शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये आज सुनें गाज़ियाबाद निवासी श्री वेद शर्मा जी को। मनुष्य के विचार जब चिन्तन की भट्टी में पकते हैं तो सुदृढ़ होकर जीवन दर्शन बनता है। जिसका जीवन दर्शन जितना अधिक सुदृढ़ और व्यवहारिक होगा वह अपने जीवन में सफलता के सोपान उतनी शीघ्रता से चढ़ेगा। यही बात साहित्य पर भी लागू होती है जिसका जीवन दर्शन जितना विशद उसका साहित्य उतना अधिक उत्कृष्ट और लोकमंगलकारी होगा। श्री वेद शर्मा जी जीवन के अनुभवों को भट्टी का ताप महसूस कर सकने वाले गीतकार हैं। उनके गीतों में उनके जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, उनके आशावाद और उनकी सृजनशीलता का स्पष्ठ रूपांतरण हुआ है। उनके गीत उनके जीवन के खट्टे – मीठे अनुभवों के अनुवाद से हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं प्रसिद्ध गीतकार श्री विनोद श्रीवास्तव जी को। श्री विनोद श्रीवास्तव जी वर्तमान के उन गीतकारों में से हैं जिनके लिए उनकी कविता की सार्थकता सर्वोपरि है। आज के समय में जब ऐसी कविताओं की बाढ़ आ गयी जिनकी उम्र सप्ताह दो सप्ताह से अधिक नहीं होती तब उनके जैसा गीतकार सच्चे गीतों की रचनाओं में पूर्णतः समर्पित है। उनके गीतों के विम्ब विधान, शब्द योजना और प्रतीक विन्यास पाठकों को सहज ही आश्चर्यचकित कर देते हैं। उनके भाव पक्ष में आशातीत कल्पनाशक्ति का अद्भुत समन्वय मिलता है। कभी कभी तो उनके गीत पढ़कर लगता है मानों वे और गीत एक दूसरे के पर्याय हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये आज सुनते हैं श्री बलराम श्रीवास्तव जी को। पिछले बीस वर्षों में हिंदी कविता के मंचों नें तमाम बदलाव देखे हैं। मंचों की शालीनता और गंभीरता का दुशाला धीरे – धीरे उतारा गया और एक समय ऐसा भी लगा जब लगा कि अब मंच से साहित्य रूपी चादर के खींचकर फेंक ही दिया जाएगा, उस कठिन समय में भी कई रचनाकार ऐसे रहे जिन्होंने अपने मूल्यों से समझौता कभी नहीं किया और श्री बलराम श्रीवास्तव जी उनमें से एक हैं। आदरणीय बलराम जी को सुनकर वह सभी सीख सकते हैं जिन्हें यह लगता है कि कविता की गंभीरता समाप्त करके ही आप मंचों की ऊंचाइयों को छू सकते हैं। आपके गीत साहित्यिक रूप से समृद्ध तो हैं ही साथ में आपका अद्भुत स्वर आपके गीतों को सम्मोहक स्वरूप प्रदान कर देता हैं। आपके गीतों का सस्वर पाठ ऐसा लगता है मानों किसी ने कानों में मिश्री घोल दी हो आपके गीतों की गंगा में आचमन कर मन पवित्र हो उठता है। बात चाहे श्रृंगार की हो , दर्शन की हो अथवा देशभक्ति की आपके गीतों नें हर पहलू को बड़े सलीके से छुआ भी है और उत्कृष्टता के सोपान तक पहुँचाया भी है।
धरोहर उन्नीसवीं शब्दांजलि कीर्तिशेष रचनाकार पं. प्रेमनाथ द्विवेदी “रामायणी”जी की रचनाएँ और संस्मरण सुनिए उनके पुत्र डाॅ.कमलेश द्विवेदी के साथ ।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं डॉ कुँवर बेचैन जी को। वर्तमान की मंचीय काव्य परंपरा में अग्रणी, सुमधुर प्रस्तोता डॉ कुंवर बेचैन जी वास्तव में गीतकुंवर हैं। उनके गीतों का वैविध्य, और प्रतीक योजना तो अद्भुत है ही साथ में उनका स्वर उसमें और अधिक सौंदर्य वृद्धि कर देता है। वे गीतों के साथ लोकरंजन व लोकमंगल दोनों की कार्य सम्पादित करने में सक्षम हैं। आइये हिंदी गीतिकाव्य के अलंकारिक स्वर को सुनें
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं प्रसिद्ध गीतकार श्री विनोद श्रीवास्तव जी को। श्री विनोद श्रीवास्तव जी वर्तमान के उन गीतकारों में से हैं जिनके लिए उनकी कविता की सार्थकता सर्वोपरि है। आज के समय में जब ऐसी कविताओं की बाढ़ आ गयी जिनकी उम्र सप्ताह दो सप्ताह से अधिक नहीं होती तब उनके जैसा गीतकार सच्चे गीतों की रचनाओं में पूर्णतः समर्पित है। उनके गीतों के विम्ब विधान, शब्द योजना और प्रतीक विन्यास पाठकों को सहज ही आश्चर्यचकित कर देते हैं। उनके भाव पक्ष में आशातीत कल्पनाशक्ति का अद्भुत समन्वय मिलता है। कभी कभी तो उनके गीत पढ़कर लगता है मानों वे और गीत एक दूसरे के पर्याय हैं।
शिवोहम_साहित्यिक_मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनें कानपुर नगर से वरिष्ठ गीतकार श्री हरीलाल मिलन जी को। कानपुर सदैव से साहित्यिक गतिविधियों में उर्वर रहा है। अन्य शहरों के इतर कानपुर की एक अपनी विशेषता है कि कानपुर में अनेक साहित्यिक संस्थाओं के माध्यम से होने वाली कवि गोष्ठियों में आपको ऐसे रचनाकार मिल जाएंगे जिन्हें मंच पर आप दीपक लेकर भी खोजें तो शायद नहीं मिलेंगे। अनेक ऐसे नाम आज भी कानपुर में हैं जिन्हें मंच का कोई लालच नहीं, कोई लिप्सा नहीं परंतु उनकी साहित्य साधना अति उत्कृष्ट है। वे बिना प्रशंसा की आस में सतत अपने सहित्यिक पथ पर गतिमान हैं। श्री हरीलाल मिलन जी कानपुर की साहित्यिक खेप की धरोहर हैं। वे निरंतर अपनी साहित्य साधना के जाज्वल्यमान सूर्य से शब्दों की उर्वरा धरती को जीवन रश्मि प्रदान करते रहे हैं। वे अनेक कालजयी रचनाओं के रचनाकार हैं। उनका राष्ट्रभाषा गान पूरे हिंदुस्तान नें एक स्वर में अनेक रेडियो स्टेशनों के माध्यम से गुनगुनाया है।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं डॉ कुँवर बेचैन जी को। वर्तमान की मंचीय काव्य परंपरा में अग्रणी, सुमधुर प्रस्तोता डॉ कुंवर बेचैन जी वास्तव में गीतकुंवर हैं। उनके गीतों का वैविध्य, और प्रतीक योजना तो अद्भुत है ही साथ में उनका स्वर उसमें और अधिक सौंदर्य वृद्धि कर देता है। वे गीतों के साथ लोकरंजन व लोकमंगल दोनों की कार्य सम्पादित करने में सक्षम हैं। आइये हिंदी गीतिकाव्य के अलंकारिक स्वर को सुनें
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में कल सुनिये प्रसिद्ध गीतकार श्री यश मालवीय जी को। मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।। (रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक १५) कहा जाता है कि यह श्लोक रामायण का आधारभूत श्लोक है जो सदैव से यह परिभाषित करता रहा है कि कविता का उद्भव करुणा से हुआ है। वास्तव में कविता मात्र करुणा का नहीं वरन हमारे जीवन के अनेकानेक अनुभवों का रूपांतर है। एक प्रेमी विरह में प्रेमिका का स्मरण कर गीत रच सकता है तो वही वही प्रेमी मिलन के क्षणों में नायिका की वेणी में पुष्प गूँथते हुए भी काव्यपथ की ओर चल सकता है। माँ मीरा अपने पदों में अपने आराध्य को याद कर लेती है तो बाबा सूर अपने सखा को बुला लेते हैं। कहीं महीयसी महादेवी की पीड़ा बिलखती है तो कहीं बाबा नागार्जुन का रोष व्यंग करता है, कहीं भूषण के छंद गर्जन करते हैं तो कहीं काका के कुंडलिया अट्टहास करते से दिखाई देते हैं। हमारे जीवन के हर अनुभव को कविता नें देखा है, लिखा है और गाया है। गीतों के अनंत मार्ग के एक ऐसे ही पथिक से हम मिलते हैं जिन्हें हम श्री यश मालवीय के नाम से जानते हैं। वे उन चुनिंदा रचनाकारों में से हैं कि वे जिस राह पर चल रहे थे उसी राह पर मील के पत्थरों में उनके नाम को अंकित कर दिया गया है। उनके विषय में बहुत कुछ भी कह दिया जाए तो कहीं किसी को अतिशयोक्ति का भान नहीं होगा ऐसे गीत पथ के अग्रगामी पथिक, गीत कविता के अनन्य पुरोधा के अमृतमय गीतों के श्रवण लाभ का आनंद लें
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये आज सुनते हैं श्री बलराम श्रीवास्तव जी को। पिछले बीस वर्षों में हिंदी कविता के मंचों नें तमाम बदलाव देखे हैं। मंचों की शालीनता और गंभीरता का दुशाला धीरे – धीरे उतारा गया और एक समय ऐसा भी लगा जब लगा कि अब मंच से साहित्य रूपी चादर के खींचकर फेंक ही दिया जाएगा, उस कठिन समय में भी कई रचनाकार ऐसे रहे जिन्होंने अपने मूल्यों से समझौता कभी नहीं किया और श्री बलराम श्रीवास्तव जी उनमें से एक हैं। आदरणीय बलराम जी को सुनकर वह सभी सीख सकते हैं जिन्हें यह लगता है कि कविता की गंभीरता समाप्त करके ही आप मंचों की ऊंचाइयों को छू सकते हैं। आपके गीत साहित्यिक रूप से समृद्ध तो हैं ही साथ में आपका अद्भुत स्वर आपके गीतों को सम्मोहक स्वरूप प्रदान कर देता हैं। आपके गीतों का सस्वर पाठ ऐसा लगता है मानों किसी ने कानों में मिश्री घोल दी हो आपके गीतों की गंगा में आचमन कर मन पवित्र हो उठता है। बात चाहे श्रृंगार की हो , दर्शन की हो अथवा देशभक्ति की आपके गीतों नें हर पहलू को बड़े सलीके से छुआ भी है और उत्कृष्टता के सोपान तक पहुँचाया भी है।
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