शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये आज सुनते हैं वरिष्ठ गीतकार श्री माहेश्वर तिवारी जी को। श्री माहेश्वर तिवारी जी हिंदी गीतकाव्य परम्परा के उन गीतकारों में से हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन गीतों को समर्पित किया। उनके गीतों को पढ़कर, उनकी शैली से प्रेरणा ले न जाने कितने कवि तैयार हुए। आप गीत को मंत्र की भाँति मारक बनाने में निष्णात हैं। आपके नवगीतों का प्रकृति चित्रण इतना सजीव है कि जैसे प्रकृति स्वयं देह धारण होकर वार्तालाप कर रही हो। मंचों पर गीत धारा को निष्कलुष, और जीवंत रखने में आपका योगदान अतुलनीय है।
धरोहर इक्कीसवीं शब्दांजलि कीर्तिशेष रचनाकार बृज शुक्ल घायल जी की रचनाएँ और संस्मरण सुनिए उनके साहित्यकार पुत्र डॉ प्रवीण शुक्ल जी के साथ ।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में कल सुनिये पूर्णिमा वर्मन जी को। हिंदी कविता सहित्य विधा है जिसका दरवाज़ा महिलाओं नें समय समय पर खटखटाया भी है और अधिकारपूर्वक उसमे दाखिल भी हुई हैं। कहीं माँ मीरा नें अपने मोहन को पुकारा तो उनके शब्द माधुर्य के आगे बड़े बड़े तपस्वियों का तप फीका पड़ गया। कहीं श्रद्धेया महादेवी की अपनी पीड़ा गीतों में मुखर होकर हमारे सामने आई तो पूरे संसार को रुला गयी। कहीं आदरेया सुभद्राकुमारी चौहान में अंग्रेजों को झांसी की रानी के स्वर में ललकारा तो पूरा हिंदुस्तान उनके स्वर में स्वर मिला उठा। श्रृंखला में अनगिन नाम हैं जो लिखें जाएं तो समय और स्याही दोनों का अभाव हो जाएगा। उसी श्रंखला में समकालीन अनेक नाम हैं जिन्होंने साहित्य जगत में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज भी कराई वरन स्वयं को नाम से लेकर हस्ताक्षर तक स्थापित भी किया। ऐसे ही एक नाम आदरणीया पूर्णिमा वर्मन जी से हम मिलेंगे कल शिवोहम साहित्यिक मंच के फेसबुक पेज पर जिनके गीत उनको हिंदी की कवयित्रियों में विशेष स्थान दिलाते हैं। उनके गीतों का स्त्री विमर्श, उनके गीतों की श्रंगारिकता, शब्द चयन, विषय वैविध्य सब कुछ अद्भुत है। वे श्रोताओं के साथ साथ पाठकों की भी प्रिय हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं डॉ कुँवर बेचैन जी को। वर्तमान की मंचीय काव्य परंपरा में अग्रणी, सुमधुर प्रस्तोता डॉ कुंवर बेचैन जी वास्तव में गीतकुंवर हैं। उनके गीतों का वैविध्य, और प्रतीक योजना तो अद्भुत है ही साथ में उनका स्वर उसमें और अधिक सौंदर्य वृद्धि कर देता है। वे गीतों के साथ लोकरंजन व लोकमंगल दोनों की कार्य सम्पादित करने में सक्षम हैं। आइये हिंदी गीतिकाव्य के अलंकारिक स्वर को सुनें
धरोहर सोलहवीं शब्दांजलि यशशेष गीतकार कीर्तिशेष अमन चांदपुरी जी की रचनाएं और स्मृतियाँ सुनिये उनके मित्र श्री राहुल शिवाय जी के साथ।
शिवोहम सहित्यिक मंच धरोहर की प्रथम शब्दांजलि कालजयी रचनाकार डॉ उर्मिलेश शंखधर जी की कविताएं और स्मृतियाँ सुनिये उनकी पुत्री श्रीमती सोनरूपा विशाल जी के साथ।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं प्रसिद्ध गीतकार श्री विनोद श्रीवास्तव जी को। श्री विनोद श्रीवास्तव जी वर्तमान के उन गीतकारों में से हैं जिनके लिए उनकी कविता की सार्थकता सर्वोपरि है। आज के समय में जब ऐसी कविताओं की बाढ़ आ गयी जिनकी उम्र सप्ताह दो सप्ताह से अधिक नहीं होती तब उनके जैसा गीतकार सच्चे गीतों की रचनाओं में पूर्णतः समर्पित है। उनके गीतों के विम्ब विधान, शब्द योजना और प्रतीक विन्यास पाठकों को सहज ही आश्चर्यचकित कर देते हैं। उनके भाव पक्ष में आशातीत कल्पनाशक्ति का अद्भुत समन्वय मिलता है। कभी कभी तो उनके गीत पढ़कर लगता है मानों वे और गीत एक दूसरे के पर्याय हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में कल सुनिये पूर्णिमा वर्मन जी को। हिंदी कविता सहित्य विधा है जिसका दरवाज़ा महिलाओं नें समय समय पर खटखटाया भी है और अधिकारपूर्वक उसमे दाखिल भी हुई हैं। कहीं माँ मीरा नें अपने मोहन को पुकारा तो उनके शब्द माधुर्य के आगे बड़े बड़े तपस्वियों का तप फीका पड़ गया। कहीं श्रद्धेया महादेवी की अपनी पीड़ा गीतों में मुखर होकर हमारे सामने आई तो पूरे संसार को रुला गयी। कहीं आदरेया सुभद्राकुमारी चौहान में अंग्रेजों को झांसी की रानी के स्वर में ललकारा तो पूरा हिंदुस्तान उनके स्वर में स्वर मिला उठा। श्रृंखला में अनगिन नाम हैं जो लिखें जाएं तो समय और स्याही दोनों का अभाव हो जाएगा। उसी श्रंखला में समकालीन अनेक नाम हैं जिन्होंने साहित्य जगत में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज भी कराई वरन स्वयं को नाम से लेकर हस्ताक्षर तक स्थापित भी किया। ऐसे ही एक नाम आदरणीया पूर्णिमा वर्मन जी से हम मिलेंगे कल शिवोहम साहित्यिक मंच के फेसबुक पेज पर जिनके गीत उनको हिंदी की कवयित्रियों में विशेष स्थान दिलाते हैं। उनके गीतों का स्त्री विमर्श, उनके गीतों की श्रंगारिकता, शब्द चयन, विषय वैविध्य सब कुछ अद्भुत है। वे श्रोताओं के साथ साथ पाठकों की भी प्रिय हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं डॉ कुँवर बेचैन जी को। वर्तमान की मंचीय काव्य परंपरा में अग्रणी, सुमधुर प्रस्तोता डॉ कुंवर बेचैन जी वास्तव में गीतकुंवर हैं। उनके गीतों का वैविध्य, और प्रतीक योजना तो अद्भुत है ही साथ में उनका स्वर उसमें और अधिक सौंदर्य वृद्धि कर देता है। वे गीतों के साथ लोकरंजन व लोकमंगल दोनों की कार्य सम्पादित करने में सक्षम हैं। आइये हिंदी गीतिकाव्य के अलंकारिक स्वर को सुनें
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये कल सुनते हैं अलीगढ़ से श्री अशोक अंजुम जी को। आज का दौर समाज को, व्यक्ति को और परिवार को बाँटने का सा दौर हो गया है। पूरा समाज धर्म, जाति और दल के अनेक धड़ों में बंटा हुआ है। एक व्यक्ति दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहा रहा है। ऐसे में कुछ लोग हैं जो इन खाइयों को पाटने में लगे हुए हैं। वे नहीं चाहते कि इंसान से इंसान अलग हो जाये। वे नहीं चाहते कि हम धर्म, जाति या मज़हब के नाम पर एक दूसरे का खून बहाने को आतुर हो उठें। साहित्य में सामाजिक समता के उन चंद पैरोकारों में श्री अशोक अंजुम जी का भी नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके गीत समता के ध्वजवाहक तो हैं ही साथ साथ भारतीय समाज और राजनीति की अनेक विसंगतियों पर टिप्पणी करने से भी नहीं चूकते। वे अपने गीतों से आपकी संवेदना को चरम पर पहुँचा भी सकते हैं, और व्यंग्य गीतों से आपको मुस्कुराकर पीछे बहुत कुछ सोचने पर विवश भी कर सकते हैं।
शिवोहम साहित्यिक मंच की प्रस्तुति #गीतों_की_ओर में आइये आज सुनते हैं श्री बलराम श्रीवास्तव जी को। पिछले बीस वर्षों में हिंदी कविता के मंचों नें तमाम बदलाव देखे हैं। मंचों की शालीनता और गंभीरता का दुशाला धीरे – धीरे उतारा गया और एक समय ऐसा भी लगा जब लगा कि अब मंच से साहित्य रूपी चादर के खींचकर फेंक ही दिया जाएगा, उस कठिन समय में भी कई रचनाकार ऐसे रहे जिन्होंने अपने मूल्यों से समझौता कभी नहीं किया और श्री बलराम श्रीवास्तव जी उनमें से एक हैं। आदरणीय बलराम जी को सुनकर वह सभी सीख सकते हैं जिन्हें यह लगता है कि कविता की गंभीरता समाप्त करके ही आप मंचों की ऊंचाइयों को छू सकते हैं। आपके गीत साहित्यिक रूप से समृद्ध तो हैं ही साथ में आपका अद्भुत स्वर आपके गीतों को सम्मोहक स्वरूप प्रदान कर देता हैं। आपके गीतों का सस्वर पाठ ऐसा लगता है मानों किसी ने कानों में मिश्री घोल दी हो आपके गीतों की गंगा में आचमन कर मन पवित्र हो उठता है। बात चाहे श्रृंगार की हो , दर्शन की हो अथवा देशभक्ति की आपके गीतों नें हर पहलू को बड़े सलीके से छुआ भी है और उत्कृष्टता के सोपान तक पहुँचाया भी है।
Reviews for: Maheshwar Tiwari (माहेश्वर तिवारी)
Average Rating
pragati sharma