शायर आज अपने रकीब( प्रेम में उसका प्रतिद्वंदी )से कह रहा है कि वह कितना किस्मत वाला है कि उसे वास्तव में उसकी महबूबा का प्यार मिल रहा है, जबकि वह केवल अपनी कल्पनाओं में उसके प्रेम को महसूस कर पाया है| आमिर की खूबसूरत आवाज में सुनते हैं फैज़ अहमद फैज़ की नज़्म रकीब से…
गुलशन में बहार तभी आएगी जब महबूब आएगा ,यह खामोश गमगीन माहौल तभी खुशनुमा और रंगीन होगा जब महबूब का जिक्र होगा | शायर ने अपनी महबूबा की दिलकशी को अपने लफ्जों किस प्रकारसे सजाया है ?आमिर की खूबसूरत आवाज नहीं सुनते हैं अहमद फ़ैज़ की नज़्म “गुलों में रंग भरे”..
शायर की यह ग़ज़ल अपने अंदर काफी कुछ समेटे हुए हैं | शायर कहता है वह अपनी जिंदगी के सफर में आगे भी जा चुका है और पीछे भी रह गया है इसीलिए वह जीते -जी यादगार बन गया है |वह मौजूद होते हुए भी गुजरे हुए वक्त की एक निशानी है |शायर अपनी निजी जिंदगी को एक राज बना कर रखना चाहता है लेकिन उसका सारा हाल सारा जग जानता है, क्योंकि शायर यह हुनर सीख ही नहीं पाया |पूरी ग़ज़ल जॉन यारों का यार को खूबसूरत अंदाज में समझते हुए सुनते हैं ,आमिर की आवाज में….
शायर बता रहा है किसी तरह उसकी शाम बस गुजर ही गई |तकलीफ हुई, परेशानी भी हुई लेकिन जुदाई का गम हमसे पूछ कर फिर क्यों याद दिला रहे हो | शायर ने अपने महबूब को याद कर लिया है जिससे उसकी तकलीफ खत्म तो नहीं हुई बस कुछ हद तक कम जरूर हुई है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा लिखी गई नज़्म “शाम ए फिराक “,को सुनते हैं आमिर की आवाज में…
शायर ने बड़े व्यंग्यात्मक ढंग से अपने देश को संबोधित करते हुए कहा है कि अब यहां कोई वतन -परस्त भी सुकून से नहीं रह सकता |यहां पर खास जगह जाने वालों के ऊपर पाबंदी है और जो लोगों को रोक रहे हैं, वह आवारा घूम रहे हैं| फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा लिखी गई नज़्म “निसार में तेरी गलियां “को सुनते हैं आमिर की आवाज में…
महोब्बत में जुदाई ,जिसमें आशिक और उसकी माशूका दोनों का दिन का चैन और रातों की नींदे गायब हो जाती है।दर्द ही उनकी किस्मत बन जाती है।हालत-ए-हाल के सबब ग़ज़ल में जान सकेगें .आमिर की आवाज़ में..
शायर ने बड़े व्यंग्यात्मक ढंग से अपने देश को संबोधित करते हुए कहा है कि अब यहां कोई वतन -परस्त भी सुकून से नहीं रह सकता |यहां पर खास जगह जाने वालों के ऊपर पाबंदी है और जो लोगों को रोक रहे हैं, वह आवारा घूम रहे हैं| फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा लिखी गई नज़्म “निसार में तेरी गलियां “को सुनते हैं आमिर की आवाज में…
शायर ने उस इश्क का जिक्र किया है जो किसी भी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी टूटता नहीं है और हमेशा वैसे का वैसा ही बना रहता है |इश्क (प्रेम )हार- जीत से बहुत ऊपर होता है, शायर का मानना है कि इसमें सिर्फ जीता जा सकता है, हारने का तो सवाल ही नहीं होता…
शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म में शायर अपने महबूब की खूबसूरती ,उसकी वफ़ा को मानता तो है लेकिन वह अपने आसपास की परेशानियों को नजरअंदाज नहीं कर पाता |आइए सुनते हैं आमिर की आवाज में इस खूबसूरत नज़्म मुझसे पहली सी मोहब्बत…
शायर बता रहा है किसी तरह उसकी शाम बस गुजर ही गई |तकलीफ हुई, परेशानी भी हुई लेकिन जुदाई का गम हमसे पूछ कर फिर क्यों याद दिला रहे हो | शायर ने अपने महबूब को याद कर लिया है जिससे उसकी तकलीफ खत्म तो नहीं हुई बस कुछ हद तक कम जरूर हुई है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा लिखी गई नज़्म “शाम ए फिराक “,को सुनते हैं आमिर की आवाज में…
गुलशन में बहार तभी आएगी जब महबूब आएगा ,यह खामोश गमगीन माहौल तभी खुशनुमा और रंगीन होगा जब महबूब का जिक्र होगा | शायर ने अपनी महबूबा की दिलकशी को अपने लफ्जों किस प्रकारसे सजाया है ?आमिर की खूबसूरत आवाज नहीं सुनते हैं अहमद फ़ैज़ की नज़्म “गुलों में रंग भरे”..
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pragati sharma