नज़ीर अकबराबादी (१७३५-१८३०), जिन का असली नाम वली मुहम्मद था, को उर्दू ‘नज़्म का पिता’ करके जाना जाता है । वह आम लोगों के कवि थे । उन्होंने आम जीवन, ऋतुयों, त्योहारों, फलों, सब्जियों आदि विषयों पर लिखा । वह धर्म-निरपेक्षता की ज्वलंत उदाहरण हैं । कहा जाता है कि उन्होंने लगभग दो लाख रचनायें लिखीं । परन्तु उनकी छह हज़ार के करीब रचनायें मिलती हैं और इन में से ६०० के करीब ग़ज़लें हैं।
होली के खूबसूरत माहौल को इस उर्दू कविता में बड़े ही सुंदर तरीके से बताया गया है। होली के अवसर पर पिचकारी को कौन भूल सकता है? इस पिचकारी के अनेक रूपों को कितने सुंदर तरीके से बताया गया है जरा आप भी इस रंग में डूब जाइए…
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