Satya Ki Jeet
आज का आधुनिक युग, नारी-सशक्तिकरण का दौर है। महान कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा लिखित कविता (खण्ड काव्य) सत्य की जीत में द्रौपदी के माध्यम से पग-पग पर आज की जागृत नारी ही बोल रही है। हालांकि इस खण्डकाव्य की कथा महाभारत की चीर-हरण घटना पर आधारित है, किन्तु कवि ने उसमें वर्तमान नारी की मनोदशा को दिखाने का प्रयास किया है,
द्रौपदी स्वाभिमानी है। वह अपमान सहन नहीं कर सकती। वह अपना अपमान नारी जाति का अपमान समझती है। वह नारी के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने वाली किसी भी बात को स्वीकार नहीं कर सकती।
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की कविता को गाथा पर ले कर आ रही हैं, नयनी दीक्षित ।
Satya Ki Jeet
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत (भाग – 17)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत (भाग – 17)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत (भाग – 17)
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सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर धृतराष्ट्र सत्य और असत्य को असत्य कहकर अपने नीर-क्षीर विवेक का परिचय देते हैं। वह लोकमत का आदर करते हुए सभासदों को शान्त करते हुए कहते हैं वे यह भी स्वीकार करते हैं कि विश्व के सन्तुलित विकास के लिए हृदय और बुद्धि का समन्वित विकास आवश्यक है। वह दुर्योधन को आदेश देते हैं कि पाण्डवों को मुक्त कर दो एवं उन्हें उनका राज्य लौटा दो।
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 16)
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 16)
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Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 16)
Narrator
सत्य की जीत के इस प्रसंग में द्रौपदी द्युत सभा में कौरवों के छल कपट से खेले जाने वाले द्युत क्रीड़ा का पुरज़ोर विरोध कर रही है समस्त धर्माचार्य भीष्म पितामह द्रोणाचार्य विदुर सहित सभी द्रोपदी का साथ देते हुए कौरवों के छल कपट का विरोध कर रहे हैं । द्वारिका प्रसाद महेश्वरी के द्वारा लिखी गई महाभारत में द्युत सभा का वर्णन नयनी दीक्षित की आवाज़ में
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 15)
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 15)
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Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 15)
Narrator
द्रौपदी के सत्य, तेज और सतीत्व के आगे निस्तेज हो मदान्ध दुर्योधन, दु:शासन, आदि को द्रौपदी पुनः ललकारती हुई कहती है तुम्हारे भरसक प्रयास करने के बावजूद तुम मेरा बाल बांका भी ना कर सके क्योंकि तुम सब अधर्म अधर्म और छल कर रहे हो और तुम्हारे द्वारा किए गए अधर्म के लिए तुम्हें भविष्य में कभी क्षमा नहीं मिलेगी|
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 14)
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 14)
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Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 14)
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द्रौपदी रौद्र रूप धारण कर लेती है। उसके दुर्गा-जैसे तेजोद्दीप्त भयंकर रौद्र-रूप को देख दु:शासन घबरा जाता है और उसके वस्त्र खींचने में स्वयं को असमर्थ पाता है। द्रौपदी कौरवों को पुन: चीर-हरण करने के लिए ललकारती है। सभी सभासद द्रौपदी के सत्य, तेज और सतीत्व के आगे निस्तेज हो जाते
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 13)
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 13)
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Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 13)
Narrator
दु:शासन द्वारा केश खींचने के बाद द्रौपदी रौद्र-रूप धारण कर लेती है| वह सिंहनी के समान गरजती हुई दु:शासन को ललकारती है। द्रौपदी की गर्जना से पूरा राजमहल हिल जाता है। और समस्त सभासद स्तब्ध रह जाते हैं| जैसे ही वे द्रौपदी का चीर हरण करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाता है द्रोपदी की सतीत्व ज्वाला से पराजित हो जाता है|
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 12)
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 12)
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Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 12)
Narrator
दुराचारी दुःशासन सभी बड़ों और गुरुजनों के सामने द्रौपदी के साथ अभद्र व्यवहार करता है और द्रौपदी का चीर हरण करने के लिए आगे बढ़ता है किंतु द्रौपदी को अपने तत्व पर सतीत्व पर पूर्ण विश्वास है और कहती है सत्य की हमेशा जीत होती है सत्य की ही जीत होती है|
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 11)
Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 11)
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Satya ki jeet (सत्य की जीत- भाग – 11)
Narrator
सत्य की जीत के इस प्रसंग में द्युत सभा में युधिष्ठिर जब द्रौपदी को भी हार जाते हैं तब दुशासन द्वारा द्रौपदी का द्युत सभा में चीरहरण करने के आगे बढ़ता है पर अभी भी समस्त धर्माचार्य भीष्म पितामह ,द्रोणाचार्य ,विदुर सहित सभी इस दृश्य को देख मौन हैं ।तब द्रौपदी का चीत्कार पूरी सभा में गूंजता है ।द्वारिका प्रसाद महेश्वरी के द्वारा लिखी गई महाभारत में द्युत सभा का वर्णन नयनी दीक्षित की आवाज़ में
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत (भाग – 10)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत (भाग – 10)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत (भाग – 10)
Narrator
सत्य की जीत के इस प्रसंग में द्युत सभा में युधिष्ठिर जब द्रौपदी को भी हार जाते हैं तब दुशासन द्वारा द्रौपदी का द्युत सभा में चीरहरण करने के आगे बड़ने पर भी समस्त धर्माचार्य भीष्म पितामह ,द्रोणाचार्य ,विदुर सहित सभी इस दृश्य को देख मौन हैं ऐसे में सिर्फ कौरवों में विकर्ण पुरज़ोर विरोध करता है ऐसे में कर्ण क्या कहता है। द्वारिका प्रसाद महेश्वरी के द्वारा लिखी गई महाभारत में द्युत सभा का वर्णन नयनी दीक्षित की आवाज़ में
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 9)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 9)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 9)
Narrator
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में विकर्ण को एक विवेकशील व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। कौरवों की विशाल सभा के मध्य जब दुःशासन शस्त्रबल की महत्ता और शास्त्रबल को निर्बलों का शस्त्र कहकर शास्त्रों के प्रति अपनी अश्रद्धा तथा अनास्था प्रकट करता है तो विकर्ण इस अनीति को सहन नहीं कर पाता है।इसी संदर्भ में यह पंक्तियां लिखी गई है
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 8)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 8)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 8)
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दुःशासन शस्त्र-बल को सब कुछ समझता है। उसे धर्म-शास्त्र और धर्मज्ञों में कोई विश्वास नहीं है। इन्हें तो वह शस्त्र के आगे हारने वाले मानता है
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 7)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 7)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 7)
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द्रौपदी कह रही है कि युधिष्ठिर बहुत सरल-हृदय के व्यक्ति हैं। वे दूसरों को भी सरल-हृदय समझते हैं। इसी सरलता के कारण वे शकुनि और दुर्योधन के कपट जाल में फंस गए हैं|किंतु यहां बैठे सभी धर्मज्ञों से मैं पूछना चाहती हूं कि आज धर्म की विजय हुई या कपट और छल की
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 6)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 6)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 6)
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भीष्म पितामह द्रौपदी द्वारा उठाए गए प्रश्नों को सर्वथा उचित मानते हैं किंतु साथ में यह कहते हैं कि धर्मराज युधिष्ठिर धर्म से बंधे हुए हैं अतः इस कारण उन्हें अपनी हार स्वीकार करनी होगी |पत्नी ,पति की अर्धांगिनी होती है इस नाते उनका तुम्हारे ऊपर अधिकार बनता है|
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 5)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 5)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 5)
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द्रौपदी ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की नायिका है |वह केवल दु:शासन ही नहीं वरन् अपने पति को भी प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर स्पष्टीकरण माँगती है। वह भरी सभा में यह सिद्ध कर देती है कि जुए में स्वयं को हारने वाले युधिष्ठिर को मुझे दाँव पर लगाने का कोई अधिकार नहीं है
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 4)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 4)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 4)
Narrator
द्रौपदी ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की नायिका है |राजा द्रुपद की पुत्री, धृष्टद्युम्न की बहन तथा युधिष्ठिर सहित पाँचों पाण्डवों की पत्नी है। अत्यधिक विकट समय होते हुए भी वह बड़े आत्मविश्वास से दु:शासन को अपना परिचय देती हुई कहती है|
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 3)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 3)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 3)
Narrator
दुःशासन नारी को वासना एवं भोग की वस्तु कहता है।वह नारी के प्रति रूढ़िवादी दृष्टिकोण रखता है |वह नारी को भोग्या और पुरुष की दासी मानता है। वह नारी कीदुर्बलता का उपहास उड़ाता है|
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 2)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 2)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 2)
Narrator
द्रौपदी स्वाभिमानिनी है। वह अपमान सहन नहीं कर सकती। वह अपना अपमान नारी जाति का अपमान समझती है। वह नारी के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने वाली किसी भी बात को स्वीकार नहीं कर सकती। वह अन्यायी और अधर्मी पुरुषों से संघर्ष करने वाली है। जानते हैं कैसे ?द्वारिका प्रसाद महेश्वरी के द्वारा लिखी गई सत्य की जीत ( भाग – 2),नयनी दीक्षित की आवाज़ में
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 1)
Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 1)
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Satya Ki Jeet (सत्य की जीत ( भाग – 1)
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दुःशासन द्रौपदी के बाल खींचकर भरी सभा में ले आता है और उसे अपमानित करना चाहता है। तब द्रौपदी बड़े साहस एवं निर्भीकता के साथ दुःशासन को निर्लज्ज और पापी कहकर पुकारती है।द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी जी ने इस खंडकाव्य को जितने प्रभावी ढंग से वर्णन किया है ,उतने ही प्रभावी ढंग से नयनी दीक्षित ने आवाज दी है