निर्मोही दादी रात दिन सौंताल की रागिनी से बंधी रहती। बाजार में पहली- पहली कटहरी आई। दादी कुंजडि़न से पूछें- सौंताल की है ना ? दादी तरकारी लेकर आँगन में बैठ जातीं ।एक-एक तरकारी छाँटती- छीलती । उनकी पोथी का एक-एक पन्ना खुलता जाता । हमें बाबा से डर लगता। शाम की सैर के बाद घर लौटने में दहशत होती। हम कहतीं- दादी, आज यहीं रह जाएँ ? घर ना जाए। दादी कहती, घर तो जानो ही परेगो। अपने द्वार से हटके तो फूलमती भी नाँय जी ।हम -तुम कौन गिनती में? हम वापसी के लिए चल पड़ते। दादी अपनी एक टाँग पर उचक -उचक कर चलती और उनका किस्सा भी उचक- उचक कर आगे बढ़ता। एक थी फूलमती। वाके ये बड़ी -बड़ी आँखें———-।
निर्मोही दादी रात दिन सौंताल की रागिनी से बंधी रहती। बाजार में पहली- पहली कटहरी आई। दादी कुंजडि़न से पूछें- सौंताल की है ना ? दादी तरकारी लेकर आँगन में बैठ जातीं ।एक-एक तरकारी छाँटती- छीलती । उनकी पोथी का एक-एक पन्ना खुलता जाता । हमें बाबा से डर लगता। शाम की सैर के बाद घर लौटने में दहशत होती। हम कहतीं- दादी, आज यहीं रह जाएँ ? घर ना जाए। दादी कहती, घर तो जानो ही परेगो। अपने द्वार से हटके तो फूलमती भी नाँय जी ।हम -तुम कौन गिनती में? हम वापसी के लिए चल पड़ते। दादी अपनी एक टाँग पर उचक -उचक कर चलती और उनका किस्सा भी उचक- उचक कर आगे बढ़ता। एक थी फूलमती। वाके ये बड़ी -बड़ी आँखें———-।
भोला महाजन जो कि एक सुनार है, पुराने विचारों वाला व्यक्ति है ।उसने अपने खानदानी पेशे में अपने दोनों बेटों को माहिर कर दिया है । उसने उन दोनों के लिए काफी पैसा लगाकर शोरूम बनवाया है किंतु वह पूरी तरह उन पर आश्वस्त नहीं हो पाता है इसलिए खुद भी शोरूम पर
विदेश से आने वाले रिचर्ड पार्कर के लिए पूरे घर को व्यवस्थित और स्वच्छ करने में मेरी हालत ही पस्त हो गई। बच्चों को और बड़ों को लाख समझाया कि सभ्यता का परिचय देना लेकिन—— मेरा चिड़चिड़ाना स्वाभाविक था किंतु रिचर्ड ने तो मेरा नजरिया ही बदल दिया ।उसने कहा कि आपके घर में अभी डिनर पर तीन पीढ़ियाँ एक साथ, एक छत के नीचे, प्रेम से बैठी है ।आपके बच्चों को नॉर्मल लड़कपन मिल रहा है। यह बहुत बड़ी बात है। इसे कभी कम करके मत देखिएगा । जिन्हें आप गड़बड़ियाँ कह रही हैं , उनके लिए हमारे देश में तरसते हैं लोग ।कहाँ मिलती है घर परिवार की गर्मी? रिचर्ड सुबह बनारस चला गया पर मुझे जीवन भर के लिए शिक्षित कर गया।
कहानी महाकुंभ के मेले के इर्द-गिर्द घूमती है। मेले के समय की जाने वाली व्यवस्था, विभिन्न मानसिकता वाले लोग और उनके प्रथक -प्रथक विचार बड़े सुंदर ढंग से बताए गए हैं ।महाकुंभ की बेला में डुबकी लगाकर सारे पापों का प्रायश्चित होता है । ऐसे विचारों वाले ल
बाथरूम कहानी में पुराने विचारों और नए विचारों का टकराव दिखाई देता है । घर में नई बहू बाथरूम की मांग करती है,जिससे घर की औरतें नाराज हो जाती है और उसका विरोध करती है। तो क्या घर में बाथरूम बना ?क्या नई दुल्हन पुराने विचारों को बदल पाती है ?
बहुत लाड़ करती थी दादी मेरा ।दादी का एक पैर सूखी पतली लौकी जैसा और पैर का पंजा छोटा, जिनकी जुड़ी उंगलियों में नाखून नहीं थे । दादी दोनों पैर थाम कर कहती ,’अरे राम बड़ी टीसहोती है । बाबू आगरा में पढ़ते थे एक दिन बाबू से बाबा बोले ,’हिसाब- किताब समझ लो दिवाली पर बही खाता ,बांट- तराजू तुम्ही पूजियौ आय के। बाबू बोले,’ दुकान पर बैठने के लिए तो मैं एम़ए़ नहीं कर रहा हूँ। नौकरी करूँगा । बाबा भड़क उठे ।बाबू भुनभुनाते हुए घर में घूमते रहे बोले ,’पढ़ने का क्या फायदा अगर अपना रास्ता चुनने की आजादी ना हो ? दादी ने सुन कर कहा इतना बड़ा फोड़ो है पीठ पर ,पर तेरे बाबू जर्राह के नहीं लै जाते। गली की पाठशाला में मेरा नाम लिखवा दिया गया था एक दिन स्कूल में सफेद कपड़े पहन कर आने के लिए कहा गया। मैं दादी से बोली दादी आज आजादी का दिन है ।हम स्कूल जा रहे हैं। तिरंगा झंडा फहराया जाएगा ।दादी बोली ,’थोड़ी आजादी मेरे लिए भी ले आना पुड़िया में बांध के।’
रोजी मेरे पिताजी के राजकुमार विद्यार्थी द्वारा दी गई एक कुत्ती थी। एक रोज जब हम आम की डाल पर झूल – झूल कर अपने संग्रहालय का निरीक्षण कर रहे थे, तब हमने देखा कि रोजी़ मुँह में किसी जीव को दबाए हुए ऊपर आ रही है। आकार में वह गिलहरी से बढ़ा न था पर आकृति में स्पष्ट अंतर था। रामा उसे रुई की बत्ती से दूध पिलाता। कुछ ही दिनों में वह स्वस्थ और पुष्ट होकर हमारा साथी हो गया। बाबू जी से यह सुनकर कि हमारे लिए टट्टू आया है , हम उससे रुष्ट और अप्रसन्न ही घूमते रहे पर अंत में उसने हमारी मित्रता प्राप्त कर ही ली। नाम रखा गया रानी। फिर हमारी घुड़सवारी का कार्यक्रम आरंभ हुआ। एक छुट्टी के दिन दोपहर में सबके सो जाने पर हम रानी को खोलकर बाहर ले आए। मेरे बैठ जाने पर भाई ने अपने हाथ की पतली संटी उसके पैरों में मार दी। इससे ना जाने उसका स्वाभिमान आहत हो गया या कोई दुखद स्म्रति उभर आयी । वह ऐसे वेग से भागी मानो सड़क पर नदी- नाले सब उसे पकड़कर बाँध रखने का संकल्प किए हो। कुछ दूर मैंने अपने आप को उस उड़न खटोले पर सँभाला परंतु गिरना तो निश्चित था !
प्यार एक एहसास है। प्यार एक जुनून है। वह किसी दायरे में नहीं बाँधा जा सकता । वह कभी भी ,कहीं भी हो जाता है। फिर चाहे उसको मंजिल मिले या ना मिले। प्यार अधूरा रह जाए तो वह उम्र भर याद रहता है । सभी प्यार करने वालों को मंजिल मिले यह जरूरी तो नहीं । सच्चा प्यार तन से नहीं मन से होता है और मन ! वह तो चंचल होता है।
माता-पिता हमें पाल – पोस कर बड़ा करते हैं ।इस काबिल बनाते हैं कि हम समाज में सर उठा कर जी सके। फिर ऐसा क्यों होता है ,कि काबिल होते ही हम माता-पिता को इस्तेमाल की वस्तु समझ लेते हैं ? उन्हें घर का माली ,घर का सामान लाने वाला नौकर, बच्चों की केयर- टेकर, और वॉचमैन मान लेते हैं ?
बाँदी यानी दासी, गुलाम। जिसकी अपनी कोई मर्जी नहीं होती, अपना कोई अस्तित्व नहीं होता। वो खरीदी जाती है, घर सँभालने के लिए ।हर जरूरत को पूरा करने के लिए। वह पत्नी की तरह सारे फर्ज निभाती है। लेकिन पत्नी का दर्जा नहीं पाती । उसे वह इज्जत ,वह ओहदा नहीं मिलता । आखिर क्यों ?और नवाबों के शौक, उनकी रंगीन तबीयत , बड़े ऊँचे खानदान की बहू बेटियों की रंगरलियाँ। सब छुप जाते हैं उनके दौलत के परदे के पीछे । तो क्या गरीब होना इतना बड़ा जुर्म है? अभिशाप है?
अनिकेत – Malti Joshi (मालती जोशी) – Arti Srivastava
माँ की मृत्यु के बाद वीरेश और विशाखा ने जिया में ही अपनी माँ को देखा । लेकिन नई बहू उसे सास के रूप में स्वीकार नहीं कर सकी । वह जिया को साथ रखना नहीं चाहती थी । पिता की मृत्यु के बाद वीरेश को जिया की चिंता सताने लगी क्योंकि वह सच्चाई से अनभिज्ञ नहीं था । ऐसी क्या सच्चाई थी जिसकी वजह से वीरेश को जिया की इतनी चिंता थी ? वह जिया के लिए इतना बेचैन क्यों था?
एक निम्न जाति की वृद्धा मंदिर के पास बैठी है |वह 3 दिन से भूखी है तभी उसका बेटा राधे शराब के मद में चूर होकर उसके पास आता है और मंदिर में अछूतों के साथ दर्शन करने की जिद करने लगता है| किंतु मंदिर के अपवित्र होने के डर से मंदिर के महाराज उसे इस बात की चेतावनी देता है राधे की जिद्द का क्या नतीजा निकलता है क्या उसे मंदिर में दर्शन मिल पाते हैं क्या होता है राधे के साथ ?पूरी कहानी सुनने के लिए जानते हैं जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखी गई कहानी विराम चिन्ह निधि मिश्रा की आवाज में
द्रौपदी कह रही है कि युधिष्ठिर बहुत सरल-हृदय के व्यक्ति हैं। वे दूसरों को भी सरल-हृदय समझते हैं। इसी सरलता के कारण वे शकुनि और दुर्योधन के कपट जाल में फंस गए हैं|किंतु यहां बैठे सभी धर्मज्ञों से मैं पूछना चाहती हूं कि आज धर्म की विजय हुई या कपट और छल की
हरसिंगार एक अनाथालय में जीवन बिता रहे एक युवक गोविंद की कहानी है| जिसे एक घटना के पश्चात ये एहसास होता है कि उसके अनाथ जीवन में कभी उसे पूर्णता का एहसास नहीं होगा |ऐसा गोविंद क्यों सोच रहा है? इसको जानते हैं अज्ञेय जी की लिखी कहानी हरसिंगार में सुमन वैद्य जी की आवाज में
द्रौपदी ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की नायिका है |राजा द्रुपद की पुत्री, धृष्टद्युम्न की बहन तथा युधिष्ठिर सहित पाँचों पाण्डवों की पत्नी है। अत्यधिक विकट समय होते हुए भी वह बड़े आत्मविश्वास से दु:शासन को अपना परिचय देती हुई कहती है|
हरसुंदरी ने मां न बन पाने के कारण अपने पति निवारण का विवाह शेलबाला नाम की किशोरी से तो कर दिया पर उसे क्या पता था कि इसके बाद उसका जीवन इतनी मुश्किलों से भर जाएगा।
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