह तो जैसे बिस्मिल्लाह के दिन से ही अपनी जवानी की आमद की सुनावनी सुनकर ठिठक कर रह गई थी। ना जाने कैसी जवानी आई थी, कि ना तो उसकी आँखों में किरने थी। ना उसके रुखसारों के ऊपर जुल्फें परेशान हुई। ना उसके सीने पर तूफान उठे ।और ना उसने सावन भादो की घटाओं से मचल-मचल कर प्रीतम यह सावन माँगे।
तीसरा आदमी उस जिम्मेदार मध्यवर्गीय व्यक्ति की कहानी है, जो रोज़-रोज़ की तौल-मटोल में कहीं खो गया है।
घर में, दफ्तर में, हर जगह अपनी जगह जमी रही “दूसरी आवाज़” ने उसकी पहचान का हिस्सा बन लिया। लेकिन अब वह उसी आवाज़ से बाहर आकर अपनी सच्ची पहचान तलाशना चाहता है।
मन्नू भंडारी ने इस कहानी में उस तीसरे आदमी को उतारा है — जो न पूरी तरह ‘पहला’ है, न ‘दूसरा’। वो है उस खुद की आवाज़ की तलाश में…
📋 सारांश
शेरा बाबू दफ्तर में छोटे-क्लर्क की नौकरी करता है; घर में पत्नी, ससुराल, बेहतर दर्जे की नौकरी — सब उसका वजूद घेर लेते हैं।
उस पर लगातार दबाव बनता रहा, उसकी भूखें, उसकी आवाज़ों, उसकी आत्मा की कहानियाँ दबती गईं।
वो एक पत्रिका निकालने की योजना बनाता है — लेकिन एक स्व-सृजित आवाज़ बनने का सपना पूरा नहीं हो पाता।
कहानी का “तीसरा आदमी” वह है — वह आवाज़ जो उसने दबाई है, वह व्यक्ति जो उसने बनने से इंकार कर दिया है।
अंत में, वो उसी स्थिति में है — पूरे अस्तित्व के साथ ज़िंदा, लेकिन अपनी आवाज़ खो चुका — अपने भीतर उभरे प्रश्नों के साथ।
🔍 सुनने की वजह
इस कहानी में आपको मिलेगा अपने अंदर की आवाज़ का प्रतिबिंब — जो रोज़ कोई ‘दूसरा’ बनकर खामोश हो जाता है।
कहानी की भाषा सरल लेकिन बहुत गहरी है — मन्नू भंडारी की विशिष्ट शैली में, आप महसूस कर सकते हैं जीवन-थकान, चाह लेकिन चुप्पी, और अंत में एक सशक्त विरोध।
Gaatha पर सुनना विशेष इसलिए होगा क्योंकि रूप-रेखा नहीं, भावना-दस्ताना सुनाई देगी — शब्दों के हल्के काँप-सकते स्वर, भीतर की हलचल, और वहीं-वहीं ठहरी हुई पहचान की आवाज़।
the writers is involved in extra marital affair and makes her life कहानी की नायिका अपने बॉस शिंदे से प्रेम करने लगती है |शिंदे एक शादीशुदा आदमी है |शिंदे नायिका को लुभावने सपने दिखाता है |क्या नायिका को इस बात का एहसास होता है कि वह एक खिलौना मात्र है जिसे जब तक मन चाहा खेला और फिर ठुकरा दिया नायिका समाज में औरतों को अपने अनुभवों से क्या समझाना चाहती है पूरी बात जानने के लिए सुनते हैं मन्नू भंडारी जी के द्वारा लिखी गई कहानी स्त्री सुबोधिनी आरती श्रीवास्तव जी की आवाज में
रफाकत हुसैन ₹10 मासिक वेतन में भी संतुष्ट रहने वाला व्यक्ति था । पत्नी भी साध्वी थी। जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था कि तभी पत्नी का देहांत हो गया। जिसने उसे तोड़ कर रख दिया । घर -गृहस्थी संभालने के लिए दूसरा विवाह कर तो लिया किंतु जिंदगी नरक बन गई। अब वह हर वक्त मौत माँगता है।
सफर छोटा हो या बड़ा , अगर हम सफर अच्छा हो, तो सफर अच्छा हो जाता है। वरना वास्तव में सफर करना पड़ता है। नई नवेली दुल्हन जब पहली बार पीहर जाती है तो कितने ही मीठे सपने लेकर जाती है लेकिन कई बार यह सपने चूर-चूर हो जाते हैं। तब सवाल उठता है पूरी जिंदगी काटने का।
एक लड़का भीषण गर्मी में मूंगफली का एक-एक दाना निकाल के खा रहा है| राजा उसकी इस हरकत को बेहद ध्यान से देख रहा है |राजा ने उस लड़के से इसके बारे में पूछा लड़के ने राजा को जो उत्तर दिया उससे राजा बहुत प्रभावित हुआ |इस प्रकार लड़का, राजा का महागुरु बना| आखिर उस लड़के ने राजा को क्या उत्तर दिया ?पूरी कहानी जानने के लिए सुनते हैं सुधा भार्गव की लिखी कहानी महागुरु, निधि मिश्रा की आवाज में
Thriller और सस्पेंस से भरी एक कहानी अमेरिका शहर के एक लेक्चरर युवक इकबाल की है| जिससे एक खूबसूरत युवती शकीरा से प्रेम हो जाता है और वह उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखता है | इस घटना के बाद उसके साथ कुछ विचित्र घटता है |ऐसा क्या होता है?? और आखिर यह शकीरा कौन है??? इसे जानने के लिए सुनते हैं कहानी “ मेहमान का प्रेत “
सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते -काटते लोगों की उम्र बीत जाती है , पर काम कुछ नहीं होता है | ऐसा ही कुछ एक अधेड़ उम्र के आदमी के साथ हो रहा है| वह व्यक्ति अपने को परमात्मा का कुत्ता कहता है और सरकारी दफ्तर के लोगों को सरकारी कुत्ता |आखिर क्यों? समझते हैं उसकी पीड़ा को मोहन राकेश जी के द्वारा लिखी गई कहानी परमात्मा का कुत्ता में सुमन वैद्य जी की आवाज में….
बनवारी जो पत्नी से बेहद प्रेम करता है, अपने हालदार परिवार के के बड़े बेटे होने का फर्ज न निभाते हुए केवल उसकी खुशी के लिए ही सब करता है लेकिन परिस्थिति तब बदल जाती है जब उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी किरण की नज़र में उसका कोइ मोल नहीं और वह जी जान से अपने देवर के पुत्र हरिदास की देखभाल करते हुए कब उसकी पत्नी से ज्यादा हालदार परिवार की बड़ी बहू बन गई बनवारी को पता ही नहीं चला।
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