चतुर्थ सर्ग – महादान
चतुर्थ सर्ग में देवराज इंद्र ब्राह्मण वेश में प्रातः काल सूर्योपासना के समय कर्ण के पास आते हैं और कर्ण से कवच और कुंडल दान में मांगते हैं। संकल्पबद्ध कर्ण उन्हें अपने कवच और कुंडल दान करते हैं। कर्ण के व्रत को देख देवराज इंद्र कर्ण को महादानी, पवित्र और सुधि जबकि अपने आप को प्रवंचक, कुटिल और पापी जैसी संज्ञाएँ देते हैं। ग्लानि में आकंठ डूबे देवराज इन्द्र कर्ण को एकघ्नी शक्ति वरदान में प्रदान करते हैं।
‘दानवीर! जय हो, महिमा का गान सभी जन गाये,
देव और नर, दोनों ही, तेरा चरित्र अपनाये.’
दे अमोघ शर-दान सिधारे देवराज अम्बर को,
व्रत का अंतिम मूल्य चुका कर गया कर्ण निज घर को।
Maa Shailputri
नवरात्र के 9 दिन भक्ति और साधना के लिए बहुत पवित्र माने गए हैं। इसके पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय पर्वतों का राजा है। वह अडिग है, उसे कोई हिला नहीं सकता। जब हम भक्ति का रास्ता चुनते हैं तो हमारे मन में भी भगवान के लिए इसी तरह का अडिग विश्वास होना चाहिए, तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। यही कारण है कि नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
Chants credit- Jyoti upreti sati
शोलागढ़@34km – Kumar Rehman (कुमार रहमान) – Nayani Dixit
जंगल में क्या होने वाला था? पेंटिंग की तलाश हर किसी को क्यों थी ?इंस्पेक्टर सोहराब शोलागढ़ क्यों जा रहा है ?सार्जेंट सलीम को कौन मिल गया था? क्या वह किसी नई मुसीबत में फंसने वाला था ?इंस्पेक्टर सोहराब का शोलागढ़ जाने के पीछे क्या मकसद है? ऐसे बहुत से सवालों से पर्दा उठाने के लिए सुनते हैं कहानी का यह भाग
ग्रामोफोन पिन का रहस्य – Byomkesh Bakshi (व्योमकेश बक्शी) – Nayani Dixit
ग्रामोफोन पिन रहस्य में ब्योमकेश बक्शी कैसे पता लगाते हैं कि murderer कौन हैं जो खड़े -खड़े लोगों का मर्डर क्यों कर रहा है? कौन है वह इंसान और वह मर्डर क्यों कर रहा है ?और ग्रामोफोन का इन सबसे क्या ताल्लुक है? जय उलझन ब्योमकेश बक्शी अपने दिमाग से कैसे सुलझाते हैं और अजीत इसमें उनका कैसे साथ देता है?
तृतीय सर्ग – कृष्ण संदेश
रश्मिरथी के सभी सर्गो में यह सर्ग सर्वाधिक लोकप्रिय सर्ग है। संभावित युद्धजनित महाविनाश को टालने के लिए स्वयं योगिराज कृष्ण कौरवों के दरबार पहुंचते हैं और पांडव पक्ष की ओर से निवेदन करते हैं
दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खाएंगे,
परिजन पर असि न उठाएंगे।
परंतु हठी दुर्योधन को यह भी स्वीकार नहीं होता। वह तो केवल एक ही हठ पर अडिग था कि “सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव।” और अभिमान वश वह श्रीकृष्ण को बंधक बनाने का असफल प्रयास भी करता है। अंत में श्रीकृष्ण यह भी प्रयास करते हैं कि कर्ण पाण्डव पक्ष में सम्मिलित हो जाये क्योंकि वह पांडवों का बड़ा भाई है, परंतु इस प्रयास में भी असफल हो उन्हें रिक्त – कर वापस आना पड़ता है।
आकांक्षा – गाय दी मोपासां – नयनी दीक्षित
प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक guy de Maupassant के द्वारा लिखी गई कहानी आकांक्षा में ,एक ऐसे किरदार की कहानी है जो बाल्यावस्था से ही प्रतिष्ठित, सम्मानित व्यक्ति बनने की आकांक्षा रखता है किंतु कहते हैं ना कि कभी-कभी यह आकांक्षा अति आकांक्षा में तब्दील हो जाती है। ऐसे ही कुछ इस किरदार के साथ होता है। यह किरदार इस बात से इतना अधिक ग्रसित हो जाता है या यूं कहें अंधा हो जाता है कि उसके घर में ही, उसकी नाक के नीचे कोई सुराग हो रहा है, उसके परिवार में कोई सेंध लगाई जा रही है, उसे पता ही नहीं चलता। ऐसे में उस किरदार के साथ और क्या- क्या घटित होता है। जानिए कुछ गंभीर ,कुछ व्यंग कुछ भावविभोर कर देने वाली यह खूबसूरत कहानी आकांक्षा में जिसे आवाज़ दी है नयनी दीक्षित ने…
तृतीय सर्ग – कृष्ण संदेश
रश्मिरथी के सभी सर्गो में यह सर्ग सर्वाधिक लोकप्रिय सर्ग है। संभावित युद्धजनित महाविनाश को टालने के लिए स्वयं योगिराज कृष्ण कौरवों के दरबार पहुंचते हैं और पांडव पक्ष की ओर से निवेदन करते हैं
दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खाएंगे,
परिजन पर असि न उठाएंगे।
परंतु हठी दुर्योधन को यह भी स्वीकार नहीं होता। वह तो केवल एक ही हठ पर अडिग था कि “सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव।” और अभिमान वश वह श्रीकृष्ण को बंधक बनाने का असफल प्रयास भी करता है। अंत में श्रीकृष्ण यह भी प्रयास करते हैं कि कर्ण पाण्डव पक्ष में सम्मिलित हो जाये क्योंकि वह पांडवों का बड़ा भाई है, परंतु इस प्रयास में भी असफल हो उन्हें रिक्त – कर वापस आना पड़ता है।
सप्तम सर्ग – कर्ण – बलिदान
यह रश्मिरथी खण्डकाव्य का अंतिम सर्ग है। कर्ण और अर्जुन का दुर्धर्ष युद्ध चरम पर है। एक बार तो कर्ण के बाणों से आहत हो अर्जुन मूर्छित तक हो जाते हैं। परंतु काल के वश कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में फंसता है और उसी क्षण श्रीकृष्ण अर्जुन को ललकारते हैं
खड़ा है देखता क्या मौन भोले?
शरासन तान, बस अवसर यही है।
घड़ी फिर और मिलने की नहीं है,
विशिख कोई गले के पार कर दे।
अभी ही शत्रु का संहार कर दे।
और अर्जुन का एक बाण महापराक्रमी योद्धा को सदैव के लिए काल के हवाले कर देता है। श्रीकृष्ण सभी को सीख देते हैं कि कर्ण का चरित्र निश्चय ही अनुकरणीय है।
समझ कर द्रोण मन में भक्ति भरिये,
पितामह की तरह सम्मान करिये।
मनुजता का नया नेता उठा है।
जगत से ज्योति का जेता उठा है।
प्रथम सर्ग – शौर्य प्रदर्शन
रश्मिरथी का प्रथम सर्ग आरम्भ होता है कौरव और पाण्डव राजकुमारों के शक्ति प्रदर्शन से। रंगभूमि में सभी कुमारों के शौर्य को देखकर जनता दंग हो जाती है। तब अचानक आगे आकर कर्ण सभी कुमारों को ललकारते हैं। इस पर उनका कुल – गोत्र जब सभा पूछती है तो वे उत्तर देते हैं
पूछो मेरी जाति शक्ति हो तो मेरे भुजबल से।
रवि समान दीपित ललाट से और कवच कुंडल से।
वाद विवाद के बाद एक तरफ कर्ण को दुर्योधन अंगदेश का राजा बनाते हैं वहीं गुरुवर द्रोण को यह भान हो जाता है कि अर्जुन का मार्ग अब निष्कंटक नहीं रहा।
छठे सर्ग की कथावस्तु हमे युद्धभूमि की ओर ले जाती है जहाँ अब कर्ण कौरव सेना का सेनापति है। श्रीकृष्ण को ज्ञात है कि जब तक कारण के पास देवराज इंद्र द्वारा प्रदत्त एकघ्नी शक्ति है तब तक पाण्डवों की विजय का मार्ग प्रशस्त नहीं है। अतः वह महावीर भीम पुत्र घटोत्कच को रण में आहूत करते हैं। उसके आते ही कौरव सेना में हाहाकार मच जाता है। तब दुर्योधन कर्ण से निवेदन करते हैं
दाहक प्रचंड इसका बल है,
यह मनुज नहीं कालनल है।
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तू नहीं जोश में आएगा,
आज ही समर चूक जाएगा।
अंततः कर्ण सेनापति के धर्म का निर्वाह करते हुए अमोघ एकघ्नी शक्ति का संधान करते हैं और घटोत्कच वीरगति को प्राप्त होता है। दिवस निश्चय ही कौरवों के नाम होता है पर कर्ण को ज्ञात है कि भविष्य अब पाण्डवों का हो चुका है।
हारी हुई पाण्डव चमू में हँस रहे भगवान थे।
पर जीत कर भी कर्ण के हारे हुए से प्राण थे।
द्वितीय सर्ग में उच्चकुलाभिमानी राजवंश की उपेक्षा के दंश से ग्रसित कर्ण धनुर्विद्या सीखने के लिए महर्षि परशुराम की शरण में जाते हैं। परंतु वहाँ वह अपने सूत पुत्र होने की पहचान छिपा लेते हैं। सारी विद्याएं सीखने के उपरांत एक दिवस काल का कराल चक्र चलता है और कर्ण की पहचान से पटाक्षेप हो जाता है तब महर्षि परशुराम कर्ण को श्राप देते हैं
सिखलाया ब्रह्मास्त्र तुझे जो काम नहीं वह आएगा।
है यह मेरा श्राप समय पर उसे भूल तू जाएगा।।
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pragati sharma