हिमांशु जोशी का जन्म उत्तराखंड के चंपावत जिले के ‘जोसयूड़ा’ गांव में 4 मई 1935 में हुआ था। उनके बचपन का लंबा समय ‘खेतीखान’ गांव में बीता जहां से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के बाद मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद 1948 में वो नैनीताल चले आए जहां से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता ‘पूर्णानन्द जोशी’ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका संघर्ष जोशी के लिए प्रेरणा बना, जिसका असर उनके लेखन पर भी पड़ा।[2] आजीविका की तलाश में हिमांशु जोशी ने दिल्ली आए और दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.फिल किया। जोशी ने पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए भी कार्य किया। उन्होने हिंदी फिल्मों के लिए भी लेखन कार्य किया।
उन तमाम टुकड़े-टुकड़े घटनाओं को एक दिन कहानी में पिरोकर ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में दे दिया तो तुम जैसे बौखला गये थे। यहाँ तक लिखा तुमने कि तुम्हारी इन नितान्त अन्तरंग बातों के साथ यह सब क्यों किया मैंने, और करने ही चला तो क्यों वसुधा के बारे में सारी बातें सच-सच नहीं लिखीं-वह तो इससे हज़ार गुना उदार थी ! यह कहानी वसुधा और देवेंद्र की है जो एक टाइप इंस्टिट्यूट में एक साथ होते हैं वसुधा के जीवन की कहानी एक सप्ताहिक पत्रिका में छपती है जिसे पढ़कर लोगों में अपनी जीवन की छाया मिलती
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