यह कविता कोरे पन्ने पर लिखे शब्दों से इस दुनिया को आकार देते कवि और उसकी कल्पना का महत्व दर्शाती है
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Reviews for: क्यों उगाना चाहते हो हांथ पर सरसों ¦¦ श्री अजय गुप्त