शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में कल सुनिये पूर्णिमा वर्मन जी को। हिंदी कविता सहित्य विधा है जिसका दरवाज़ा महिलाओं नें समय समय पर खटखटाया भी है और अधिकारपूर्वक उसमे दाखिल भी हुई हैं। कहीं माँ मीरा नें अपने मोहन को पुकारा तो उनके शब्द माधुर्य के आगे बड़े बड़े तपस्वियों का तप फीका पड़ गया। कहीं श्रद्धेया महादेवी की अपनी पीड़ा गीतों में मुखर होकर हमारे सामने आई तो पूरे संसार को रुला गयी। कहीं आदरेया सुभद्राकुमारी चौहान में अंग्रेजों को झांसी की रानी के स्वर में ललकारा तो पूरा हिंदुस्तान उनके स्वर में स्वर मिला उठा। श्रृंखला में अनगिन नाम हैं जो लिखें जाएं तो समय और स्याही दोनों का अभाव हो जाएगा। उसी श्रंखला में समकालीन अनेक नाम हैं जिन्होंने साहित्य जगत में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज भी कराई वरन स्वयं को नाम से लेकर हस्ताक्षर तक स्थापित भी किया। ऐसे ही एक नाम आदरणीया पूर्णिमा वर्मन जी से हम मिलेंगे कल शिवोहम साहित्यिक मंच के फेसबुक पेज पर जिनके गीत उनको हिंदी की कवयित्रियों में विशेष स्थान दिलाते हैं। उनके गीतों का स्त्री विमर्श, उनके गीतों की श्रंगारिकता, शब्द चयन, विषय वैविध्य सब कुछ अद्भुत है। वे श्रोताओं के साथ साथ पाठकों की भी प्रिय हैं।
धरोहर बीसवीं शब्दांजलि कीर्तिशेष रचनाकार श्री संतोष कुमार वर्मा “फ़न” जी की रचनाएँ और संस्मरण सुनिए उनकी कवयित्री पुत्री सपना सोनी जी के साथ ।
शिवोहम सहित्यिक मंच धरोहर की प्रथम शब्दांजलि कालजयी रचनाकार डॉ उर्मिलेश शंखधर जी की कविताएं और स्मृतियाँ सुनिये उनकी पुत्री श्रीमती सोनरूपा विशाल जी के साथ।
शिवोहम_साहित्यिक_मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनें कानपुर नगर से वरिष्ठ गीतकार श्री हरीलाल मिलन जी को। कानपुर सदैव से साहित्यिक गतिविधियों में उर्वर रहा है। अन्य शहरों के इतर कानपुर की एक अपनी विशेषता है कि कानपुर में अनेक साहित्यिक संस्थाओं के माध्यम से होने वाली कवि गोष्ठियों में आपको ऐसे रचनाकार मिल जाएंगे जिन्हें मंच पर आप दीपक लेकर भी खोजें तो शायद नहीं मिलेंगे। अनेक ऐसे नाम आज भी कानपुर में हैं जिन्हें मंच का कोई लालच नहीं, कोई लिप्सा नहीं परंतु उनकी साहित्य साधना अति उत्कृष्ट है। वे बिना प्रशंसा की आस में सतत अपने सहित्यिक पथ पर गतिमान हैं। श्री हरीलाल मिलन जी कानपुर की साहित्यिक खेप की धरोहर हैं। वे निरंतर अपनी साहित्य साधना के जाज्वल्यमान सूर्य से शब्दों की उर्वरा धरती को जीवन रश्मि प्रदान करते रहे हैं। वे अनेक कालजयी रचनाओं के रचनाकार हैं। उनका राष्ट्रभाषा गान पूरे हिंदुस्तान नें एक स्वर में अनेक रेडियो स्टेशनों के माध्यम से गुनगुनाया है।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं डॉ कुँवर बेचैन जी को। वर्तमान की मंचीय काव्य परंपरा में अग्रणी, सुमधुर प्रस्तोता डॉ कुंवर बेचैन जी वास्तव में गीतकुंवर हैं। उनके गीतों का वैविध्य, और प्रतीक योजना तो अद्भुत है ही साथ में उनका स्वर उसमें और अधिक सौंदर्य वृद्धि कर देता है। वे गीतों के साथ लोकरंजन व लोकमंगल दोनों की कार्य सम्पादित करने में सक्षम हैं। आइये हिंदी गीतिकाव्य के अलंकारिक स्वर को सुनें
धरोहर सत्रहवीं शब्दांजलि यशशेष कवि निर्दोष हिसारी की रचनाएँ और संस्मरण सुनिए उनकी सुपुत्री कवयित्री अल्पना सुहासिनी जी साथ
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं प्रसिद्ध गीतकार श्री विनोद श्रीवास्तव जी को। श्री विनोद श्रीवास्तव जी वर्तमान के उन गीतकारों में से हैं जिनके लिए उनकी कविता की सार्थकता सर्वोपरि है। आज के समय में जब ऐसी कविताओं की बाढ़ आ गयी जिनकी उम्र सप्ताह दो सप्ताह से अधिक नहीं होती तब उनके जैसा गीतकार सच्चे गीतों की रचनाओं में पूर्णतः समर्पित है। उनके गीतों के विम्ब विधान, शब्द योजना और प्रतीक विन्यास पाठकों को सहज ही आश्चर्यचकित कर देते हैं। उनके भाव पक्ष में आशातीत कल्पनाशक्ति का अद्भुत समन्वय मिलता है। कभी कभी तो उनके गीत पढ़कर लगता है मानों वे और गीत एक दूसरे के पर्याय हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में कल सुनिये प्रसिद्ध गीतकार श्री यश मालवीय जी को। मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।। (रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक १५) कहा जाता है कि यह श्लोक रामायण का आधारभूत श्लोक है जो सदैव से यह परिभाषित करता रहा है कि कविता का उद्भव करुणा से हुआ है। वास्तव में कविता मात्र करुणा का नहीं वरन हमारे जीवन के अनेकानेक अनुभवों का रूपांतर है। एक प्रेमी विरह में प्रेमिका का स्मरण कर गीत रच सकता है तो वही वही प्रेमी मिलन के क्षणों में नायिका की वेणी में पुष्प गूँथते हुए भी काव्यपथ की ओर चल सकता है। माँ मीरा अपने पदों में अपने आराध्य को याद कर लेती है तो बाबा सूर अपने सखा को बुला लेते हैं। कहीं महीयसी महादेवी की पीड़ा बिलखती है तो कहीं बाबा नागार्जुन का रोष व्यंग करता है, कहीं भूषण के छंद गर्जन करते हैं तो कहीं काका के कुंडलिया अट्टहास करते से दिखाई देते हैं। हमारे जीवन के हर अनुभव को कविता नें देखा है, लिखा है और गाया है। गीतों के अनंत मार्ग के एक ऐसे ही पथिक से हम मिलते हैं जिन्हें हम श्री यश मालवीय के नाम से जानते हैं। वे उन चुनिंदा रचनाकारों में से हैं कि वे जिस राह पर चल रहे थे उसी राह पर मील के पत्थरों में उनके नाम को अंकित कर दिया गया है। उनके विषय में बहुत कुछ भी कह दिया जाए तो कहीं किसी को अतिशयोक्ति का भान नहीं होगा ऐसे गीत पथ के अग्रगामी पथिक, गीत कविता के अनन्य पुरोधा के अमृतमय गीतों के श्रवण लाभ का आनंद लें
शिवोहम_साहित्यिक_मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनें कानपुर नगर से वरिष्ठ गीतकार श्री हरीलाल मिलन जी को। कानपुर सदैव से साहित्यिक गतिविधियों में उर्वर रहा है। अन्य शहरों के इतर कानपुर की एक अपनी विशेषता है कि कानपुर में अनेक साहित्यिक संस्थाओं के माध्यम से होने वाली कवि गोष्ठियों में आपको ऐसे रचनाकार मिल जाएंगे जिन्हें मंच पर आप दीपक लेकर भी खोजें तो शायद नहीं मिलेंगे। अनेक ऐसे नाम आज भी कानपुर में हैं जिन्हें मंच का कोई लालच नहीं, कोई लिप्सा नहीं परंतु उनकी साहित्य साधना अति उत्कृष्ट है। वे बिना प्रशंसा की आस में सतत अपने सहित्यिक पथ पर गतिमान हैं। श्री हरीलाल मिलन जी कानपुर की साहित्यिक खेप की धरोहर हैं। वे निरंतर अपनी साहित्य साधना के जाज्वल्यमान सूर्य से शब्दों की उर्वरा धरती को जीवन रश्मि प्रदान करते रहे हैं। वे अनेक कालजयी रचनाओं के रचनाकार हैं। उनका राष्ट्रभाषा गान पूरे हिंदुस्तान नें एक स्वर में अनेक रेडियो स्टेशनों के माध्यम से गुनगुनाया है।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये आज सुनें गाज़ियाबाद निवासी श्री वेद शर्मा जी को। मनुष्य के विचार जब चिन्तन की भट्टी में पकते हैं तो सुदृढ़ होकर जीवन दर्शन बनता है। जिसका जीवन दर्शन जितना अधिक सुदृढ़ और व्यवहारिक होगा वह अपने जीवन में सफलता के सोपान उतनी शीघ्रता से चढ़ेगा। यही बात साहित्य पर भी लागू होती है जिसका जीवन दर्शन जितना विशद उसका साहित्य उतना अधिक उत्कृष्ट और लोकमंगलकारी होगा। श्री वेद शर्मा जी जीवन के अनुभवों को भट्टी का ताप महसूस कर सकने वाले गीतकार हैं। उनके गीतों में उनके जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, उनके आशावाद और उनकी सृजनशीलता का स्पष्ठ रूपांतरण हुआ है। उनके गीत उनके जीवन के खट्टे – मीठे अनुभवों के अनुवाद से हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं श्री राजेन्द्र गौतम जी को। कल खगोल विज्ञान के अनुसार सूर्य ग्रहण है। अर्थात कल सूर्य पृथ्वी पर दिखाई नहीं देगा क्योंकि सूर्य और पृथ्वी के मध्य चंद्रमा आ जायेगा। परंतु यह आंशिक है। ग्रहण एक स्वाभाविक क्रिया है। भारतीय साहित्य भी ऐसे साहित्यिक ग्रहणों के कई काल से गुजरा है। तमाम असाहित्यिक राहुओं और केतुओं नें साहित्य के दैदीप्यमान सूर्य को निगलने का प्रयास किया है परंतु उस काल में कई साहित्यकार सूर्य की उन बचकर निकलने वाली रश्मियों की भाँति खड़े हो गए जो हमें यह आभास दिलाती रहीं हैं कि समय कठिन है पर उम्मीद नहीं छोड़ी जानी चाहिए। श्री राजेन्द्र जी उन उम्मीद की किरणों में से एक हैं। समय कैसा भी हो, गैर साहित्यिकता नें कितना भी मजबूती से पैर जमाये रहे हों आप सदैव साहित्यिक मार्ग पर अनवरत चलते रहे। आइये साहित्य मार्ग के दृढ़ अनुगामी से मिलें
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