अगर मौत मेरे पहले आई… तो मैं मौत को मार डालूंगा!”
ये कोई फिल्मी डायलॉग नहीं… ये वो संकल्प था, जो कैप्टन मनोज कुमार पांडे ने अपनी आत्मा में उतार रखा था।
वो जवान जो शब्दों में आग और आंखों में लक्ष्य लेकर चला था —
जिसे न वीरगति का डर था, न दुश्मन की गोलियों से कोई शिकवा।
उसका सिर्फ़ एक मक़सद था: “तिरंगा वहाँ लहराना है, जहाँ दुश्मन सोच भी न सके।”
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडे —
उत्तर प्रदेश की धरती पर जन्मा वो सपूत,
जिसने एनडीए इंटरव्यू में ही कह दिया था — “I want to win the Param Vir Chakra.”
और उन्होंने सिर्फ़ सपना नहीं देखा — उसे अपने बलिदान से साकार भी कर दिखाया।
कारगिल की वो बर्फ़ीली रातें, पहाड़ियों की चढ़ाई, दुश्मन के बंकर, और गोलियों की बौछार…
कैप्टन मनोज ने न रुकना जाना, न झुकना।
उन्होंने दुश्मन की पोस्ट्स को अकेले ध्वस्त किया — और आखिरी सांस तक लड़ते हुए वीरगति को गले लगाया।
अब सुनिए Gaatha पर —
“शौर्य गाथा: कैप्टन मनोज पांडे की अमर कहानी”
एक ऐसा ऑडियो अनुभव जो रुलाएगा भी, जोश भी भर देगा… और शायद आपकी सोच भी बदल देगा।
ये सिर्फ़ एक कहानी नहीं, एक प्रेरणा है।
ये सिर्फ़ एक वीरगाथा नहीं, एक राष्ट्र की चेतना है।
और ये सिर्फ़ मनोज की आवाज़ नहीं, भारत माँ की जय का घोष है।
अब सुनिए Gaatha App पर –
अपने कानों से महसूस कीजिए एक अमर शहीद की जीवनी
अल्बर्ट एक्का ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लिया था, जहां वह दुश्मनों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए थे| मरणोपरांत उन्हें देश की सर्वश्रेष्ठ सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया था|बता दें कि जंग के दौरान उन्हें 20 से 25 गोलियां लगी थी| उनका पूरा शरीर दुश्मन की गोलियों से छलनी हो गया था|
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों (17 जुलाई 1943 – 14 दिसंबर 1971) भारतीय वायु सेना के एक अधिकारी थे। भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 के दौरान पाकिस्तानी वायु सेना के हवाई हमले के खिलाफ श्रीनगर एयर बेस के बचाव में शहीद हो गए थे। उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से वर्ष 1972 में सम्मानित किया गया।
3 नवंबर 1947 को, जब देश अभी आजाद हुआ था, पाकिस्तान ने श्रीनगर पर हमला बोल दिया था। इस हमले का मकसद था श्रीनगर एयरबेस को कब्जे में करना। 700 दुश्मन आक्रमणकारी थे, लेकिन हमारे 50 जवानों ने उन्हें बहादुरी से रोका। उन्होंने सिर्फ छह घंटे में आगे बढ़ने से रोका और 200 आतंकवादी को नर्क पहुंचा दिया। इस युद्ध में हमारे 22 जवान शहीद हो गए, लेकिन उनकी बलिदानी चेतना हमें आगे बढ़ने का साहस देती है। इस कहानी का मुख्य किरदार, देश के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) है।
लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे को 1948 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान राणा की भूमिका आव्दितीय थी। बारूदी सुरंग हमारी बटालियन की उन्नति में बाधा बन रही थी। ऐसे में राणे के नेतृत्व में गोलियों की बौछार के बीच बारूदी सुरंग को साफ़ करने का जिम्मा राणे ने बखूबी निभाया ।यह परमवीर चक्र पाने वाले पहले जीवित व्यक्ति थे। 11 जुलाई 1994 को इनका निधन हो गया।
सूबेदार जोगिंदर सिंह शूरसैनी राजपूत (26 सितंबर 1921 – 23अक्टूबर1962) सिख रेजिमेंट के एक भारतीय सैनिक थे। इन्हें 1962 के भारत-चीन युद्ध में असाधारण वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।साल 1962 का भारत-चीन युद्ध में एक हीरो ऐसा भी था जिसने गोली लगने के बाद भी हार नहीं मानी और युद्ध के मैदान में डटा रहा. ये हीरो कोई और नहीं बल्कि सूबेदार जोगिंदर सिंह थे,जोगिंदर सिंह ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के नारे लगाते हुए चीनी सेना पर हमला किया था और अकेले फौज पर भारी पड़े|
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