4 अक्टूबर 1977 जब अटल बिहारी वाजपेई विदेश मंत्री के रूप में कार्यभार संभाल रहे थे, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर हिंदी भाषा का परचम लहराया ।भाषण के बाद UNGA का सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।
9 नवंबर 1953 को कंबोडिया आजाद मुल्क बन गया| लेकिन इसके लोकतंत्र बनने में अभी समय था. सत्ता का केंद्र थे राजा नॉरडम सिहानुक|
3 अक्टूबर 2010 में भारत ने पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों की मेज़बानी की ।खेलों के इतिहास में ये एक नई उपलब्धि थी। 1930 में कनाडा के हेमिल्टन शहर में राष्ट्रमंडल खेलों की शुरुआत हुई थी ।जिसे 2010 में भव्य तरीके से दिल्ली में आगाज़ किया गया भारत 101 पदक लेकर दूसरे स्थान पर रहा। 177 पदको के साथ ऑस्ट्रेलिया का प्रथम स्थान रहा।
पति राजा दलपत शाह की असमय मृत्यु होने के बाद अपने पुत्र वीर नारायण को सिंहासन पर बैठाकर भारत की प्रसिद्ध वीरांगना रानी दुर्गावती ने मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में शासन कर उसका संरक्षण किया ।1564 में जबलपुर के पास हुए ऐतिहासिक युद्ध में रानी दुर्गावती का सामना आसफ़ खां से हुआ ।इस युद्ध में रानी दुर्गावती को वीरगति प्राप्त हुई। उनके नाम पर जबलपुर में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। 1988 में रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया।
विशेषतः महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य करने वाले समाज- सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म दिवस
साल 1996 में 20 अक्टूबर को पहली बार विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस (World Osteoporosis Day) मनाया गया था। जिसकी शुरुआत यूनाइटेड किंगडम के नेशनल ऑस्टियोपोरोसिस सोसाइटी ने यूरोपीय आयोग के साथ मिलकर एक अभियान के साथ की थी।
एक कंजूस व्यक्ति के पास बहुत सारा सोना था लेकिन वह उसका सदुपयोग ना करके उसे जमीन में गाडे रखता था ।एक दिन उसका यह सारा सोना चोरी हो गया। इस बात से कंजूस को क्या सीख मिली और उसने क्या किया जाने के लिए सुनते हैं सूर्यकांत त्रिपाठी द्वारा लिखी गई कहानी कंजूस और सोना निधि मिश्रा जी की आवाज में
Credit: Josh Talk
https://www.youtube.com/watch?v=XWQlMArBjzI&t=18s
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धीरेंद्र अस्थाना की कहानी पतन बोध में, इंसान पूरी दुनिया से झूठ बोल सकता है लेकिन क्या वह अपने आप से झूठ बोल सकता है ?इंसान जब अकेला होता है खासतौर पर मानसिक रूप से अकेला तो वह सारे सच उसके सामने आते हैं जिनसे वह सारी जिंदगी बचता रहा है लेकिन यही सच क्या कभी-कभी उसके पतन का कारण बनते हैं या नहीं ?
जब मन से रिश्ता नहीं जुड़ता है| तब हम किसी भी रिश्ते से सामाजिक रुप से जुड़ भी जाए ,वह सिर्फ एक धोखा होता है |वह आपसे अलग भी हो जाए तो उसके प्रति कोई शोक नहीं होता इसी बात को बड़ी गंभीरता से अपनी कहानी नो सिंपैथी प्लीज मैं मालती जोशी ने प्रस्तुत किया है
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